दूसरा दिवस दूसरा स्वरूप माँ ब्रम्हचारिणी का -पं. मोहनलाल

मॉ दुर्गा की नव षक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रम्हचारिणी का है। यहां ब्रम्हा षब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रम्हचारिणी अर्थात् तप की चारिणी, तप का आचरण करने वाली। कहा भी है-वेदस्तत्तवं तपो ब्रम्हा-वेद ् तत्व और तप ब्रम्हा षब्द के अर्थ है। ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हांथ में कमण्डल रहता है।
मॉ दुर्गा के दूसरे स्वरूप की जानकारी देते हुये मॉ षारदा की पवित्र धार्मिक नगरी मैहर के प्रख्यात वास्तु एवं ज्योतिर्विद देवज्ञ पंडित मोहनलाल द्विवेदी ने बताया की अपने पूर्वजन्म में जब यें हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेष से इन्होंने भगवान षंकर को पति-रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपष्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक केवल षाक पर निर्वाह किया । कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुये खुले आकाष के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पष्चात तीन हजार वर्षो तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुये बेलपत्रों का खाकर वह अहर्निष भगवान षंकरजी की आराधना करती रही। इसके बाद सूखे बेलपत्रों का भी खाना छोड. दिया। कई हजार वर्षो तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रही। पत्तो (पर्ण) को भी खाना छोड. देने के कारण उनका एक नाम अपर्णा’ भी पड. गया था।
दूसरा स्वरूप-ब्रम्हचारिणी
पं द्विवेदी के अनुसार कई हजार वर्षो की कठिन तपस्या के कारण ब्रम्हचारिणी देवी का पूर्वजन्म का षरीर एकदम क्षीण हो उठा। वह अत्यन्त कृषकाय हो गयी उनकी यह दषा देखकर उनकी माता मैना अत्यन्त दुखी हो उठी। उन्होनें उन्हें उस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिये आवाज दी’उ मा’ अरे नही। तबसे देवी ब्रम्हचारिणी का पूर्वजन्म का नाम ’उमा भी पड. गया था। उनकी इस तपस्या से तीनों ंलोको में हाहाकार मच गया। देवता ऋषि सिद्वगण मुनि सभी ब्रम्हचारिणी देवी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बतातेे हुये उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रहााजी ने आकाषवाणी के द्वारा उन्हे संबोधित करते हुये प्रसन्न स्वरों में कहा-हें देवी आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नही है। ऐसी तपस्या तुम्ही से संभव थी। तुम्हारे इस आलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौली षिव जी तुम्हें पति रूप से प्राप्त होगें। अब तुम तपस्या से विरत हो कर घर लौट जाओ। षीघ्र ही पिता तुम्हें बुलाने आ रहे है।
पं. द्विवेदी बताते है कि मॉ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्वों को अनन्तफल देने माला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप्, त्याग,् वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्वि होती है। जीवन के कठिन संघर्षो में भी उसका मन कर्तब्य-पथ से विचलित नही होता। मॉ ब्रम्हचारिणी देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्वि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गापूजन के दूसरे दिन इन्ही के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थिति होता है इस चक्र में अवस्थित मनवाला येागी उनकी कृपा और भक्ती प्राप्त करता है।