राजद से रिश्ता तोड़ भाजपा को कमजोर करने का दांव पड़ा उलटा, बढती जा रही है नीतीश की हताशा

476 By 7newsindia.in Sat, Sep 30th 2017 / 08:26:03 बिहार     

नवल किशोर कुमार,    
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हताशा बढ़ती जा रही है। यह हताशा एक आयामी नहीं है। इसलिए उनकी हताशा उनके लिए अधिक मायने रखती है। उनके हताशों के विभिन्न आयामों पर चर्चा बारी-बारी से करेंगे। पहले हताशा की स्थिति को समझते हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही उन्होंने राजद से रिश्ता तोड़कर भाजपा से दुबारा रिश्ता कायम किया। उस भाजपा से जो विपक्ष में रहते हुए धीरे-धीरे स्वयं को जदयू से बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित करने में सफल हो रही थी। कदापि नीतीश कुमार ने यही सोचकर राजद से रिश्ता तोड़ा कि वे चाहकर भी राजद को जूनियर पार्टी नहीं बना सकते लेकिन भाजपा यदि दूसरे नंबर की पार्टी हो गयी तो जदयू का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यदि भाजपा को अपना पार्टनर बना लिया जाय तो बिहार में भाजपा को जदयू का जूनियर बनाये रखा जा सकता है। रही लालू प्रसाद की बात तो वोटों का बिखराव जदयू और भाजपा को सीट दिला ही देगी। लेकिन नीतीश कुमार का दांव उलटा पड़ गया। भाजपा ने सत्ता कब्जाते ही अपनी राजनीतिक घेराबंदी तेज कर दी। नीतीश कुमार के लाख विरोध के बावजूद वह उपेंद्र कुशवाहा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करने को राजी नहीं हुई। यहां तक कि नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल विस्तार में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को कोई जगह नहीं दी। हालत यह हो गयी कि जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी को यह कहना पड़ा कि भाजपा के कारण जदयू को अपमान सहना पड़ रहा है। यह सामान्य बात नहीं थी। नीतीश कुमार के लिए सीधे-सीधे हमला था। बाद में भाजपा ने कुर्मी महारैली के आयोजन की घोषणा कर नीतीश कुमार की जमीन खिसका दी। आननफानन में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी को मजबूत करने का आहवान किया। वर्ष 2019 में सभी चालीस लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव की तैयारी को लेकर निर्देश अपने दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिये। यह भी सामान्य घटना नहीं है। दरअसल हो यह रहा है कि एक तरफ मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाल रहे नीतीश जदयू को वह नेतृत्व नहीं दे पा रहे हैं जो उसके लिए आवश्यक है। शरद यादव को ठिकाने लगाने के बाद उनके पास उनके अलावा कोई ऐसा नेता नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर जदयू का नेतृत्व कर सके। आरसीपी सिंह को राज्यसभा में दल का नेता बनाये जाने के पीछे भी नीतीश की यही मजबूरी नजर आयी। कोई नेता ही नहीं है। वैसे आरसीपी की राजनीतिक हैसियत स्वयं नीतीश भी बेहतर समझते हैं।

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