अप्रैल में कांग्रेस की पहली सूची, 52 प्रत्याशी तय करने की है तैयारी
रायपुर।कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन की कवायद तेज कर दी है। इस बार कम से कम छह माह पहले नाम तय करने की योजना है ताकि प्रत्याशी को जनता के बीच काम करने का अवसर मिल सके। इस सिलसिले में किए जा रहे सर्वे का पहला चरण करीब करीब पूरा कर लिया गया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने पहले चरण में उन सीटों को फोकस किया है जो इस समय भाजपा, बसपा और निर्दलीय के कब्जे में हैं। साथ ही 2013 के चुनाव में जिनमें जीत-हार का अंतर पांच हजार या उससे कम था।
चौथी विधानसभा में भाजपा के 49, बसपा और निर्दलीय के पास एक-एक सीट है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर पार्टी ने पंजाब पैटर्न पर इन सीटों में प्रत्याशी तलाशने का अभियान करीब-करीब पूरा कर लिया है। पार्टी ने पंजाब में सक्रिय रही टीम को इस काम में लगाया था। इस टीम ने पार्टी नेताओं को छोड़ समाज के हर उस व्यक्ति से रायशुमारी की जिसकी समाज में पकड़ है।
- साथ ही सरकारी एजेंसियों से भी कुछ जरूरी फीडबैक लिया। इस तरह से हर विधानसभा क्षेत्र से 9-10 नाम छांटे गए हैं। इनमें 2013 में पराजित प्रत्याशी भी शामिल हैं। सर्वे टीम जल्द ही अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय नेतृत्व को सौंपने जा रही है।
- समझा जा रहा है कि गुजरात चुनावों से फ्री होने के बाद हाईकमान उसकी छंटनी करेगा। उसके बाद तीन से पांच नामों का पैनल बनाकर हाईकमान को दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि संसद और विस के बजट सत्र के बाद अप्रैल-मई में नाम जारी कर दिए जाएंगे।
कर्मा का विकल्प नहीं मिला
- बस्तर संभाग में महेंद्र कर्मा के बाद अब तक कांग्रेस को कोई भी ऐसा नेता नहीं मिला है जो पूरे संभाग का प्रतिनिधित्व कर सके। उनके अपने परिवार में भी कोई ऐसा नहीं है जिससे उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की अपेक्षा की जा सके। हालांकि मनोज मंडावी को आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने एक कोशिश की है।
- लखेश्वर बघेल का भी नाम इस सिलसिले में लिया जाता रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से पारिवारिक कारणों से उनकी सक्रियता में कमी आई है। मोहन मरकाम, दीपक बैज पहली बार के विधायक हैं, युवा भी हैं। पार्टी इन पर विचार कर सकती है। कवासी लखमा की अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत है लेकिन अभी उनकी भूमिका बहुत स्पष्ट नहीं है।
एससी सीटों को पक्ष में करने की रणनीति
- प्रदेशमें एससी और एसटी की कुल 40 सीटें हैं। इनमें एससी की 11 में से 10 सीटें भाजपा के पास हैं। कांग्रेस को एकमात्र मस्तूरी विधानसभा में जीत मिली थी। सो कांग्रेस इन सीटों को अपने पक्ष में करने की रणनीति तैयार करने में जुट गई है। प्रदेश की 29 आदिवासी सीटों में से कांग्रेस के पास 18 हैं। अब पार्टी का फोकस 11 उन सीटों को अपने पक्ष में करने पर है, जहां कांग्रेस को हार मिली थी।
बस्तर-सरगुजा पर फोकस
- 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाई थी। उसकी पूरी कोशिश इस बढ़त को बरकरार रखने की है। 2003 और 2008 के चुनाव में पार्टी को इस संभाग की केवल 1 सीट पर जीत मिली थी लेकिन उसने 2013 के चुनाव में जबर्दस्त वापसी करते हुए संभाग की 12 में से 8 सीटों बस्तर, कोंटा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, चित्रकूट, जगदलपुर, कोंडागांव और नारायणपुर को अपने पक्ष में कर लिया था। अब इन सभी सीटों पर भाजपा की नजर है।
- भाजपा ने गोपनीय तरीके से इन सीटों का सर्वे कराया है। इसके अलावा सरगुजा संभाग की 14 सीटों में से भाजपा और कांग्रेस के पास 7-7 सीटें हैं। दोनों ही दल यहां बढ़त बनाने की कोशिश में जुटे हैं। कांग्रेस इस संभाग में बेहतर स्थिति में है। टीएस सिंहदेव के रूप में उनके पास एक सशक्त नेता मौजूद है। पिछले चुनाव में वे कांग्रेस को सूरजपुर, बलरामपुर और सरगुजा जिले में लीड दिलाने में सफल रहे थे।
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