डेंगू से बच्ची की मौत, गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल ने थमाया 16 लाख का बिल, मंत्री ने मांगी रिपोर्ट
गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल पर डेंगू से जूझ रही सात साल की बच्ची के इलाज के एवज में बेहिसाब चार्ज वसूलने का आरोप लगा है। 15 दिन अस्पताल में भर्ती रही इस बच्ची को आखिरकार बचाया नहीं जा सका। इलाज के लिए हॉस्पिटल ने करीब 16 लाख रुपए वसूले। पैरेंट्स को 20 पेज का बिल थमाया गया था। ओवरचार्ज के आरोपों पर फोर्टिस ने कहा कि इलाज में सभी स्टैंटर्ड मेडिकल प्रोटोकॉल फॉलो किए गए थे। इस मामले पर यूनियन हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा ने हेल्थ सेक्रेटरी से जांच करने को कहा। उन्होंने हॉस्पिटल से रिपोर्ट भी मांगी। यह मामला सितंबर का है। लेकिन एक ट्वीट के वायरल होने के बाद अब सामने आया है।
बच्ची को क्या हुआ था?
यह मामला दिल्ली के द्वारका में रहने वाले जयंत सिंह की बेटी से जुड़ा है। आईटी प्रोफेशनल सिंह की सात साल की बेटी आद्या को 27 अगस्त से तेज बुखार था। दूसरी क्लास की स्टूडेंट आद्या को 31 अगस्त को गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।आद्या का 15 दिन इलाज चला। 10 दिन वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रही। 14 सितंबर को परिवार ने उसे फोर्टिस से ले जाने का फैसला किया, लेकिन उसी दिन बच्ची की मौत हो गई।
मामला कैसे सामने आया?
दरअसल, बच्ची के पिता जयंत सिंह के एक दोस्त ने @DopeFloat नाम के हैंडल से 17 नवंबर को हॉस्पिटल के बिल की कॉपी के साथ ट्विटर पर पूरी घटना शेयर की।उन्होंने इसमें लिखा, ''मेरे साथी की 7 साल की बेटी डेंगू के इलाज के लिए 15 दिन तक फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती रही। हॉस्पिटल ने इसके लिए उन्हें 16 लाख का बिल दिया। इसमें 2700 दस्ताने और 660 सिरिंज भी शामिल थीं। आखिर में बच्ची की मौत हो गई।''
4 दिन के भीतर ही इस पोस्ट को 9000 से ज्यादा यूजर्स ने रिट्वीट किया। इसके बाद हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा ने हॉस्पिटल से रिपोर्ट मांगी।
नड्डा ने ट्वीट किया, ''कृपया अपनी सभी जानकारियां hfwminister@gov.in पर मुझे भेजें। हम सभी जरूरी कार्रवाई करेंगे।''
फोर्टिस हॉस्पिटल पर लगे ये 6 आरोप
1) बच्ची के पिता के दोस्त ने जो ट्वीट किए, उनमें कहा गया कि हॉस्पिटल ने आद्या के इलाज के दौरान 2700 दस्तानों का इस्तेमाल किया। 660 सिरिंज का भी इस्तेमाल किया। यानी 7 साल की बच्ची के लिए रोजाना 40 सीरिंज इस्तेमाल हुई। ये तब भी होता रहा जब 5 दिन से जब बच्ची वेंटिलेटर पर थी और उसके पैरेंट्स लगातार MRI/CT स्कैन कराने की गुजारिश कर रहे थे ताकि यह पता चल सके कि उनकी बेटी जिंदा भी है या नहीं।2) @DopeFloat ट्विटर हैंडल से हुए ट्वीट्स के मुताबिक, ''शुगर स्ट्रिप्स 13 रुपए रुपए में मिलती है। हॉस्पिटल ने एक स्ट्रिप का 200 रुपए का बिल बनाया।''
3) ''Meropenem की एक स्ट्रिप 500 रुपए की थी। बाद में परिवार से दूसरे ब्रांड की सात गुना ज्यादा कीमत वाली स्ट्रिप का चार्ज लिया गया। हॉस्पिटल हर दिन के खर्च का ब्रेकअप आज तक नहीं दे पाया।''
4) ''हॉस्पिटल ने 15 से 20 लाख रुपए के प्रोसिजर वाला फुल बॉडी प्लाज्मा ट्रांसप्लांट करने का सुझाव दिया। जबकि सीटी स्कैन में कहा गया था कि 70 फीसदी से ज्यादा ब्रेन डैमेज है। जब परिवार ने इसका लॉजिक पूछा तो कहा गया कि ट्रांसप्लांट करने से बाकी ऑर्गन रिकवर हो सकते हैं।''
5) ''जब परिवार ट्रांसप्लांट के लिए राजी नहीं हुआ तो फोर्टिस ने पेशेंट को छुट्टी देने से इनकार कर दिया। इसके चलते परिवार को मजबूरी में लीव अगेन्स्ट मेडिकल एडवाइज फॉर्म पर साइन करना पड़े। हॉस्पिटल ने एंबुलेंस भी मुहैया कराने से इनकार कर दिया, क्योंकि एंबुलेंस मिलती तो फोर्टिस में डेंगू से एक मौत रिकॉर्ड होती। परिवार से दूसरे हॉस्पिटल से एंबुलेंस लाने को कहा गया।''
6) ''पैरेंट्स हॉस्पिटल दर हॉस्पिटल भटकते रहे। आखिरकार एक हॉस्पिटल ने बच्ची को डेड घोषित कर दिया। इससे फोर्टिस अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया। जब परिवार ने पूरा बिल क्लियर कर दिया तो फोर्टिस ने बच्ची के शरीर पर मौजूद गाउन का भी पैसा देने को कहा। ''
इन आरोपों पर फोर्टिस हॉस्पिटल ने क्या सफाई दी?
- फोर्टिस हॉस्पिटल की ओर से जारी बयान के मुताबिक, ''बच्ची के इलाज में सभी स्टैंटर्ड मेडिकल प्रोटोकॉल और गाइडलाइंस का ध्यान रखा गया था। बच्ची को डेंगू की गंभीर हालत में हॉस्पिटल लाया गया था। बाद में उसे डेंगू शॉक सिंड्रोम हो गया और प्लेटलेट्स गिरते चले गए। उसके बाद उसे IV फ्लूड्स और सपोर्टिंग ट्रीटमेंट पर रखा गया। उसे 48 घंटे तक वेंटिलेटर सपोर्टर पर भी रखना पड़ा।''
- हॉस्पिटल ने कहा, ''परिवार को बच्ची की खराब हालत के बारे में हर दिन लगातार बताया गया था। 14 सितंबर को परिवार ने बच्ची को लीव अगेन्स्ट मेडिकल एडवाइज के तहत हॉस्पिटल से ले जाने का फैसला किया। उसी दिन बच्ची की मौत हो गई।''
- ''जब परिवार हॉस्पिटल से जा रहा था तो हमने 20 से ज्यादा पेज का आइटमाइज्ड बिल दिया था। 15 दिन तक बच्ची का इलाज पीडिएट्रिक आईसीयू में चला था। जिस दिन से वह एडमिट हुई थी, उस दिन से वह क्रिटिकल थी। उसे इंटेंसिव मॉनिटरिंग की जरूरत थी।''
- ''15 दिन के ट्रीटमेंट में मैकेनिकल वेंटिलेशन, हाई फ्रीक्वेंसी वेंटिलेशन, कंटीन्यूअस रीनल रिप्लेसमेंट थैरेपी, इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स, इनोट्रोप्स, सीडेशन और एनालजेसिया शामिल था।''
- ''जब कोई पेशेंट आईसीयू में वेंटिलेशन पर होता है तो उसे इन्फेक्शन कंट्रोल के ग्लोबल प्रोटोकॉल के तहत बड़ी तादाद में चीजें देनी होती हैं। ये सभी चीजें रिकॉर्ड में दर्ज है और उस पर तय चार्ज ही लिया गया है।''
सरकार जांच करे ताकि किसी के साथ ऐसा ना हो: पिता
बच्ची के पिता जयंत सिंह ने न्यूज एजेंसी से कहा, ''15 दिन इलाज के बदले हमें 16 लाख का बिल चुकाने को कहा गया। मैं चाहता हूं कि जो चार्ज नियमों के हिसाब से सही हैं, वही लिए जाएं। इस मामले में सरकार से जांच और कार्रवाई की अपील करता हूं ताकि कोई और मेरी तरह परेशान ना हो।''
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