पुरूष संरक्षण समिति के नाम पर परोस रहे अश्लीलता
सीधी: जिले में इन दिनों अश्लीलता अपनी सारी मर्यादायें लॉघ कर फैशन का स्वारूप ले लिया है, समाज में जहॉ एक ओर मर्यादाओं का पाठ पढाया जाता है वहीं दूसरी ओर मानवता को तार तार करते हुए सफेद पोश व समाज के अग्रणी सेवक ग्रुप एडमिन के रूप में एंड्राइड मोबाइल पर पुरूष संरक्षण समिति के नाम पर पोर्न फिल्में प्रतिदिन ग्रुप में शेयर करते हैं और ग्रुप में जुडे सैकडों मेंबर अपने मनोरंजन के रूप में उपयोग करते हैं, जो कि समाज के सफेद पोश व्यक्तियों के दोहरे चरित्र को उजागर करता है। वृहद रूप में देखा जाये तो आज विश्व में पोर्न रूपी कोढ को जड से समाप्त करने की कयावद जारी है वहीं जिले में खुल्लमखुल्ला मानवता को शर्मशार करने का प्रयास जारी है। समाज में पोर्न रूपी बीमारी पर अगर लगाम कसने की बात करें तो आज भी जिले की पुलिसिया कार्यवाही वर्तमान परिवेश से दशकों पीछे चल रही है, साईबर अपराधों की रोकथाम के नाम पर पुलिस प्रशासन के हाथ पॉव फूलने लगते है।
होश सँभालते ही बच्चों का पडता है पोर्न से वास्ता -
एक ओर तो डिजटल इंडिया की ओर देश अग्रसर हो रहा है वहीं दूसरी ओर जबाबदेह की मांनसिक नपुशंकता का दुशपरिणाम यह उभर कर सामने आ रहा है कि अगर गूगल में भगवान राम की महिमा भी खोजा जायें तो उसमें भी कहीं न कहीं राम रहीम आ जाते हैं, इंटरनेट जहॉ आज के दौर में लगभग हर के हाथ में आ चुका है वहीं अपने साथ अनैतिकता के कई स्वारूप भी फ्री में उपलब्ध रहती है। अब यह बताने की जरूरत नहीं कि बलात्कार फिर हत्या जैसे अपराधों का सैलाब यकायक क्यों फूट पडा। जवाब है वर्जनाएं टूट गईं सबकुछ खुल्लमखुल्ला हो गया। पहले कैसेट्स में ब्लू फिल्में आईं, फिर ये कम्प्यूटर में घुसीं और अब इनकी जगह जेब के मोबाइल फोन में बन गई।
जानकारों की माने तो
बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि कुल नेट सामग्री में तीस फीसद पोर्न सामग्री है। दो साल पहले मैक्स हास्पिटल ने स्कूली छात्रों के बीच सर्वे के बाद पाया कि 47 फीसद छात्र रोजाना पोर्न की बात करते हैं। नेट के सामान्य उपयोगकर्ता को प्रतिदिन कई बार पोर्न सामग्री से वास्ता पडता है। वजह प्राय: नब्बे प्रतिशत समाचार व अन्य जानकारियों की साइट पोर्नसाईटस से लिंक रहती हैं या बीच में विग्यपन घुसे रहते हैं। कई प्रतिष्ठित अखबारों पर यह आरोप लग चुका है कि वे यूजर्स, लाईक, हिट्स बढाने के लिए पोर्न सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि यूजर्स की संख्या के आधार पर ही विग्यापन मिलते हैं। यानी कि वर्जनाओं को वैसे ही फूटने का मौका मिला जैसे कि बाढ में बाँध फूटते हैं। सारी नैतिकता इसके सैलाब में बह गई।
कमाल की बात यह कि साँस्कृतिक झंडाबरदारी करने वाली सरकार ने इस विषय पर दृढता नहीं दिखाई। इंदौर हाईकोर्ट के वकील कमलेश वासवानी की जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने 850 पोर्नसाईटस पर प्रतिबंध लगाने को कहा। सरकार ने दृढता के साथ कार्रवाई शुरू तो की लेकिन जल्दी ही कदम पीछे खींच लिए। कथित प्रगतिशीलों और आधुनिकता वादियों ने इसे निजत्व पर हमला बताया और कहा कि इससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। नेशनल क्राईम ब्यूरों के भयावह रिकॉर्ड के बाद भी सरकार ने आसानी से कदम पीछे खींच लिए। जनहित के अपने निर्णय पर वैसी नहीं डटी जैसी कि नोटबंदी में डट गई। तत्कालीन एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष कहा.पोर्नसाईटस पर प्रतिबंध लगाने को लेकर समाज और संसद में व्यापक बहस की जरूरत है। वहीं तथाकथित समाज सेवीयों के द्वारा कहा गया कि जब प्रधानमंत्री डिजटलाजेशन की बात कर रहे हैं तब पोर्न को बैन करना संभव नहीं है। अभी सिर्फ चाईल्ड पोर्न पर पाबंदी है। प्राय: समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि यौनिक अपराधों की बढोत्तरी के पीछे पोर्नसाईटस हैं जो हर उम्र के लिए खुली हैं। गूगल ट्रेन्ड के मुताबिक पोर्न शब्द की खोज करने 10 शीर्ष देशों में एक भारत भी है। नैतिक श्रेष्ठता का दम भरने वाली सरकार को चाहिए कि इस मामले में चीन से सीख ले। चीन ने अश्लीलता के खिलाफ अभियान चलाते हुए 180000 आँनलाईन प्रकाशन रोके। पोर्नसाईटस के खिलाफ कडी कार्यवाहियॉ की। दुनिया के हर समझदार देश इस कोढ के समान दिखने वाली पोर्न की बीमारी के खिलाफ हैं। तमाम घटनाओं के बाद भी कोई सबक नहीं ले रहा। आधुनिकता और प्रगतिवादी सिर्फ पोर्नसाईटस के मामले में ही सुने जाते हैं। अन्य मामलों में तो ये भोकते ही रह जाते हैं सरकार को जो करना होता है कर लेती है।