तेजी से बढ़ता जा रहा है मोतियाबिंद का प्रकोप : डॉ. नीतीश
बिहारशरीफ : नालंदा जिले के बिहारशरीफ स्थित कुमार नेत्रालय के नेत्र चिकित्सक डॉ. नीतीश कुमार एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका व्यवहार और क्रियाकलाप पूरी तरह उनके पेशे के अनुरूप है. पिछले कई वर्षों से क्षेत्र में एक सुयोग्य चिकित्सक के रूप में अपनी पहचान बना चुके डॉ. नीतीश कुमार ने हमारे संवाददाता से मोतियाबिंद की समस्या के बारे में विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि यह बीमारी अब तो तेजी से बढ़ रही है। कभी यह 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की आंखों की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब तो 40 साल के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। अपने खानपान का खास खयाल रखकर इस समस्या से बचे रहा जा सकता है। अगर मुश्किल हो जाए तो समय पर ध्यान दें। अंधेपन का कारण बनने वाली बीमारी मोतियाबिंद का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। मोतियाबिंद अथवा सफेद मोतिया आंख के लेंस में सफेदी आ जाने को कहते हैं, जिस कारण आंख में प्रवेश करने वाली रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस कारण एक स्थिति आने पर मरीज को दिखाई देना बंद हो जाता है। यह बीमारी आमतौर पर 55 से 65 की आयु तक होती है, लेकिन कई लोगों में यह बीमारी 40 साल में ही या उससे पहले ही आंरभ हो जाती है। भारत में मोतियाबिंद के मामले सबसे ज्यादा हैं। एक अनुमान के अनुसार 90 लाख लोग मोतियाबिंद के शिकार हैं। मोतियाबिंद मधुमेह और गुर्दे की खराबी जैसे मेटाबोलिक रोगों, मायोपिया या निकट दृष्टि दोष, ग्लूकोमा, शक्तिवर्धक स्टेरायड के सेवन, धूम्रपान और पोषक तत्वों की कमी के कारण भी होता है। डॉ. नीतीश बताते हैं कि मोतियाबिंद की शुरुआत होते ही आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है। जो लोग चश्मा लगाते हैं, उन्हें महसूस होता है कि अधिक पावर का चश्मा लगाने पर भी उन्हें सामान्य रूप से दिखाई नहीं देता। बारीक अक्षर पढ़ने तथा टेलीविजन देखने में आंखों पर दबाव पड़ता है और सिर दर्द होता है। मोतियाबिंद एक आंख में या दोनों आंखों में हो सकता है। इसका तब तक पता नहीं चलता, जब तक जांच न करायी जाये। इनके लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आंकड़ों से पता चलता है कि सभी तरह के ऑपरेशनों में मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सफलता की दर सबसे अधिक होती है, लेकिन मोतियाबिंद को नजरअंदाज करने अथवा देर से ऑपरेशन कराने के कारण मोतियाबिंद गहरा होता जाता है। फिर इसे हटाना कठिन हो जाता है। डॉ. नीतीश के अनुसार, अब लेंस को प्रत्यारोपित करना भी कष्टरहित हो गया है। इसके लिए न तो टांके और न ही पैच लगाने की जरूरत होती है। मरीज को अब पूरे दिन अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती है। मोतियाबिंद की सर्जरी के क्षेत्र में विकसित तकनीक के कारण मरीज को खान-पान अथवा टेलीविजन देखने संबंधी परहेज करने की जरूरत नहीं होती है और वह अगले ही दिन से काम पर जा सकता है।
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