16 साल बाद.... जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा ने दिल्ली में थामा कांग्रेस का हाथ

रीवा : जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा की 16 साल बाद कांग्रेस में वापसी हो गई। बीते दो सालों से भाजपा में सत्ता, संगठन और नेताओं से श्री मिश्रा की अनबन जगजाहिर थी। सोमवार को दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और प्रदेश प्रभारी राष्टÑीय महासचिव दीपक बावरिया के हाथों कांग्रेस की सदस्यता लेने के साथ ही अभय के भाजपा छोड़ने एवं कांग्रेस ज्वाइन करने की अटकलों पर विराम लग गया।
भाजपा के पूर्व विधायक एवं रीवा जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा जी ने दिल्ली में AICC महासचिव मान. दीपक बाबरिया जी एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मान. अरुण यादव जी की मौजूदगी में कांग्रेस ज्वाइन की pic.twitter.com/RyyYGr0HEX
— MP Congress (@INCMP) 5 मार्च 2018भाजपा में सत्ता, संगठन और नेताओं से चल रही थी अनबन|
2002 में भाजपा की सदस्यता लेने वाले अभय मिश्रा की राजनीतिक पारी का आगाज 1995 में नगर निगम के वार्ड-23 से किया था। लेकिन चुनाव हार गए थे। तब वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। उन्हें पूर्व ननि स्पीकर यदुनाथ तिवारी का करीबी माना जाता था, लेकिन पार्षद का चुनाव उनके विरोध में लड़े थे।
भाजपा में सियासी मंशा चढ़ी परवान
मूलत: पेशे से ठेकदार अभय मिश्रा की सियासी मंशा भाजपा में आने के बाद परवान चढ़ी। उन्होंने 2002 में कांग्रेस छोड़ भाजपा की सदस्यता ली। और इसके करीब डेढ़ साल बाद भाजपा के दिवंगत नेता चंद्रमणि त्रिपाठी के सहारे पहले जनपद सिरमौर के सदस्य और बाद में अध्यक्ष बन गए। बतौर जनपद अध्यक्ष साढ़े 4 साल पूरा करते ही उन्हें नवगठित सेमरिया विधानसभा का पार्टी ने प्रत्याशी बनाया।
2008 के विस चुनाव में अभय सेमरिया क्षेत्र के पहले विधायक बने, लेकिन पांच साल बाद टिकट काटकर भाजपा ने उनकी पत्नी को दे दिया। नीलम अभय मिश्रा भी 2013 में सेमरिया की विधायक चुनी गर्इं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इसी चुनाव में भाजपा संगठन विशेषकर तब के प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन, जिला अध्यक्ष जनार्दन मिश्रा और मंत्री राजेन्द्र शुक्ल को लेकर अभय के मन में विरोध का बीजारोपण हो गया था, जिसकी परिणति 2018 में सामने आई।
समर्पण तो किया लेकिन गांठें नहीं टूटीं
हालांकि जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की कवायद के दौरान अभय मिश्रा और पार्टी संगठन, सत्ता और नेताओं के समक्ष समर्पण तो कर दिया, लेकिन यह सुलह ज्यादा दिन बरकरार नहीं रही। दो साल बाद अभय मिश्र का स्वभाव और व्यवहार दोनों में बगावती तेवर नजर आने लगे। 2016 में पंचायती राज आंदोलन की आड़ में श्री मिश्रा ने भाजपा सरकार और संगठन एवं नेताओं पर कई गंभीर आरोप लगाकर सियासी हलकों में खलबली मचा दी।
यही नहीं सांसद जनार्दन मिश्र, मंत्री राजेन्द्र शुक्ला और प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। हालांकि बाद में उनके प्रदेशव्यापी आंदोलन की हवा निकल गई। इस बीच उनकी विधायक पत्नी ने भी भाजपा में अपमानित किए जाने का आरोप सांसद जनार्दन मिश्रा पर सार्वजनिक तौर पर लगा चुकी हैं और सिविल लाइन थाना के सामने धरना-प्रदर्शन तक किया, लेकिन कुछ खास हासिल नहीं हो सका |।
बहरहाल इन 16 सालों में भाजपा में रहकर पति, पत्नी विधायक बने लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी में संगठनात्मक लगाव पर उनकी महत्वाकांक्षा भारी रही। उनकी कथनी-करनी में स्थायित्व का अभाव रहा, लिहाजा भाजपा में रहकर भी वे भाजपाई नहीं बन पाए। फलस्वरूप पार्टी पदाधिकाकारियों, संगठन एवं सत्ता से उनका तालमेल नहीं बन पाया। ये बात और है कि उनके कांग्रेस में ज्वाइनिंग से संभाग में राजनीतिक द्वंद का केन्द्र रीवा विधानसभा बनने के स्पष्ट संकेत हैं। साथ ही उनका सामना कांग्रेस में भी एक नए अंतरद्वंद से होना तय है।