राम का चित्रकूट रावणों के हवाले साँच कहै ता - जयराम शुक्ल
सीधी
कोई 45 साल पहले मैं अपनी दादी के साथ दीपावली मनाने चित्रकूटधाम गया था। दादी ने बताया था कि मंदाकिनी में दीपदान करने से सरग ;स्वर्गद्ध का दरवाजा सीधे खुल जाता है।मेरे अवचेतन में हमेशा दादी द्वारा बखान किया चित्रकूट रहा। भगवान कामतानाथ के दर्शन के बाद दादी ने प्रसादए पूजा करने के लिए तुलसी की माला व भगवान की तस्वीरें लीं हींए दूकानदार से चित्रकूट का असली नक्शा मांग बैठीं। दुकानदार अचकचा गया। उसके पास तस्वीरनुमा जो नक्शा था उस पर शायद किसी ने पहली बार संदेह किया। मेरी दादी निरक्षर थीं पर पता नहीं उनके मुंह से चित्रकूट के असली नक्शे की बात कैसे निकल गई।आज 45 साल बाद एक पत्रकार के नाते चित्रकूट जाता हूं तो हर बार यही सवाल कौंधता है कि मेरी दादी वाले चित्रकूट का असली नक्शा कहां हैण्ण्घ्चित्रकूट इन दिनों फिर चर्चा में हैए लेकिन उसकी वजह धर्म या आध्यात्म नहीं। इन दिनों यहां दो काम समानांतर चल रहे हैं. एक नेतागीरीए दूसरी डाकूगीरी। चुनाव लड़नेए लड़ाने वाले भगवान कामतानाथ की शरण में पहुंच रहे हैं। दूसरी ओर कोई आधा दर्जन दस्यु गिरोह लगातार डकैतीए हत्या और अपहरण से कहर बरपा रहे हैंण् इस बीच एक महिला डकैत भी कूद पड़ी है जो जल्दी ही फूलनदेवी का रिकार्ड तोड़ने को बेताब है।इसी 23.24 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के हिस्से वाले चित्रकूट के जंगल से गुजरने वाली स्टेट हाई.वे से दिनदहाड़े लोकनिर्माण अधिकारी समेत तीन लोगों का अपहरण कर लिया गया। अखबारों में छपा है कि डकैत कुल मिलाकर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं। चौबीस घंटे के भीतर ही फतेहपुर से तीरथ करने आए परिवार का भी अपहरण कर लियाण् इसके पीछे दस्यु सुंदरी की महिला गैंग है।चित्रकूट आजादी के बाद से ही अभिशप्त है। दस्युजगत के रहस्यमयी ;जिसकी जीते जी असली तस्वीर सामने नहीं आ पाईद्ध डकैत ददुआ का दो दशक तक राज चला। वह 1984 में रामू का पुरवा नरसंहार और दर्जनभर रेलकर्मियों का अपहरण करके चर्चित हुआ थाण्। ददुआ जब तक चुनाव जिताने का औजार बना था तब तक जिंदा रहा। जब उसने अपनों को चुनाव में कुदाना शुरू किया तो मुठभेड़ में मारा गया। यद्यपि शेष परिवार अब भी सकुशल राजनीति में है।दुदुआ मरा तो सुंदर आयाए सुंदर के बाद बलखड़िया और अब तो इतने कि नाम गिन पाना मुश्किलए छोटे.बड़े कोई एक दर्जन से ज्यादा गिरोहण् बबलीए लवलेशए रजोलवा और पता नहीं कौन.कौन। फिलहाल दस्यु सुंदरी साधना का नाम चंग पर चढ़ा है। ददुआ से पहले खरदूषणए फौजीए सीतारामए हनुमान मारे गए थेण् ये सबके सब लाखों के इनामी थेण् दस.दस से ज्यादा कत्लए डकैती और अपहरण दर्जनों में। कितना मारो ये बचे रहेंगे। तीस साल में छोटे.बड़े कोई तीन सौ मारे गए होंगे।रक्तबीज की तरह फिर जिंदा। यहां डकैत क्यों हैंण्ण्ण्घ् इस यक्ष प्रश्न का जवाब सत्तर साल में भी सरकारें नहीं खोज पाईंएनजीओए समाजशास्त्री कहते हैं. चूंकि यहां कोई रोजगार नहींए इसलिए डकैती ही रोजगार है। डाका नहीं डालेंगे तो खाएंगे क्याण्ण्घ् इस पूरे इलाके में 95 फीसद जोत की जमीन पांच फीसद लोगों के पास हैए बाकी सब मजदूरण्।मजदूरी करके या तो दादुओं ;यहां के उच्च वर्ग के लोगों के लिए संबोधनद्ध जूते खाओ या जंगल भागकर गैंग में शामिल हो जाओ।शुरुआत में यहां डकैती की जड़ में चंबल की तरह स्वाभिमान और मूंछ का सवाल नहींए वरन् आर्थिक विषमता रही हैए पापी पेट का सवाल। लेकिन अब मूल बात यह ज्यादातर डकैत इसलिए यहां पलते पुसते हैं क्योंकि ये चुनाव में नेताओं के काम आते हैं। कई सालों तक तो उन्होंने नेताओं का साथ दिया जब ऐसा लगा कि ये हमारे दम पर ही राजनीति कर रहे हैं तो अपने परिवार व शागिर्दों को राजनीति में उतार दियाण् इनमें से कई विधायकए सांसदए ब्लॉकप्रमुखए प्रधान हैं या थे।ददुआ अब यहां सम्मानित नाम है और अब पूरा नाम शिवकुमार पटेल के साथ अदब से लिया जाता है। ददुआ का नाम वोटों के काम आता है। स्वर्गीय ददुआ का मंदिर भी बना है। ददुआ भी दादुओं के कथित जुल्म से तंग आकर जंगल में कूदा था। ददुआ ने डकैती को संगठित पेशे में बदलकर राजनीतिक गठजोड़ के साथ रसूखदार बना दिया था। मरने के बाद भी चित्रकूट के इलाके में डकैतों की मिसाल ददुआ ही बना हुआ है।चित्रकूट में अकेली दस्यु समस्या ही नहीं है। यहां हर तरह की मानवनिर्मित विपदाएं हैंण्।उनका ओर.छोर ढूंढना रुई के ढेर से सुई ढूंढने जैसा है। और उसे ढूंढना भी कोई क्यों चाहेगाए जब ये वोट बनाने या बिगाड़ने की सबब हैंघ्शब्द यदि वाकई में ब्रह्म होतेए तो इनकी अवहेलना करने वाले सारे पापी आज नरक में होते और इस धरती का बोझ कुछ कम होता। मैं ये इसलिए कह रहा हूं कि पिछले तीन दशक में भाई लोगों ने चित्रकूट की चिंता में इतने शब्द खर्च कर दिए कि वे अब अपनी अर्थवत्ताए महत्ता ही खो बैठेण् कामदगिरि की परिक्रमा और मंदाकिनी में दीपदान देकर अपने पाप धोने आने वालों का पाप यहां के गरीब गुरबों के साथ ऐसे लिपटा है कि ये जीते जी ही नरकवासी बन गए।चार साल पहले सतना के एक अखबार का संपादन करते हुए मैंने चित्रकूट में गांजाए चरस और स्मैक से बर्बाद होते परिवारों पर जीवंत स्टोरी करवाई थी। गांवों में जाकर रिपोर्टर ने मध्यप्रदेश.उत्तरप्रदेश के बीच सैंडविच बने इलाके से पच्चीस ऐसे परिवारों को खोजा था जिनके बच्चे स्मैक की लत में फंसे थे। तेरह परिवारों की पहचान के साथ उनका सिलसिलेवार ब्योरा दिया। इन तेरह परिवारों के कुलदीपक हमेशा के लिए बुझ गए। शेष बचे परिवारों में भी एक.एक कर मौत का सिलसिला जारी है। चित्रकूट की इस राम कहानीण्ण्पर प्रतिक्रिया में एक सोशल एक्टविस्ट अर्चन पंडित ने दोहा भेजा थाए आप भी उसे पढ़िएण्ण्ण्श्चित्रकूट में देखिए धर्म.कर्म का स्वांगएगुरु चेलों को बेचते गांजाए स्मैकए भांगश्अर्चन पंडित चित्रकूट के उत्तरप्रदेश के हिस्से में पाठा के वनवासियों के बीच काम करते हैं।उनसे तफ्सील से बात नहीं हो पाई लेकिन प्रतिक्रिया बताती है कि धंधा निर्विघ्न जोरदारी से चल रहा है।भगवान राम ने जिस तपोभूमि में तेरह बरस जप.तप करते हुए बिताए आज वह चित्रकूट अपराधियों का सेफ हैवेन है। यहां रम रहे अपराधी इच्छाधारी राक्षसों की भांति बहुरूपिए हैं। किसी भी शक्ल में दिख सकते हैं। कुछ साल पहले एक आश्रम से एक कतली को दिल्ली पुलिस पकड़ ले गई थी। वह यहां साधु बनके रह रहा थाण् साधुओं के कई बार गैंगवार हो चुका है। गए साल एक साधू रेप के आरोप में अंदर हुआ है। इनके डेरे में अवैध असलहे मिल जाएंए तो भी ताज्जुब मत करिए। हांए यहां सब ऐसे नहीं हैंए कुछेक पूज्य संत और ग्यानी हैंए पर चित्रकूट अब उनके बस का नहीं रहा।चित्रकूट नशे के कारोबार का हब है। गांजे की धूनी तो सुलगती ही हैए स्मैक का जोर है जो युवाओं की जिंदगी लील रहा है। चित्रकूट के नशे के कारोबार के टर्मिनल का कनेक्शन महानगरों से जुड़ा हैए पुलिस यह सब जानती है। दो प्रदेशों के बीच जब कोई हिस्सा फंसता है तो स्थिति बड़ी विकट बन जाती है। एक बार सतना और बांदा की सीमा पर कतल हो गया। लाश तीन दिन तक इसलिये पड़ी रहीए क्योंकि उस अभागे का सिर यूपी में था और टांगें एमपी में। चित्रकूट में ऐसी घटनाएं प्रायः होती हैं। पुलिस हाथ झाड़ती हैंए अपराधी मजे मारते हैं।चित्रकूट की पावनधरा में आकर सभी तरना चाहते हैंण् सो जरूरी है कि यहां आश्रम बने। यूपी की पुलिस में नंबरी नोटेरियस एक अफसर ने रिटायर होकर बीच मंदाकिनी में ही कब्जा करके आश्रम बना लिया था। खुद ही नाम बदलकर 10008 फला महराजए फला सरकार लिखने लगा था। अखबारों में रिपोर्ट छपने के बाद चित्रकूट की नगर परिषद जागी और उस फर्जी महाराज का बेजा कब्जा हटाया। संभव है वो अब किसी पार्टी का उपदेशक बन चुका होए राम जाने।चित्रकूट की एक.एक इंच जमीन पर नजर है। अंदाजा लगा सकते हैं कि एक बार भगवान कामतानाथ के मुखारबिंद की जमीन की रजिस्ट्री हो गई थी। जो पुराने आश्रम हैं धीरे.धीरे उनके मठाधीश बदलते जा रहे हैं। नए महंतों का कारोबार जम रहा हैए पुराने सड़कों पर भीख मांगने लगे हैं। कालोनियां बन रहींए गरीबों की जमीन किस तरह औने पौने बंदूक की नोक पर हड़पी जा रही हैं सबकुछ ऑन रिकार्ड है।एक बार खबर रुकवाने बंदूक के साथ अटैची भर नोट लेके अखबार के दफ्तर पहुंचे यूपी निवासी लेकिन चित्रकूट में कार्यरतए बाहुबली नेता.कम.प्रॉपर्टी डीलर ने मुंह खोलकर नाम गिनाते हुए बताया था कि किस किस नेता को वह प्लाट दिलवा चुका है। वह चाहता था कि अखबार की रिपोर्टिंग उसका धंधा खराब न करे।चित्रकूट के भूमाफियाओं का दम इसी से पता चलता है कि जमीन के विवाद में फंसे पटवारी का तबादला यूं चुटकी में कैंसिल करवा लियाए कलेक्टर बगली झाकते ही रह गए। चित्रकूट में प्लाटों की कीमत लखनऊए भोपाल से ज्यादा ही हैंंए कम नहीं। एक बार जाकर देख आइए प्रॉपर्टी डीलरों के मोबाइल नंबर पानठेलों में चिपके मिल जाएंगे।जमीन का धंधा करने वाले और खदान खोदने वाले यहां मौसेरे भाई हैं। सती अनसुइया तरफ मंदाकिनी के कैचमेंट में आने वाले पहाड़ सफाचट हो चुके हैं। जहां कभी विराध जैसे राक्षस विचरते थे वहां पोकलेनए हाइवाए डंपर विचरते हैं। हड्डियों के ढेर पर बने जिस सिद्धा पहाड़ को देखकर भगवान् राम ने रोष में आकर उद्घोष किया था किण्ण्ण् निसिचर हीन करहु महि भुज उठाइ प्रण कीन्हण्ण्ण् उस सिद्धा पहाड़ का अस्थिपंजर पोकलेन निकाल ले गईए क्योंकि उसमें उम्दा किस्म का बाक्साइट थाचौरासी कोसी परिक्रमाए राम वनगमन पथण्ण्ण् वाह वाह बाते हैं बातों का क्या। ये सिर्फ़ प्रवचन और बुद्धिविलास में बची हैं। सरभंग आश्रम की सभी वेदियां खदान वाले खोद ले गए। ढूंढते रहिये राम वनगमन पथ। तो जमीन और खदान वाले भाई लोगों का यहां राज हैण् ये जो कहें वो सही। यही नेताए यही महंतए यही प्रवचनकारए यही जजमान। व्यवस्था भी जाकर इन्हीं के पायताने बैठ जाती है। बोलो सियावर रामचंद्र की जय। सो राम के चित्रकूट में यही सबकुछ बचा है सरहंगईए ढोंगए फर्जीगीरीए गरीबीए बेबसीए कुपोषणए लाचारी और इन सबसे ऊपर मख्खन जैसे शब्दों से कानों में शहद घोलने वाले प्रवचनए भाषण।राम जब चित्रकूट पहुंचे तो वनवासियों ने उन्हें घेर लियाण् उनकी दशा पर प्रभु को दया आई और इन्हें अपना संगी साथी बना लियाण् इस पर वनवसियों ने कहा. नाथ मोर एतनइ सेवकाई। लेहुं न बासनएबसन चोराई।।ण्ण्ण्राम ने इन अभागों को अपने साथ बैठाकर जो सम्मान बख्शा था हम भक्तों ने उसे छीन लिया और धकेल दिया भुखमरी के अंधकूप में। मेरा यकीन न हो तो चले जाइए मझगवां ब्लाक के रामनगर खोखलाए कैलाशपुरए पड़मनिया जागीरण् कुपोषण और भूख से बिलबिलाते बच्चों की खोजखबर के लिए सुप्रीम कोर्ट यहां अपने आब्जर्वर भेज चुका हैण् चुनाव में आए हैं तो लगे हाथ आप भी हो आइएण्ण्ण् मैं तो अपनी दादी वाले चित्रकूट के असली नक्शे को आज भी खोजने में जुटा हूं।
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