दो साल में 1000 करोड़ रु. से ज्यादा बढ़ गई मेट्राे की लागत
राजधानी में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट जितना लेट हो रहा है उसी तेजी से उसकी लागत भी बढ़ती जा रही है। प्रोजेक्ट के पहले चरण की लागत 6962.92 करोड़ आंकी गई थी। अब इसमें कम से कम 15.5 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। आज की तारीख में प्रोजेक्ट शुरू होने पर इसकी लागत 8042.17 करोड़ रुपए होगी। प्रोजेक्ट के और लेट होने पर इसकी लागत में और वृद्धि होना तय है। भोपाल के मेट्रो प्रोजेक्ट की डीपीआर को जनवरी 2015 में अंतिम रूप दिया गया था। तब डीपीआर उस समय की महंगाई दर के हिसाब से तैयार की गई थी। उस समय जापान इंटरनेशनल को ऑपरेशन बैंक (जायका) से 0.3 प्रतिशत पर लोन को आधार बनाया गया था। जायका के इनकार के बाद यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) से लोन की कवायद चल रही है। प्रारंभिक चर्चा में यह तो स्पष्ट है कि ईआईबी जायका से अधिक दर पर लोन देगा जो एक प्रतिशत या उससे अधिक भी हो सकती है। हालांकि यूरोप के किसी देश से मटेरियल लेने जैसी कोई शर्त नहीं होने का लाभ भी मिलेगा। दूसरी तरफ इन तीन वर्षों में स्टील, सीमेंट आदि के रेट बढ़ गए हैं। मजदूरी की दर भी बढ़ रही है, जिससे लागत बढ़ना स्वाभाविक है।
6962.92 करोड़ थी पहले चरण की लागत, अब 15.5 प्रतिशत वृद्धि के साथ 8042.17 करोड़ हुई
मेट्रो प्रोजेक्ट की डीपीआर तैयार करने वाले रोहित एसोसिएट्स के रोहित गुप्ता ने कहा कि हमारा अनुमान है कि प्रोजेक्ट की लागत 15.5 प्रतिशत बढ़ गई है। गुप्ता ने कहा कि मटेरियल की लागत बढ़ने के अलावा ज्यादा देरी होने पर रूट में भी बदलाव करना पड़ सकता है, जिससे लागत अधिक बढ़ती है। जिस जमीन पर मेट्रो प्रोजेक्ट प्लान किया गया है। इतने वर्षों तक उसे खाली रखना संभव नहीं होता। आखिर हबीबगंज स्टेशन के डेवलपमेंट में स्टेशन की लोकेशन बदल गई। यह स्थिति और भी जगह पर आ सकती है। गुप्ता ने बताया कि करीब एक साल पहले वे इस संबंध में मेट्रो रेल काॅर्पोरेशन को एक पत्र भी लिख चुके हैं।
पचास फीसदी लोन देगा ईआईबी
यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) पूरे प्रोजेक्ट की लागत का केवल 50 प्रतिशत ही लोन देगा। जायका ने 80 फीसदी लोन देने की बात कही थी। ऐसे में प्रदेश सरकार को 20 प्रतिशत से अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना होगी। लागत बढ़ने पर राज्य सरकार को अपने बजट में और अधिक राशि का इंतजाम करना पड़ सकता है।
खर्च के साथ जरूरत का भी आकलन होना चाहिए
मेट्रो प्रोजेक्ट के लेट होने के कारण लागत बढ़ना स्वाभाविक है। प्रोजेक्ट में जितनी लागत बढ़ रही है उस हिसाब से उसकी जरूरत का भी आकलन किया जाना चाहिए। मौजूदा स्थिति में लो फ्लोर बसें घाटे में चल रही है, ऐसे में मेट्रो को सवारी कहां से मिलेगी? सुरेंद्र तिवारी, डिप्टी कन्वीन , भोपाल सिटीजंस फोरम
ऐसे प्रोजेक्ट में बढ़ती लागत पर किसी का नियंत्रण नहीं है
मेट्रो या इन जैसे किसी भी प्रोजेक्ट में बढ़ती लागत पर किसी का नियंत्रण नहीं है। टेंडर होने के बाद भी कई बार एस्केलेशन देना पड़ता है। लागत बढ़ने पर या तो लोन की राशि बढ़ेगी या कैपिटल इंवेस्टमेंट यानि केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी बढ़ेगी। विवेक अग्रवाल, एमडी, मेट्रो रेल कंपनी
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