MP : जज का सवाल-आंतकी के लिए आधी रात को सुनवाई हो सकती है, तो मेरे लिए क्यों नहीं?...

356 By 7newsindia.in Thu, Aug 10th 2017 / 07:44:33 मध्य प्रदेश     

भोपाल ! जब सुप्रीम कोर्ट एक आतंकवादी की गुहार पर आधी रात को खुल सकती है। इंदौर में क्रिकेट मैच के लिए छुट्‌टी के दिन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज आ सकते हैं, तो मेरे साथ हुए अन्याय की सुनवाई अदालत में क्यों नहीं की जा सकती? यह सवाल जबलपुर में मप्र हाईकोर्ट के बाहर 3 दिन तक सत्याग्रह करने के बाद निलंबित किए गए एडीजे आरके श्रीवास ने उठाया है। श्रीवास ने अब इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई का ऐलान करते हुए सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायधीश और मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम 5 पेज का पत्र सार्वजनिक किया है।
क्या कारण थे कि 15 माह में आपका चौथी बार ट्रांसफर किया गया?
एक ही कारण है कुछ हाईकोर्ट जज और रजिस्ट्रार मेरे प्रति दुर्भावनापूर्ण रवैया रखते हैं। 2012 में न्यायधीशों के ट्रांसफर की पॉलिसी लागू हुई थी। जिसमें 3 साल में जजों के ट्रांसफर किए जाने की बात है, लेकिन मुझे तो 4-4 महीने के अंतर से ट्रांसफर किया गया। 17 साल की सेवा में अब तक 11 ट्रांसफर हुए। आखिर किस बात की सजा है यह?
बार-बार ट्रांसफर से क्या परेशानी उठानी पड़ी?
11 अप्रैल 2016 को धार से मुझे शहडोल ट्रांसफर किया गया। 25 अगस्त 2016 को शहडोल से सिहोरा ट्रांसफर कर दिया गया। 25 मार्च 2017 को सिहोरा से जबलपुर और 21 जुलाई को जबलपुर से नीमच ट्रांसफर कर दिया गया। ट्रांसफर के बीच पिछले साल छोटे बेटे का 9वीं क्लास में मिड सेशन में दो बार स्कूल बदलना पड़ा। 10वीं में भी यही हालात बन रहे हैं। बड़े बेटे के साथ भी 12वीं में यही हुआ था।
सत्याग्रह के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा?
सत्याग्रह न करता तो क्या करता? मुझे इसके लिए मजबूर किया गया। मैं ट्रांसफर के खिलाफ चीफ जस्टिस से लेकर रजिस्ट्रार जनरल तक सबसे मिला। कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं है। जब एक सरकारी कर्मचारी के गलत तरीके से हुए ट्रांसफर के खिलाफ रिट सुनी जा सकती है, स्टे दिया जा सकता है, अदालत तबादला रद्द कर सकती है, तो मेरे मामले में क्यों नहीं?
अब आपका अगला कदम क्या होगा?
अब यह मेरी अकेले की लड़ाई नहीं रही। जिला अदालतों में पदस्थ प्रदेश के 90 फीसदी जजों के साथ यही हो रहा है। इसलिए मैं अब ट्रांसफर पॉलिसी के उल्लंघन और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना के मामले में हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करूंगा। मैंने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। न्यायपालिका के अंदर होने वाले अन्याय को उजागर करने के लिए 15 अगस्त से नीमच से जबलपुर तक साइकिल यात्रा करूंगा। इसके बाद जबलपुर से दिल्ली तक साइकिल से यात्रा करूंगा।
रजिस्ट्रार जनरल ने आपको मिस कंडक्ट का दोषी बताया है?
- मैंने कोई मिस कंडक्ट नहीं किया। वे झूठ बोल रहे हैं कि मैं मालवा में पोस्टिंग चाहता था। मैंने तो तबादला रद्द कर जबलपुर में ही पोस्टिंग की मांग की थी। मैंने तो ट्रांसफर में भेदभाव की शिकायत की थी, उसकी निष्पक्ष जांच करा ली जाए, दोषी कौन और दूध का धुला कौन सब साफ हो जाएगा। अब नौकरी जाती है तो जाए, मुझे इसकी परवाह नहीं। मुझे भरोसा है कि मैं सही हूं और मुझे न्याय जरूर मिलेगा। मध्यप्रदेश में न्यायधीशों के ट्रांसफर की पूरी प्रक्रिया को ही भेदभावपूर्ण और दुर्भावना से ग्रस्त है, इसे ठीक किया जाना जरूरी है।

                                          प्रोफाइल

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नाम - आरके श्रीवास
परिवार - दो बेटे। बड़ा बेटा आदित्य श्रीवास (बीएएलएलबी फस्ट ईयर), छोटा बेटा सत्यार्थ श्रीवास (कक्षा-10)
पत्नी - नीतू श्रीवास (हाउसवाइफ)
पिता - रेलवे से रिटायर्ड अधिकारी
निवासी - रतलाम 
भाई-बहन - पांच भाई दो बहनें, सभी लॉ ग्रेजुएट 
कहां कहां पदस्थ रहे - खंडवा, अलीराजपुर, मंदसौर (गरौठ), झाबुआ, इंदौर, धार, शहडोल, सिहोरा, जबलपुर, नीमच
न्यायिक सेवा में आए - जुलाई 2000 
न्यायिक सेवा का अनुभव - 17 साल 
वकालत अनुभव - 3 साल
                 ज्यादा परेशान किया तो इस्तीफा दे दूंगा
मुझे कोई नेता नहीं बनना, मैं गरीब परिवार से आया हूं, न्याय करना मेरा पेशा है, मैं सिर्फ अन्याय और गलत नीति के खिलाफ लड़ रहा हूं, ज्यादा परेशान किया गया तो मैं इस्तीफा दे दूंगा, लेकिन लड़ाई बीच में नहीं छोड़ूंगा।’

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