पहली सूची के 67 कर्मचारी फर्जी, कोर्ट केस के कारण 10 अन्य को स्थायी करने से रोका
भोपाल. कर्मचारियों के स्थायीकरण के लिए जारी 687 कर्मचारियों की पहली सूची में से 77 के नाम पर रोक लग गई है। इनमें कर्मचारी नेता अशोक वर्मा सहित 10 ऐसे हैं जिन्होंने नगर निगम के खिलाफ दायर प्रकरण वापस नहीं लिया है। शेष 67 में से 35 के दस्तावेज बताते हैं कि वे 18 साल की आयु पूरी करने से पहले ही नौकरी में आ गए थे, जो संभव नहीं है । इसके साथ 32 अपनी नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज पेश नहीं कर सके।
यही नहीं, जलकार्य विभाग में 191 ऐसे कर्मचारी सामने आए हैं जो यह दावा कर रहे हैं कि वे 1995 के पहले से निगम में हैं और 40 कर्मचारी 2006-07 में कोलार में दैवेभो के रूप में भर्ती होने का दावा कर रहे हैं। जबकि नगर निगम में 1995 के पहले से कार्यरत कर्मचारी नियमित किए जा चुके हैं और कोलार में उस दौरान किसी दैवेभो की भर्ती नहीं हुई।
इन 231 नामों पर अगली सूची में विचार होगा। नगर निगम में करीब डेढ़ हजार दैवेभो कर्मचारी कार्यरत हैं। सूत्र बताते हैं कि यह लोग वास्तव में एवजी कर्मचारी हैं। यानि निगम के ही कुछ प्रभावशाली लोगों ने इन्हें अपने साथ काम पर लगा रखा है ।
बैंक की पासबुक मांगी
फर्जीवाड़े की भनक लगने पर वरिष्ठ अधिकारियों ने कर्मचारियों से अपनी नियुक्ति साबित करने के लिए बैंक की पासबुक या अन्य दस्तावेज पेश करने को कहा है, जिससे साबित हो सके कि उन्हें नगर निगम से वेतन मिल रहा है।
पहले चरण में 687 में से 610 के स्थायीकरण का प्रस्ताव एमआईसी को भेज दिया गया है। बिना पर्याप्त छानबीन और पड़ताल के किसी भी कर्मचारी को स्थायी नहीं किया जाएगा।
वीके चतुर्वेदी, अपर आयुक्त, नगर निगम
मस्टर रोल से हो रही छेड़छाड़
सूत्र बताते हैं कि स्थायीकरण के नाम पर कुछ फर्जी लोग नगर निगम में नौकरी का रास्ता तलाश रहे हैं। खास तौर से जलकार्य विभाग में 1995 से पहले के मस्टर रोल से छेड़छाड़ की जा रही है। रिटायर हो चुके अधिकारियों के हस्ताक्षर से फर्जी कागजात तैयार किए जा रहे हैं। इन्हें पुराना बताने के लिए पत्थर से घिसा जा रहा है।
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