RTO: कागज और पैसा दो, फिटनेस प्रमाणपत्र ले जाओ
ग्वालियर / सर्वेश त्यागी
शहर के मुख्य मार्गों के अलावा बाहरी क्षेत्रों में फर्राटा भरने वाले सभी प्रकार के वाहनों की नियमित रूप से जांच तक नहीं की जाती है, उसके बावजूद भी उनकी फिटनेस आरटीओ कार्यालय से मिल जाती है। सवारी वाहनों की बिना जांच कर फिटनेस बनाए जाने का कारनामा आरटीओ कार्यालय में खुलेआम किया जा रहा है। यह सब कुछ कार्यालय में पदस्थ्य अधिकारियों और दलालों की मिली भगत से होता है। इसी बात का फायदा उठाते हुए इन दिनों दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे प्रांतों के बड़े शहरों से लाए जाने वाली बसों में भी सुरक्षा के इंतजामों को अनदेखा कर फिटनेस जारी की जा रही है। जबकि फिटनेस डिपार्टमेंट प्रभारी क्षेत्रीय परिवहन निरीक्षक वाहनों की तकनीकी जांच के लिए तैनात है, लेकिन अधिकारी की उपस्थिति न होने से बिना तकनीकी जांच के सार्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं।कार्यालय में सक्रिय दलालों द्वारा बैखौफ होकर अधिकारियों के नाम से रिश्वत मांगी जा रही है। यह खुलासा एक्सपोज द्वारा आरटीओ कार्यालय में स्टिंग कर किया। एक्सपोज टीम द्वारा जब कार्यालय में वाहनों की फिटनेस बनवाए जाने के संबंध में पड़ताल की गई तो पता चला कि कार्यालय का नारायण नाम का बाबू वाहनों को कैमरे के सामने एक-एक कर लगवा रहा था, जिनके दस्तावेज भी उसी के पास थे, लेकिन कैमरे के सामने जो वाहन लगाए जा रहे थे, उनमें से किसी भी वाहन की जांच नहीं की जा रही थी।
कई वाहन तो काफी जर्जर अवस्था में बने हुए थे, लेकिन विभाग की ओर से ऑपचारिकता पूरी कर इन वाहनों की फिटनेस बनाए जाने का काम किया जा रहा था। जब इस मामले में गहराई से पड़ताल की गई तो पता चला कि कैमरे के सामने जिन वाहनों को फिटनेस की पात्रता के लिए लगवाया जा रहा है वह वाहन दलालों के जरिए से ही लगाए गए हैं।
कार्यालय में सक्रिय दलालों द्वारा पहले ही वाहनों को दस्तावेज बाबू को दे दिए गए थे, इसके पश्चात बारी-बारी से दलाल अपने वाहनों को लगवाते गए और उनके वाहनों की फिटनेस को पास कर दिया जा रहा था। अहम बात तो यह है कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी आरटीओ स्वयं ही ऑफिस में मौजूद नहीं मिलते है, ऐसे मेें ऑफिस का काम दलालों के जरिए चल रहा है।
यह है विभाग की प्रक्रिया
वाहनों की फिटनेस बनवाए जाने के लिए सबसे पहले वाहनों में स्पीड गर्वनर लगा होना चाहिए, साथ ही वाहन का कोई भी हिस्सा क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए और रेडियम के अलावा अन्य सारी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद वाहन को कार्यालय में लाकर फोटो खिचवाना पड़ता है, जिसकी जांच इंस्पेक्टर लेवल के अधिकारी द्वारा की जाती है। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है, ऐसे में वाहन में थोड़ी सी भी खराबी होने या दस्तावेज पूर्ण नहीं होने पर जांच अधिकारी द्वारा फिटनेस नहीं बनाई जाती है।
कागजों की खानापूर्ति पर सिमट जाती है जांच।
शहर में करीब दो सौ एेसी बसें है जो कि दूसरे प्रांतों से खरीदकर लायी गई है। तकनीकी फिटनेस की बात करें तो इन बसों में आए दिन टूटफूट होती है। ज्यादा दूरी तक न दौड़ सकने से इन बसों को ऑपरेटर सस्ते दामों में बेंचे देते हैं। कार्यालय में इन दिनों कागजी कार्रवाई तक ही फिटनेस डिपार्टमेंट सिमटा है।
आरटीआई के लगातार अनुपस्थित रहने से वाहनों की तकनीकी खामियां सामने नहीं आ पा रही हैं। फिटनेस शाखा पर रबडिंग टायर, पुराने टायर, बस में सीटों के बीच में गजह कम, ईंजन का आवाज करना , गेयर बॉक्स में खामी, ब्रेक और क्लिज को बगैर चैक किए सार्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं। यह पूरे काम को दलालों के माध्यम से सीधे तौर पर मोटा खेल करके किया जा रहा है।
हादसों का बनते है कारण
सवारी वाहनों के अलावा अन्य लोडिंग वाहनों को जांचने और उनकी फिटनेस दुरूस्त कराए जाने को लेकर क्षेत्रीय परिवहन निरीक्षक (आरटीआई) रूप शर्मा को तैनात किया गया है। आरटीआई शर्मा फिटनेस कार्यालय पर नहीं बैठते हैं। इस वजह से बूढ़े वाहनों की फिटेनस सार्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं। एेसे ही उम्र दराज वाहन दौड़ते समय फिटनेस की नजर से फे ल होते और लोगों को हादसे का शिकार होना पड़ता है।
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