प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते आरबीआई की गाईड लाईन जिले में हुई शिथिल

411 By 7newsindia.in Wed, Mar 7th 2018 / 07:59:25 मध्य प्रदेश     

शिक्के लेन देन में हो रही कोताही, 
संजीव मिश्रा सीधी
जिले में ग्राहकों व दुकानदारों के लिए सिक्के परेशानी का सबब बन रहे हैं क्योकि व्यापारियों के पास संग्रहित हुए सिक्के बैंक द्वारा जमा नहीं कराये जा रहे हैं, कुछ समय पूर्व देखा जाये तो चवन्नी ; अठन्नी पैसे का सिक्का इतिहास बन कर रह गया अब वही हाल एक, दो, पॉच, दस के  सिक्कों के साथ हो रहा हैं। विगत पॉच छह माह से जिले में खुल्ले पैसे लेन देन से हर कोई परहेज कर रहा है कारण सिर्फ इतना की असमाजिक तत्वों द्वारा बाजार में अफवाह फैल दी गई की सिक्के प्रचलन में पूरी तरह से बन्द हो गये है। जानकारों की माने तो ये सारी बॉतें पूरी तरह से आधारहीन व काल्पनिक है आर०बी०आई के अनुसार कोई भी ऐसा आदेश पारित नहीं हुआ है जिससे सिक्के प्रभावहीन हो यदि किसी के द्वारा भारतीय मुद्रा का अमपान होना पाया जाता है तो उसे किसी भी सूरत में वक्सा नहीं जायेगा।

 

उपभोक्ताओ के हितों को ध्यान में रखते हुए बैंक प्रबंधन द्वारा एक से लेकर दस रुपये तक का सिक्का बाजार में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया गया जिसे बोलचाल की भाषा में लोग चिल्लर कहते हैं। यही चिल्लर बच्चों को बचत की आदत डालते में सहायक होते है, पिगी बैंक में जमा चिल्लर बच्चों को अपनी मंडली में शान से कहने को शब्द देते हैं कि पिगी बैंक को तोड मैं अपनी पसंद की वस्तु खरीदूंगा, गृहणियां शादी, विवाह के अवसर पर उसे लुटाना अपनी शान समझती है। पिछले कुछ समय पूर्व तक इसी चिल्लर के लिए छोटे व्यापारी भिक्षुकों तक के आगे हाथ फैला देते थे। चिल्लर की कमी के कारण दुकानदारी प्रभावित होने लगती थी। समय का फायदा उठाकर चिल्लर की कालाबाजारी भी लोग करते थे। सौ रुपये के बदले 90 नब्बे रुपए तक का चिल्लर दिया जाता था। आज चिल्लर की हालत बदतर हो गयी है। नोटबंदी के बाद से समूचे जिले में सिक्कों का चलन तेजी से बढा पिछले एक वर्ष में अकेले भारतीय स्टेट बैंक की विभिन्न शाखाओं ने जिले में लगभग करोडो रुपये का सिक्का बाजार में बांटा गया जिसका उद्देश्य सिर्फ उपभोक्ताओं के हितो की रक्षा करना था किन्तु आज हालात यह है कि ये सिक्के सभी स्तर के लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गये हैं।

 

उजागर हुई प्रशासन की लचर व्यवस्था - 

लगभग पॉच छह माह से छोटे व्यापारी व उपभोक्ता खुल्ले की समस्या से जूझ रहे हैं जिसके चलते बाजार पूरी तरह से प्रभावित हो रहा है दूसरे शब्दों में अगर ये कहा जाए कि भारतीय मुद्रा का जिले में खुले आम अपमान किया जा रहा तो शायद अनुचित शब्द नहीं कहलायेगा, उससे भी दुखद बात यह है कि सब कुछ जानते हुए भी शासन प्रशासन पूरी तरह से आम जनमानस की समस्याओं से मुह फेर के बैठा हुआ है, अगर जल्द ही शासन प्रशासन अपनी लचर व्यवस्था से उपर उठकर जनमानस की समस्याओं के प्रति जागरूक नहीं होता है तो इसके दूरगामी परिणाम काफी भयावह हो सकते हैं।

 

जानकारों की मानें तो -

आर.बी.आई के नियमानुसार हर खाता धारक उपभोक्ता प्रतिदिन लगभग एक हजार तक के खुल्ले पैसे बैंक में जमा कर सकता है, साथ ही अपने आवश्यकता अनुसार खुल्ले पैसे बैंक से ले सकता है, कुछ लोगों द्वारा ये पूरी तरह से गलत अफवाह फैलाई गई है कि खुल्ले पैसे प्रचलन से बन्द हुए है, अगर किसी भी व्यक्ति के द्वारा भारतीय मुद्रा के लेन देन में वाधा पैदा किया जा रहा है तो वह दण्डनीय अपराध हो सकता है। जबकि शीर्ष बैंक के नेतृत्व में जागरूकता अभियान व प्रचार प्रसार के माध्यम से ग्राहको को सूचित भी किया गया कि एक,दो,पॉच,दस के सिक्के पूरी तरह से स्वीकार किये जाते है, इन सबके बाबजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।

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