पालीथीन खाकर मवेशी हो रहे बीमार

319 By 7newsindia.in Tue, May 22nd 2018 / 21:07:23 मध्य प्रदेश     
गंदगी के साये में चल रहा समग्र स्वच्छता अधियान
सीधी। अपनी सुविधा के लिए इजाद किए गए पॉलिथीन बैग्स मूक पशुओं की मौतों का कारण बन रहे हैं। प्लास्टिक की पन्नियों में भरकर खाद्य वस्तुओं का जूठन गली, मोहल्ले, सडक, नालियों पर फेंक दिया जाता है। पालतू पशु इन्हें खा लेते हैं। ये पन्नियां उनकी आंतों में फंसने लगती हैं और धीरे.धीरे बडे गोले का रूप ले लेती हैं। मवेशी अपने भूॅख को मिटाने के लिये यह नहीं समझते कि पॉलिथीन उनके पेट में जम जाएगी। ज्यादातर गाय. बकरियों के इलाज के लिए समय ही नहीं बचता। उन्हें अस्पताल लाने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है। पिछले एक दशक में शुन्यवत मवेशी ही अस्पताल लाए जा सके, कुछ समय पूर्व देखने में आया था कि एक गाय के पेट से १८ किलो झिल्लयां निकली थीं। 
 
कुछ समय पूर्व समाज में पन्नियों के कारण हो रहे हानि को देखते शासन प्रशासन द्वारा कड़े रूख को अपनाते हुए सक्रिय दिखें थें, कई संस्थानों में छापा मार कार्यवाही की गई साथ ही दुकानदारों को समझाईस के द्वारा भी समझाया गया कि अमानक पैमाने द्वारा इन पन्नियों का उपयोग पर्यावरण, मनुष्य व जानवारों को  काफी हानि पहुॅच रही है। जमीन की उर्वरक शक्ति भी नष्ट होती जा रही है। साथ ही दुकानदारों को बताया गया कि अगर हम सब एक होकर प्लास्टिक की बनीं बन्नियों के बजाय हाथ से बने थैलों का उपयोग करते हैं तो पहला फायदा यह होगा कि स्वारोजगार को बढ़ावा मिलेगा साथ ही हम सब एक स्वक्ष वातावरण बनानें में सहायक होगें उन सबसे भी बढ कर जो फायदा होगा वह यह कि असमयिक हो रही पशुओं की मौत भी रूकेगी।
 
गंदगी के साये में चल रहा समग्र स्वच्छता अधियान -
नगर पालिका से सभी वार्डो में अगर देखा जाये तो एक बात स्पष्ट होती है कि वास्तविक रूप में साफ सफाई का काफी अभाव है। शहर वासियों के जानकारी का अभाव या स्वाभावगत कमीयॉ कहें या फिर नगर पालिका के सफाई कर्मीयों की कार्य के प्रति उदासीनता कहें हर हाल में भुक्तभोगी मवेशियों को होना पड रहा है। शहर के अन्दर गंदगी फैलानें में वो भी खासकर अमानक पैमाने पर बनी पन्नियों को यातायात मार्ग पर फेंकनें में ऐसा नहीं है कि सिर्फ दुकानदारों को ही महारथ हासिल है, उपभोक्ता भी बाजार से सामान खरीद कर लाने के पश्चात सर्व प्रथम पन्नियों को ही घर के बाहर खुले में फेकनें मे दक्ष हैं। आवश्यकता है तो सिर्फ एक दृण संकल्प की साथ ही अमानक पैमाने पर बनी पन्नियों के वहिस्कार करने से एक साफ स्वच्छ वातारण बनाने में हम सब सहभागी बन सकते हैं।  अगर हम सब समय रहते जागरूक नहीं हुए तो कागजों में तो समग्र स्वच्छता अभियान चल ही रहा है।
 
खुले में विचरण कर खाने की तलाश करने वाली गायें, सांड, बकरियां इन पॉलिथीन बैग्स का शिकार होते हैं। जिला पशु चिकित्सालय के चिकित्सक के मुताबिक जाकरूकता के अभाव में लोग मवेशियों की जान अनजाने में ले रहे हैं। हम सब का कर्तव्य होता है कि सड़कों पर पन्नियॉ ने फेंकें। सामान्यत: देखने को मिलता है कि लोग प्लास्टिक में खाद्य सामग्री लपेटकर फेंक देते हैं। मवेशी प्लास्टिक समेत उन्हें खा जाते हैं। 
 
मवेशियों को खतरा -
गाय व इस श्रेणी के मवेशियों के पेट में चार चेंबर होते हैं। पहले चेंबर रुमन में प्लास्टिक फंस जाने से वह आगे नहीं बढ पाता। झिल्लियां एक.दूसरे से लपेटकर एक ही जगह पर जम जाती हैं। ऐसे में मवेशियों के पेट की पाचन क्रिया बंद हो जाती है और वे बीमार हो जाते हैं। कई बार ऑपरेशन कर प्लास्टिक निकाल लिए जाते हैं। हालांकि इसके बाद भी उन्हें संक्रमण के चलते जान का खतरा होता है। पशुओं के पेट में पन्नियां जमीं तो समझिए उनकेे बचने का चांस 50 फीसदी होता है। 
 
प्लास्टिक पुर्णत: प्रतिबंधित हो -
शहर में प्रतिबंध के बाबजूद अमानक पैमाने से बनी बन्नियों को उपयोग के्रता व विक्रेताओं द्वारा जम कर हो रहा है।  जानकारों की मानें तो किसी मवेशी के पेट में प्लास्टिक जम जाने पर हजार से 14 सौ रुपए तक का खर्च आता है। डेयरी वाले महंगी कीमतों पर खरीदे गए मवेशियों को खुला नहीं छोड़ते, इसलिए उनमें यह परेशानी नहीं आती। लोग मवेशियों को बांधकर रखने के साथ ही प्लास्टिक का उपयोग बंद करें तो राहत मिलेगी।
 
मवेशियों के लिए नुकसानदेह है
खुले में फेंके गए प्लास्टिक बैग गाय, बकरी, कुत्तों सहित अन्य जीवों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इनमें बेकार सब्जियां व खाने.पीने की वस्तुएं होने से मवेशी इन्हें खा लेते हैं। पशु चिकित्सालय में इस तरह के केस सामने आते रहते हैं। पॉलिथीन कई मवेशियों की मौत का कारण बनती है। जलाशय, नदी, नाले, नदी आदि में भी मछली आदि पॉलिथीन को खा लेती हैं, जिससे वे भी जिंदा नहीं बचते। 
इनका कथन - 
अपना थैला जिंदाबाद -
रेनू गुप्ता शिक्षिका हाऊसिंग बोर्ड कई थैलों में सब्जियां लेकर घर जा रहीं थीं। उनसे पूछा गया कि पॉलिथीन के भरोसे क्यों नहीं हैं तो जवाब मिला अपना थैला जिंदाबाद। प्लास्टिक में सब अलग.अलग तो होता है, लेकिन उसकी महक भी सब्जियों के साथ रह जाती है। वे कई सालों से थैले लेकर ही बाजार आ रही हैं। कभी भी कोई परेशानी नहीं होती। 
 
श्रीमती शैलेश सोनी भारत रक्षा मंच की उपाध्यक्ष का कहना है कि अमानक पैमाने में बनी पन्नियों के लगातार बढ रहे उपयोग में जहॉ शासन प्रशासन की अपने कार्यो के प्रति उदासीनता को दर्शाता है वहीं कुछ दुकानदारों की घोर लापरवाही को भी उजागर कर रहा है, कुछ लापरवाह दुकानदारों के हौसले वर्तमान समय में कुछ इस कदर बढ़े हुए है कि गर्म खाद्य पदाथों को भी पन्नियों में डाल कर दिया जा रहा है फिर चाहे दूध व्यापारियों की बात करें या फिर भोजन व नास्ता की दुकानदारों द्वारा जान बूझ कर खाद्य सामग्री के साथ बीमारियॉ परोसी जा रही हैं। 

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