निजी स्कूल बनें कमाई का जरिया. अभिभावक एवं शिक्षकों का करते हैं आर्थिक शोषण

संजीव मिश्रा
सीधी। मध्य प्रदेश बोर्ड परीक्षा परीणाम आने के बाद जिले के अभिभावकजनों का सोचने के नजरियें में छोडा सा बदलाव महसूस किया जा रहा है शायद उसकी मुख्य वजह विगत कई वर्षो से शासकीय विद्यालय के छात्रों व शिक्षकों ने अपने बेहतर पढाई का लोहा मनवाया है और यह भी प्रमाणित कर दिया है कि शहरों एवं ग्रामीण अंचलों मे संचालित निजी विद्यालय से वेहतर शिक्षा का स्तर शासकीय विद्यालयों में इस समय देखने को मिल रहा है। वर्तमान परिवेश में अभिभावक झूठी शानों शौकत के चलते खुद लुटने को तैयार रहते है जिसका पूरा फायदा शहर के मंहगें कहे जाने वाले निजी विद्यालय संचालक पूरी तरह से उठाते हैं साथ ही संस्थान की पैसों की भूॅख कुछ इस कदर बढ जाती है कि अपने विद्यालय में विगत कई वर्षो से सेवा दे रहे शिक्षकों को गर्मी के समय कोई भी मासिक वेतन नहीं दिया जाता है। ये अलग बात है कि गर्मी के अवकाश के समय शिक्षकों को आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना पडता है या दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक निजी संस्थान में विगत कई वर्षो से सेवा दे रहा शिक्षक या शिक्षिका पूरी तरह से वेरोजगार हो जाते है। उन्हे अपनी मूल भूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु नजदीकियों से उधार लेकर करना पडता है।जानकारों की मानें तो निजी विद्यालयों में एक निश्चित समयावधि से लगातार अपनी सेवायें देने वाले शिक्षकों को यूॅ वेरोजगार करना व किसी भी प्रकार से वेतन न देना पूरी तरह से अनुचित है, क्योंकि एक निश्चित समयावधि के पश्चात अन्य रोजगार तलास कर पाना काफी मुश्किल काम हो जाता है। निजी विद्यालय संस्थान द्वारा शिक्षक एवं शिक्षिकाओं को धमकाया जाता है कि अगर किसी भी प्रकार से विरोध के स्वर प्रखर हुए तो संस्थान द्वारा सारे नियमों को शिथिल करते हुए तत्काल प्रभाव से तुरन्त नोकरी से निकाल दिया जायेगा जिस भय के कारण संस्थान के हॉथों अपना आर्थिक शोषण कराने को शिक्षक मजबूर रहते हैं।अभिभावकों का हो रहा आर्थिक शोषण -महंगी शिक्षा व स्टेटस सिंबल की आड़ में निजी स्कूलों की मनमानी के चलते आज अभिभावकों की जेबें खाली हो रही हैं जबकि बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं। पढ़ाई के नाम पर कमाई की दुकान का दूसरा नाम बन चुके प्राइवेट स्कूलों को न तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता है न उन की सुरक्षा की उन्हें चिंता है तो बस अपने हित साधने की क्लास रूम में बच्चों के लिए भले ही सहूलियतें न हों पर वे फीस समय पर वसूलते हैं। आने जाने की नियमित सुविधा दें या न दें पर बस का किराया पूरा व समय पर लेते हैं। शिक्षा के नाम पर किताब कौपियां, बस किराया, वरदी, जूते आदि से ले कर बिल्डिंग फंड के नाम पर भी अभिभावकों से लाखों वसूले जाते हैं।लूट का खेल -जो काम सस्ती किताबों से चल सकता है फिर भी कमीशन कमाने के चक्कर में पेरैंट्स पर जबरदस्ती स्कूल से ही किताब कॉपियां, यूनीफौर्म तक खरीदने का दबाव डाला जाता है। छोटे बच्चों की जो किताबें बाहर से सस्ते दामो में आसानी से मिल जाती हैं उन्हें स्कूल वाले पब्लिशर्स से सांठगांठ कर महंगे दामों पर बेच कर अपनी जेबें भरते हैं। आज शिक्षक कक्षा में जाते जरूर हैं लेकिन वे सीमित पाठ्यक्रम पढ़ाने में ही विश्वास रखते हैं वरना उन का निजी ट्यूशन पढ़ाने वाला बिजनैस पिट जाएगा। शिक्षक बच्चों को अच्छे माक्र्स दिलाने का भरोसा दिलवा कर उन्हें बाहर ट्यूशन पढऩे पर मजबूर करते हैं।असुरक्षा का बोलबालास्कूल को बच्चों का दूसरा घर कहा जाता है, पेरैंट्स अपने बच्चों के लिए ऐसे स्कूलों का चयन करते हैं जो उन के बच्चों को ऐडवांस स्टडीज देने के साथ साथ उन की सुरक्षा की भी पूरी गारंटी दें, यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐडमिशन देने के वक्त सुरक्षा के लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन एक बार ऐडमिशन होने के बाद ऐसे सारे दावे खोखले साबित होते हैं। बच्चों के आवगमन एवं रोड क्रास कराने के साथ ही बच्चों के वाहन में बैठक व्यवस्था पूरी तरह से अनुचित रहती है जिसके चलते कभी भी बड़ी घटना घटित हो सकने का भय बना रहता है। कई बार अभिभावकों के शिकायत के बावजूद विद्यालय प्रबंधन या प्रभारी के खिलाफ कोई खास कार्यवाही नहीं होती है।सरकारी बनाम निजी स्कूलहर जगह निजी स्कूलों का ही शोर है, वो भी पूरी तरह से भ्रामक जानकारी के साथ बच्चों व अभिभावकों को भ्रमित किया जाता है। इनके बैनर पोस्टर की शुरूआत ही देशी या राष्ट्रीय विद्यालय नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रिय विद्यालय के रूप में होती है। अगर मध्य प्रदेश शासन की गाईड लाईन की बात करें तो यह एक बडा अपराध माना जाता है किन्तु शासकीय अमले के प्रभारी के द्वारा महज चन्द रूपयों में अपना ईमान बेंच दिया जाता है जिसका पूरा पूरा फायदा निजी विद्यालय संचालक उठाते हैं। सीधी जिले के शिक्षा विभाग की सबसे बडी नपुंशकता तो तब उजागर होती है जब देखने में आता है कि शासन के बनाये गये निश्चित माप दण्डों को शिरे से निजी विद्यालय संचालकों द्वारा खारिज कर दिया जाता है। जिला मुख्यालय में ही अकेले दर्जनों ऐसे विद्यालय संचालित हैं जहॉ बच्चे प्रतिदिन शिक्षाध्यन वाहन गैरेज, अंटारी, निजी घर, बरामंदा में करते है वो भी विद्यालय प्रबंधन द्वारा सीना ठोक कर विगत कई वर्षो लगातार वेपटरी शिक्षा व्यवस्था जारी है। कुछ अभिभावकों की अगर बात करें तो वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाना चाहते है क्योंकि एक तो यह स्टेटस सिंबल बन चुका है और दूसरा उन्हें लगता है कि उन का बच्चा प्राइवेट स्कूल में ही अच्छी पढ़ाई कर पाएगा माना तो यह भी जाता है कि निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं। हालांकि यह सोच गलत है सरकारी स्कूलों के टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं क्योंकि वे कई परीक्षाएं पास कर नौकरी हासिल करते हैं, जबकि निजी स्कूलों में कम सैलरी लेने वाले शिक्षक को प्रमुखता दे कर रखा जाता है।सरकारी स्कूलों से वेरूखी -सरकारी स्कूलों के प्रति बेरुखी का एक कारण यह भी है कि इन में हर जाति, धर्म, वर्ग व गरीब के घरों से बच्चे आ रहे हैं और ऊंची जातियों के मातापिता नहीं चाहते कि उन के बच्चे नीची जातियों के घरों के बच्चों के साथ पढ़ें चाहे उन का घरेलू आर्थिक स्तर कैसा भी क्यों न हो। आप को बता दें कि इन सब के लिए कहीं न कहीं अभिभावक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे फुली स्मार्ट क्लासेज, स्कूल की शानदार बिल्डिंग को देख कर अपने बच्चों का ऐडमिशन ऐसे स्कूलों में करवा देते हैं। ऐसा वे अपने स्टेटस के लिए करते है । भले ही उस स्कूल की फैकल्टी अच्छी हो या न हो अगर अभिभावक इस चकाचौंध से बाहर निकलें तो निजी स्कूलों की मनमानी बहुत जल्द रुक जाएगी और पेरैंट्स खुद को लुटने से बचा पाएंगसंजीव मिश्रा
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