प्रशासन की शह पर जिले में हो रहा शिक्षा का व्यापार

397 By 7newsindia.in Wed, Oct 10th 2018 / 12:32:08 मध्य प्रदेश     

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइन को पुलिस प्रशासन व परिवहन विभाग भी नहीं करा पा रहा पालन
संजीव मिश्रा
सीधी l जिले में चल रही है निजी विद्यालय बच्चों को बेहतर सुविधा देने के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस वसूल रही है किंतु सुरक्षा, शिक्षा एवं संस्कार के मामले में वह खरी नहीं उतर पा रही है। बच्चों को स्कूल से घर लाने के लिए निजी स्कूल बसें और ऑटो बच्चों के जान के साथ खिलवाड़ करते   नजर आते हैं। बच्चों को स्कूल ले जाते समय व वापस घर पहुॅचाते समय सारे नियमों को ताक में रख कर निजी विद्यालय संचालक एवं उनके 

 
विद्यालय वाहन के चालक, परिचालकों को बच्चों की सुरक्षा की कोई भी परवाह नहंी होती है। जिले के शैक्षणिक संस्थाओं की बसों की गति ५० से 
 
६० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ती हैं वह शहर के बाहर एवं कई बार विलंब होने पर इन्हीं निजी विद्यालयों की बसों की स्पीड ६०-८०0 कि
 
लोमीटर प्रति घंटा की देखने को मिल जाती हैं। मा० न्यायालय के स्पष्ट निर्देषन के बाबजूद कई निजी विद्यालयों द्वारा अभिभावकों को भ्रमित करने क
 
ी मंशा से नेशनल नहीं बल्कि इन्टरनेशनल जैसे शब्दों का प्रयोग होता है एवं शिक्षा का स्तर देखने पर स्पष्ट होता है कि विद्यालय के शिक्षक ओपन 
 
से १२ वीं पास किये है। जबकि स्पष्ट निर्देष है कि विषय विशेषज्ञ ही पाठ्यक्रम को पढायेगें किन्तु शासन के ठुलमुल रवैये से सभी त्रस्त हो चुके हैं।
 
नाम का रह गया स्पीड गवर्नर -
दरअसल बसों में स्पीड गवर्नर लगाए जाने के लिए परिवहन विभाग ने दिसंबर २०१७ तक का समय दिया था किंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई गाइड 
 
लाइन में स्पीड गवर्नर की अनिर्वायता तो शुरू से रही है, उसके बाद भी आज दिनांक तक यथा स्थिति खुद बयॉ हो रही है। अगर कुछ वाहन मालिकों 
 
ने  किसी कारणवश स्पीड गवर्नर लगवा भी लिया है तो उनमें से आधे से अधिक आज दिनांक तक खराब हो चुके हैं। कई वाहन मालिकों ने तो 
 
जानबूझकर निकाल लिया है। जिन कारणों से आज बसें पुन: पुराने ढर्रे पर चलने लगी हैं। 
 
बगैर फिटनेश बीमा के दौड़ रही खटारा बसें -
निजी विद्यालयों द्वारा विद्यार्थियों के आवागमन हेतु प्रयोग में लाने वाली बसों के नम्बर के आधार पर मध्य प्रदेश परिवहन विभाग की मदत से जानक
 
ारी लेने पर उजागर हुआ कि आधे से ज्यादा बसें बसें बगैर फिटनेश बीमा के ही जिले में फर्राटे मार रही हैं। साथ ही इन बसों पर मध्य प्रदेश शासन 
 
के नियमों के अनुसार ना तो आगे ना तो पीछे ही स्पष्ट शब्दों में नंबर अंकित किया गया है। जिला प्रशासन के दायित्व निर्वहन के प्रति निष्क्रियता के 
 
चलते शहर में ही नहीं जिले में भी कई उदाहरण ऐसे देखने को मिल जायेगें जो दिल्ली से खटारा खरीद कर बडी शान के साथ सीधी की सड़कों पर 
 
फर्राटे मार रही हैं।
 
नाम की रह गई शासन की गीदड़ भपकी -
जिले में शासन की ओर समय समय पर मीटिंग बुलाकर विद्यालय संचालक एवं उत्तरदायी अधिकारी एवं कर्मचारियों को गिरते शिक्षा के स्तर एवं 
 
अन्य आवश्यक गतिविधियों पर चर्चा होती है, साथ ही नियम पालन में कसावट लाने हेतु जिला प्रशासन द्वारा गीदड़ भपकी भी दी जाती है किन्तु म
 
ीटिंग हॉल से बाहर आते हुए सारे नियम कानून फाइलों में बंद हो जाते हैं रह जाता है तो सिर्फ  कमियों के सुधार हेतु लेनदेन का चक्कर तभी तो विगत 
 
कई वर्षों से जिले में मान्यता समाप्त होने का खेल चल रहा है। आपको बताते चलें कि वर्ष २०१६ -१७ शिक्षा सत्र में कई विद्यालयों की मान्यता शिक्षा 
 
विभाग द्वारा रद्द कर दी गई थी किंतु बिना कमियों को सुधारे उन विद्यालयों की मान्यता है पुन: आगे बढ़ा दी गई है। दूसरे शब्दों में अगर यह कहा 
 
जाए कि विद्यालय की मान्यता सिर्फ लेन.देन के खेल के लिए की जाती है तो गलत नहीं होगा। जिले में वर्तमान समय में लगभग ५०० से भी अधिक 
 
विद्यालय संचालित हैं जो कि कुछ की बात अगर छोड़ दी जाये तो ज्यादातर विद्यालय मध्यप्रदेश शासन की बनाई गई गाइडलाइन पूरा नहीं कर पा रही 
 
हैं । 
 
उचित व पारदर्शी कार्यवही के अभाव में होगा धरना - संजीव
संजीव मिश्रा अध्यक्ष भारत रक्षा मंच जिला इकाई सीधी ने जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जिले में शिक्षा एक व्यापार बनकर रह 
 
गया है जहां जिले के आम नागरिक निजी विद्यालयों के खिलाफ  लगातार कई बार शिकायत दर्ज करायी गई है किन्तु आज दिनांक तक कोई भी उ
ि
चत व पारदर्शी कार्यवाही न होने की स्थिति में आम जन शासन की नीतियों से असन्तुष्ट नजर आ रहे हैं। सारी कार्यवाही टेबल पर सिर्फ लेन देन तक 
 
ही सिमट कर रह जाती है। मध्य प्रदेश शासन की बनाई गई गाइडलाइन के अनुरूप जिले के निजी विद्यालय नाम मात्र के ही किसी ढंग से पालन कर 
 
पाते हैं। जिले में कई ऐसे विद्यालय हैं जहॉ बच्चों की बैठक व्यवस्था सुन्यवत प्रतीत होती है जहॉ बच्चों को भेड़ बकरियों की तरह दो कमरे के 
 
विद्यालय में सैकड़ों बच्चों को ढूॅस ठूॅस कर भरा जाता है । अगर मध्य प्रदेश शासन की गाइड लाइन की बात करें तो स्कूलों में कुछ मूलभूत 
 
सुविधाओं का होना आवश्यक माना गया है जिनके पालन ना होने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का अधिकार जिला प्रशासन के पास सुरक्षित होता है 
 
किंतु हर वर्ष जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा मान्यता रद्द करने का नोटिस निजी विद्यालय संचालकों को दिया जाता है किंतु पारदर्शी कार्यवाही ना होने के 
 
कारण लेनदेन कर सारा मामला बंद कमरे में निपटा लिया जाता है। यथा स्थिति जस की तस बनी रहती है निजी विद्यालयों की अगर बात करें तो स्क
 
ूल बसों के लिए कुछ आवश्यक नियम हैं जिनका पालन होना अनिवार्य माना गया है जैसे कि बस के आगे फस्र्ट एड बॉक्स लगा होना, गति को नियं
 
त्रित करने के लिए मानक स्तर का स्पीड गवर्नर लगा होना, बस के भीतर अग्निशमन यंत्र लगा होना, बस में २ दरवाजे लगे होने के साथ पीछे आपात
 
कालीन खिड़की होनी चाहिए साथ ही बस की सभी खिड़कियॉ जाली से पैक होना चाहिए जिससे बच्चे अपना शरीर का अंग बाहर न निकाल सके, 
 
बस के भीतर सीसीटीव्ही कैमरे लगे होने अनिवार्य है, बसों में जीपीआर डिवासइस लगा होना चाहिए जिससे पता चल सके कि बस वर्तमान समय में 
 
कहां है, बच्चों के स्कूल बैग रखने के लिए अलग से स्थान होना चाहिए, बस में बालिका सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसमें महिला अटेंडर होना 
 
अनिवार्य है, उचित पैमाना के हिसाब से बस में रेडियम लगे हो बस के टायर ज्यादा किसे हुए ना हो बस के आगे पीछे की लाइट इंडिकेटर चालू हो 
 
किंतु यह सारे नियम तो नियम पुस्तिका में ही सीमित होते हैं सीधी जिले में इन नियमों को दरकिनार कर सिर्फ लेन.देन की क्रिया ही प्रभावशाली प्रतीत 
 
होती है। श्री मिश्रा ने आग कहा कि शिक्षा सत्र के प्रारंभ होते ही शासन प्रशासन द्वारा निजी विद्यालय संचालकों पर नकेल नहीं कसी गई तो आम जन 
 
धरना प्रदर्शन करने को वाध्य होगें।

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