जीवन दायनी सूखा नदी अतिक्रमण एवं प्रदूषण के चलते बनी नाला

पचास प्रतिशत भू भाग अतिक्रमण की चपेट में, शासन कुम्भकरणीय नींद में मस्त
संजीव मिश्रा
सीधी । शहर के बीचों बींच एक समय की जीवन दायनी नदी के नाम से विख्यात सूखा नाला का आज अस्तित्व ही समाप्त होते ही दिख रहा है। जानकारों की मानें तो गोरियरा बॉध के समीप से सूखा नाला चल कर शहर के बीचों बीच हो कर निकलता है जो कि आगे चल कर ग्राम कालू भारत में हिरन नाला एवं सूखा नाला एक हो जाते हैं उसके पश्चात ग्राम देवघटा के पास पन्ना नामक जगह में सोन नदी में समाहित हो जाता है। कुछ लोगों की मान्यता है कि सन् १८३७ में रीवा राज्य के महाराजा गुलाब सिंह द्वारा रीवा राज्य की धरोहर एवं सीमा के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्रित एवं लिखित रूप में करने का दायित्व जीतन सिंह को सौंपा गया था जिन्होने अथक मेहनत के फलस्वारूप सम्पूर्ण जानकारियों को एकत्रित कर रीवा राज्य दर्पण पुस्तक राज दरवार में पेश की थी। रीवां राज्य दर्पण पुस्तक को जानकार एवं विशेषज्ञों द्वारा एक अनमोल धरोहर के रूप में स्वीकार किया गया था इस पुस्तक में महान जानकार विद्वान अकबर के नौ रत्नों में शामिल पं० बीरबल की जन्म स्थल घोंघरा सीधी बताया गया है वहीं सोन को नाला नहीं अपितु नदी के समकक्ष बताने का प्रयास किया गया है। ये अलग बात है कि इन तत्थ्यों की अधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हो पायी है शायद इन्ही कारणों से आज के युवा सारी बातों को कोरी कल्पना मान कर सिरे से खारिज कर देते हैं।वर्तमान समय में सूखा नाला अपनी दुर्दशा रोने को वेवस व लाचार दिख रहा है जिसकी मुख्य बजह जिला प्रशासन, राजस्व विभाग एवं नगर पालिका प्रशासन का ढुलमुल रवैया कहे या फिर अपने मूल भूत दायित्व निर्वहन से विमुख कार्य शैली कहें, हर हाल में आमजन के अनुसार दोषी सिर्फ प्रशासन है जिसके चलते आज लगभग पचास प्रतिशत से ज्यादा सूखा नाले का भू भाग ही गायब हो गया है। दिखता है तो केवल सूखा नाले के भूभाग पर बडे बडे आलीशान बंगले जो कि मानों प्रशासन को बौनंा साबित कर रहे हों। सूखा नाले के दुदर्शा की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है बची कुची कसर होटल संचालक, नर्सिंग होम संचालक, किराना व्यवसायी, मॉस विक्रेता पूरी करते हैं इनके पास जितना भी बचा कुचा अपशिष्ट पदार्थ होता है सब लाकर यहीं प्रवाहित करते हैं। आलम कुछ यूॅ हो गया है कि सामान्य रूप से सूखा नाले के समीप आ रही दुर्गन्ध के कारण कोई भी व्यक्ति बिना नाक में रूमाल रखे खडा नहीं हो पाता है। मानसून के मौसम में अगर ठीक ठाक वारिष हो जाती है तो अतिक्रमण कारियों के माथे पर पशीना दिखने लगता है मानों अतिक्रमण में बने घर कहीं डूब न जाये। समय रहते अगर जिला प्रशासन एवं नपा प्रशासन द्वारा उचित दण्डात्मक कार्यवाही नहीं कि जाती है तो वो दिन दूर नहीं जब अतिक्रमण कारियों को घर से सुरक्षित स्थल पर जाने के लिये मानसून के मौसम में नॉव का सहारा लेना पडे। जानकारों की मानें तो पूर्व कलेक्टर विशेष गड़पाले द्वारा लगातार मिल रही शिकायतों के परिणामस्वारूप सूखा से सटे सभी अतिक्रमणकारियों की पूरी फाइल राजस्व विभाग द्वारा तैयार कर ली गई जो कि बहुत जल्द ही सूखा को अतिक्रमण से मुक्त करने का पूरा खाका का यथार्थ में परिणित करने से पहले ही राजनैतिक दबाब के चलते सीधी से स्थानांतरित कर दिया गया एवं अतिक्रमण मुक्त की कार्यवाही यथावत रह गयी ।
प्रोजेक्ट से होगा कायाकल्प - सीधी विधायक
इतिहास जानकार सीधी विधायक पं० केदार नाथ शुक्ल जिनकी गिनती विधायक के रूप में बाद में आती है पहले आम जन इन्हे एक सरल, सहज स्वाभाव के साथ साथ विशेष रूप से धर्म, इतिहास, व समाज के जानकार के रूप में देखते हैं। श्री शुक्ल से सूखा नदी पर दिनों दिन बढ रहे अतिक्रमण एवं प्रदूषण के विषय में जानकारी चाही गई तो उत्तर बडे ही सरलता से देते हुए बताया गया कि निश्चित तौर पर पूर्व काल में सूखा नदी को बडे ही श्रद्वा के साथ देखा जाता रहा है ये अलग बात है कि प्रदूषण और अतिक्रमण के चलते आज अपनी पहचान खोता जा रहा है किन्तु पूर्व के समय में ऐसी मान्यता थी कि सूखे रोग से पीडि़त बालकों का इलाज सूखा के स्वच्छ जल में स्नान करने से हो जाता था। आगे श्री शुक्ल ने बताया कि सूखे के महत्व को बरकरार रखते हुए सीधी विधायक होने के नाते एक लम्बे मेहनत के बाद जहॉ सीधी को स्मार्ट सिटी का रूप देने का प्रयास किया गया वहीं सूखे नाले को पुन: जीवित करने का प्रयास किया गया है। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में सूखा नाले को विशेष तौर से अतिक्रमण एवं प्रदूषण मुक्त करने का कार्य सामिल किया गया है।शासन की निरंकुशता का परिणाम है अतिक्रमण - सुनीलवरिष्ट समाज सेवी एवं अधिवक्ता सुनील खरे ने बताया कि पूर्व में जिले वासियों का सूखा नदी के साथ विशेष भावनात्मक लगाव हुआ करता था किन्तु जिला प्रशासन एवं नपा प्रशासन की निरंकुसता का परिणाम है कि आज लगभग पचास प्रतिशत के आस पास सूखा नाला का भूभाग अतिक्रमण की चपेट में शामिल हो गया है। वहीं प्रमोद कुमार मिश्रा अध्यक्ष पतांजलि योग समिति ने बताया कि आज सूखा नाला अपनी दुर्दशा के दिन देख रहा है शहर के बीचों बींच बहने वाले नाले की स्थिति कुछ यूॅ है कि पूरे शहर का कचरा, गंदी नाली का पानी, मलवा, शहर के प्रतिष्टित होटल एवं अन्य व्यापारियों द्वारा ठोंस एवं तरल अपशिस्ट को सीधे सूखा नाले में फेंक दिया जाता है जिस पर अकुंश लगाने का जिला प्रशासन द्वारा आज दिनांक तक कोई भी सार्थक पहल सामने नहीं आयी है। भारत रक्षा मंच की महिला मोर्चा प्रमुख श्रीमती शैलेष सोनी ने जिला प्रशासन एवं नपा प्रशासन पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्व विभाग चन्द रूपयों के लालच में आकर सूखा नाले पर निरंतर चल रहे अतिक्रमण को देेखते हुए चुपचाप मूक वधिर बना हुआ है जिसके चलते अतिक्रमण कारियों के हौसले दिनोंदिन बुलंद होते जा रहे हैं।जल प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँजल प्रदूषण का प्रभाव जलीय जीवन एवं मनुष्य दोनों पर पडता है। जलीय जीवन पर जल प्रदूषण का प्रभाव पादपों एवं जन्तुओं पर परिलक्षित होता है। जल प्रदूषण का भयंकर परिणाम राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिये एक गम्भीर खतरा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में होने वाली दो तिहाई बीमारियाँ प्रदूषित पानी से ही होती हैं। जल प्रदूषण का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर जल द्वारा जल के सम्पर्क से एवं जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा पडता है। पेयजल के साथ.साथ रोगवाहक बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ मानव शरीर में पहुँच जाते हैं और हैजा, टाइफाइड, शिशु प्रवाहिका, पेचिश, पीलिया, अतिशय, यकृत एप्सिसए एक्जीमा जियार्डियता, नारू, लेप्टोस्पाइरोसिस जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं जबकि जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा कोष्टबद्धता, उदरशूल, वृक्कशोथ, मणिबन्धपात एवं पादपात जैसे भयंकर रोग मानव में उत्पन्न हो जाते हैं। जल के साथ रेडियोधर्मी पदार्थ भी मानव शरीर में प्रविष्ट कर यकृतए गुर्दे एवं मानव मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।
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