मोदी की पहल पर शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान के तहत ग्वालियर जिले में हुए नवाचार
ग्वालियर | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर शुरू हुए “स्वच्छ भारत अभियान” के तहत ग्वालियर जिले में हुए नवाचार पूरे देश के लिये उदाहरण बन रहे हैं। ग्वालियर जिले में विशेष तकनीक का इस्तेमाल कर ईजाद किए गए बायो-टॉयलेट की धूम देशभर में है। पथरीली, दलदली व काली मिट्टी वाले ऐसे क्षेत्र जहाँ साधारण तकनीक से बने शौचालय कारगर नहीं होते, उन क्षेत्रों में ग्वालियर के बायो-टॉयलेट सफल साबित हुए हैं। जाहिर है देश के विभिन्न राज्य ग्वालियर के बायो-टॉयलेट मॉडल को अपनाने के लिये आगे आए हैं। साथ ही भारत सरकार ने कम खर्चीले और विशेष क्षेत्रों के लिये उपयुक्त शौचालय के इस मॉडल को मान्यता दी है। वैज्ञानिक तरीके से ह्यूमन वेस्ट का निष्पादन हो रहा है, बल्कि पानी की भी बचत हो रही है।
इन शौचालयों में वैज्ञानिक तरीके से ह्यूमन वेस्ट का निष्पादन हो जाता है। साथ ही पानी की भी बचत होती है। जिला पंचायत ग्वालियर में पदस्थ परियोजना अधिकारी तकनीकी श्री जय सिंह नरवरिया ने बायो-टॉयलेट की इस तकनीक को खोजा है। जिले के पर्वतीय एवं वनांचल क्षेत्र में स्थित जनपद पंचायत घाटीगाँव के ग्राम सुरेहला और परपटे का पुरा इत्यादि गाँव में पथरीली जमीन पर बायो-टॉयलेट बनाए गए हैं। इसी तरह टेकनपुर ग्राम पंचायत के माधौपुर ग्राम में जल भराव वाली जमीन पर लगभग डेढ़ दर्जन बायो शौचालय बनाए गए हैं। इस तकनीक से ग्वालियर जिले में खासतौर पर ग्रामीण अंचल में अब तक 300 बायो-टॉयलेट बनाए जा चुके हैं, जो सफलतापूर्वक उपयोग हो रहे हैं। ग्वालियर शहर में किला, फूलबाग, वोट क्लब व रेलवे स्टेशन (प्लेटफॉर्म नं.-4 के समीप) सहित लगभग दो दर्जन स्थानों पर बायो-टॉयलेट बनाए गए हैं।
प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए गाँव में भी ग्वालियर का बायो-टॉयलेट
सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गोद लिए गए गाँव जयापुर में भी ग्वालियर के बायो-टॉयलेट मॉडल को अपनाया गया है। इसी तरह ग्वालियर जिले में केन्द्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा गोद लिए गए गाँव चीनौर में भी इसी पद्धति से बायो-टॉयलेट बनवाए गए हैं। ग्वालियर के बायो-टॉयलेट मॉडल को देखने के लिये जापान के प्रतिनिधि भी आ चुके हैं। इनके अलावा भारत सरकार के प्रतिनिधिगण सहित देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि न केवल इस मॉडल को देखने आ चुके हैं। गत दिसम्बर माह में देश के 50 नगरों से आए दल भी इन बायो-टॉयलेट को देखकर अचंभित रह गए। ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) बनने में देशभर में अव्वल शहर ग्वालियर की एक्सपोजर विजिट पर ये दल आए थे।
कम खर्चे में तैयार हो जाता है बायो-टॉयलेट
बायो-टॉयलेट की यह तकनीक अत्यंत कम खर्चीली है। एक सीट का बायो शौचालय मात्र 15 हजार रूपए और 10 सीट का सार्वजनिक शौचालय लगभग 50 हजार रूपए में तैयार हो जाता है। देश के कई राज्यों ने ग्वालियर के बायो-टॉयलेट मॉडल को अपनाया है। इनमें छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश व तेलंगाना राज्य शामिल हैं।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत गाँवों में भी डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण
वाहन द्वारा घर-घर से कचरा संग्रहण के पायलट प्रोजेक्ट में ग्वालियर जिला भी शामिल है। जिले के ग्रामीण अंचल में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चारों विकासखण्डों के 10 – 10 गाँवों के सेक्टर में यह काम शुरू किया गया है। इनमें जनपद पंचायत मुरार के अंतर्गत वीरमपुरा सेक्टर, घाटीगाँव में तिघरा, डबरा में टेकनपुर व भितरवार में पुरा बनवार सेक्टर शामिल है।
मालूम हो ग्वालियर जिला खुले में शौचमुक्त हो चुका है। ग्वालियर जिले के ग्रामीण अंचल में वर्ष 2016-17 के दौरान कुल 68 हजार शौचालय बनवाए गए, जिसमें से लगभग 58 हजार शौचालय सरकारी अनुदान से और 10 हजार शौचालय लोगों ने स्वयं के खर्चे पर बनाए हैं।
बायो-टॉयलेट से निकले शुद्ध पानी से सब्जी की खेती
ग्वालियर नगर निगम कमिश्नर श्री विनोद शर्मा के सरकारी आवास में इसी तकनीक से बनाया गया बायो-टॉयलेट की भी खूब चर्चा है। उनके बंगले में तीन शौचालय बने हैं जो एक बायो-डायजेस्टर टैंक से जोड़े गए हैं। इसमें विशेष प्रकार के वैक्टीरिया डाले गए हैं। ह्यूमन वेस्ट को ये वैक्टीरिया खा जाते हैं और डायजेस्टर से साफ पानी निकलता है। नगर निगम कमिश्नर के बंगले में इसी पानी से सब्जी भी उगाई जा रही है।
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