लगन के चलते बसों का आवागमन हुआ प्रभावित
सन्नाटा पसरा रहा स्टैण्ड में यात्री होते रहे परेशान
सीधी l वर्ष में सबसे अधिक शादी व्याह वाला माह अप्रैल व मई दो परिवारों को जोडनें का कार्य करता है और चारों ओर खुसनुमा महौल निर्मित होता है, वहीं सूर्य की लपट मारती तीखी किरणें भी उत्सव वाले परिवार को कम प्रतीत होती हैं, किन्तु इसका दूसरा पहलू जो उभर कर सामने आता है वह यह कि यातायात व्यवस्था के अन्तर्गत सड़क मार्ग में बसों का विशेष योगदान रहता है। जानकारों की मानें तो अधिक पैसों की चाह में बस मालिकों द्वारा बिना आर टी ओ आफिस में टैक्स चुकाये व विना परमिट इशू कराये बडे ही धडल्ले के साथ निर्धारित रूट मैप से विमुख होकर बसों को शादी बरात मे भेज देते है, जिसके चलते निर्धारित रूट में यात्रा करने वाले यात्रियों को काफी मशक्कत का सामना करना पडता है। ऐसा ही महौल शनिवार को देखने को मिला जहॉ यात्रियों को अपनी यात्रा पूरी करने हेतु घंटो इंतजार के बाबजूद भी रूट में चलनी वाली बसों के दर्शन नहीं हुए। जो बसें शादी व्याह में जाने के पूर्व रूट पर चल रहीं थीं उनमें झमता से अधिक सवारी ठूस ठूस कर भरे हुए थें साथ ही यात्रियों मनमाना यात्रा शुल्क लिया गया जिसके चलते झूमा झटकी तक की नौमत देखने को मिली, परेशान यात्रियों में चर्चा का विषय रहा कि क्या वास्तव में जिला परिवहन अधिकारी व जिला यातायात प्रभारी सिर्फ नाम के ही स्थापित किये गये है या फिर आपसी सॉठ गॉठ कर अपने कर्तव्यों से पूरी तरह विमुख हो चुके हैं।नियमों की हो रही अनदेखी -जानकारों की मानें तो सरकार मुसाफिरों की सुरक्षा, सुविधा, बीमा और पहचान व सावधानी के लिए चालक.परिचालक समेत बस मालिकों के लिए कई नियम निर्धारित किए हैं। लेकिन प्रशासन की अनदेखी से इसका पालन नहीं किया जा रहा है। इससे यात्रियों का सफर दिक्कतों से भरा हुआ है। निजी बसों में न तो किराया सूची लगी है और न ही रूट की जानकारी। महिला आरक्षण भी नदारद है और महिलाओं की सीट पर पुरुष यात्री बैठकर यात्रा कर रहे हैं।ओवर लोडिंग धड़ल्ले से जारी -यात्रियों के लगेज को बसों की छत पर रखा जाता है, जिनकी ऊंचाई कईबार बहुत अधिक हो जाती है। पूर्व में जिले में यातायात प्रभारी की समझाईस पर बसों में निर्धारित सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करवाई गई थीं और बसों के पीछे लगी जाली हटवाकर इमर्जेंसी विंडो लगवाई गई थी। इसे भी धता बताते हुए कई बसों में पीछे शीशे के स्थान पर लोहे की चादर लगवा दी गई हैं। जिले में लोकल और बाहर से आने वाली बसों को मिला करीब एक सैकड़ा बसें चलती हैं। जिसमें कई जिला पविहन कार्यालय में पंजीकृत है निर्धारित रूटों में चलने हेतु, नियमानुसार यात्रियों को ढोने वाली बसों व अन्य छोटे वाहनों पर उनका रूट व किराया सूची चस्पा होनी चाहिए। लेकिन जिले में चल रही अधिकांश बसों में रूट दर्ज नहीं है और किराया सूची तो किसी भी बस में नहीं लगाई गई है। छोटे वाहन भी सवारियों के हिसाब से अपने रूट निर्धारित करते हैं। जिस जगह की सवारियां अधिक मिलीं उसी तरफ वाहन चल दिए। मेलों व अन्य आयोजनों के समय बस संचालक भी बिना सूचना के अपनी बसों का रूट बदल देते हैं।शीशे पर नहीं लिखा टोल फ्री नंबरजानकारों की मानें तो सरकार ने भी सभी यात्री बसों के शीशों पर टोल फ्री नंबर सहित बसों के परमिट नंबर, बीमा, फिटनेस, वैद्य तारीख आदि लिखवाने के आदेश जारी किए थे। लेकिन बस मालिकों द्वारा इस आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। यही हाल स्कूल बसों का भी है।ड्रेस कोड का नहीं हो रहा पालनजिले में चल रही कमो.बेश सभी बसों में बस के चालक या कंडक्टर ड्रेस में नहीं रहते। शासन ने सभी यात्री बसों के चालकां व परिचालकों के लिए ड्रेस कोड व नेम प्लेट तय किए हैं। ताकि बस स्टाफ को आसानी से पहचाना जा सके। वाहन में किसी भी तरह की असुविधा होने पर यात्री शिकायत कर सकें। साथ ही स्टाफ द्वारा अभद्रता किए जाने पर पहचान के साथ उसका नाम मालूम चल सके। लेकिन जिले में इसका पालन नहीं हो रहा है।फिटनेस पर नहीं ध्यानजिला मुख्यालय से गुजरने वाली अधिकांश बसें जर्जर हालत में पहुंच चुकी हैं। सवारियों को ढोने वाली इन बसों को फिटनेस सर्टिफिकेट की दरकार होती है।लेकिन जिले में इस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और न ही बसों का कभी निरीक्षण किया जाता है। यहां कि कई बसों में स्पीड मीटर सहित विभिन्न मीटर व बोनट, गियर, सीटें सभी की हालत खराब है। जुगाड़ पर टिकी ये बसें बिना रोक.टोक दौड़ रही हैं जिले में शिलेशिलेवार हो रहे बस हादसे के बाद भी जाबबदेह अधिकारी कुभकरणीय नींद में सो रहे हैं
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