जिले के पॉच सैकड़ा से ज्यादा मेडिकल स्टोरो का हो रहा संचालन, औचक निरीक्षण का अभाव
० मेडिकल रजिस्ट्रेशन किसी और का दुकान चला रहा कोई और, आखरी में फॅसता कोई और है
० झोला छापो ने मेडिकल स्टोर को ही बना दिया क्लीनिक
सीधी।जिला प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते सीधी में लगभग 550 से ज्यादा मेडिकल स्टोर संचालित हैं, जहॉ नियमों को ताक पर रख संचालन का कार्य किया जा रहा है। अधिक से अधिक धन कमाने की चाह लिये डंके की चोंट पर कई मेडिकल स्टोर तो खुद हर मर्ज का इलाज करते नजर आते हैं। आपको बताते चलें कि गलत दवाओं के सेवन के चलते प्रतिमाह दर्जनो मरीज उपचार हेतु बड़े शहरो की ओर रूख करते हैं। उसके बाद भी इन पर विधिक कार्रवाई का अभाव प्रमाणित करता है कि टेबल के नीचे से लिये जाने वाले लिफाफा का वजन शायद ज्यादा रहता है।आपको बताते चलें कि मेडिकल स्टोर्स संचालित करने के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाये गयें है जिनका अनिवार्य रूप से पालन होना चहिए किन्तु मिली भगत के चलते बिना स्थल परीक्षण किये ही थोक के भाव मेडिकल स्टोर संचालन का प्रमाण पत्र बॉटा जा रहा है। बात अगर नियमों की करें तो हर मेडिकल स्टोर पर एक फ ार्मासिस्ट होना अनिवार्य है। फ ार्मासिस्ट के पास डी फ ार्मेसी का प्रमाण पत्र होना चाहिए। हर मेडिकल स्टोर्स का बोर्ड तथा उस पर रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज होना चाहिए। मेडिकल स्टोर्स पर फ्र ीज की व्यवस्था होनी चाहिए। मेडिकल स्टोर शीशायुक्त हो ताकि धूल के कण दवाओं पर न जमें।शहरी क्षेत्र के मेडिकल स्टोरों पर कंप्यूटर अनिवार्य रूप से होना चाहिए। पंजीयन प्रमाण.पत्र तथा निश्चित समय पर नवीनीकरण का प्रमाण.पत्र हो। योग्यता धारी व्यक्ति ही मेडिकल स्टोर का संचालन करे। इसके साथ ही अन्य कई महत्वपूर्ण नियम हैं जिनका पालन मेडिकल स्टोर संचालक के द्वारा करना अनिवार्य है किन्तु यर्थाथ के धरातल पर कृयान्वयन होता नही दिख रहा है।मौत के मुहाने तक पहुॅचा रहें अप्रशिक्षित -
स्वास्थ्य विभाग जनता के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भले ही जवाबदेह हो, लेकिन उतना गंभीर नहीं दिखता। स्वास्थ्य विभाग के नियमों की अवहेलना करके तमाम मेडिकल स्टोर्स, पैथालोजी, नर्सिंगहोम और अल्ट्रासाउंड संचालित करने वाले लोग गरीबों की जिंदगी न केवल मौत की ओर धकेल रहे हैं, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। शासन के आदेश के बाबजूद भी स्वास्थ्य महकमे में कोई पहल नजर नही आ रही है। जिला मुख्यालय में ही कई ऐसे मेडिकल स्टोर संचालित हैं जो दवा विक्रय के नाम पर नशा बेंच रहें हैं और युवा इसका सेवन करके समाज में अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं जिला मुख्यालय में जबाबदेह अधिकारी कर्मचारी के नाक के नीचे कई मेडिकल स्टोर ऐसे भी संचालित हैं जो एक्सपायर दवाईयों का भंडार ही अपने दुकानो में रखे हैं उसके बाद भी इन पर विधिक कार्रवाई से परहेज किया जा रहा है।झोला छॉप ग्रामींणो के स्वास्थ्य के सांथ कर रहें खिलवाड़ -
जिला प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते सबसे दयनीय हालत ग्रामीण क्षेत्रों की देखने को मिल रही है। जहां गुमटी तथा मेज पर दवाएं रखकर बेची जाती हैं। इसी तरह पैथालोजी और क्लिनिक गांव.देहात के बाजारों में कुकुरमुत्ते की तरह हैं, जो मनमाने ढंग से मरीजों से पैसे तो लेते ही हैं, जांच और इलाज भी मनमाना करते हैं। दवाओं की बिक्री पर नजर रखने के लिए जिले में एक ड्रग इंस्पेक्टर की तैनाती है और सीएमओ तथा अन्य सम्बंधित अधिकारियों पर निगहबानी की जिम्मेदारी होती हैए, परंतु यदि कोई विशेष आदेश न मिले तो ये अधिकारी जांच करने की जहमत नहीं उठाते हैं।इनका कहना है -
बिना रजिस्ट्रेशन के मेडिकल स्टोर्स या अन्य इस तरह के प्रतिष्ठान चलाने वालों के विरुद्ध जल्द ही कठोर कार्रवाई की जायेगी। वर्तमान में मेरे पास तीन जिलो का प्रभार है, ऐसे में वार्षिक अवलोकन वा औचक निरीक्षण नही हो पाया है।राधेश्याम वट्टी, औषधि निरीक्षक सीधी।
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