वापस लौट आओ तुम ......

789 By 7newsindia.in Wed, Aug 23rd 2017 / 07:21:03 लेख- कविता     

मैं प्रिया खुश थी अपनी छोटी - सी दुनिया में, अपने पति, अपने घर- परिवार व अपने बच्चों के साथ। फिर न जाने क्यों, कब, कैसे राज अचानक मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई। हां, मैं एक साधारण नारी हूँ , मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है। मैं भी किसी के प्यार में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है। नहीं...मैं कोई बच्ची नहीं। पति कोई खिलौना नहीं। घर - परिवार, शादीशुदा जिंदगी कोई मजाक नहीं कि कल कोई दूसरा मिला तो आज पहला छोड़ दिया। मैं भी एक औरत हूँ , मेरे भी दिल में कुछ अरमान हैं, इच्छाएं हैं। यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं। मैं मजबूर थी अपने दिल के हाथों। राज मेरी जिंदगी में एक चमकते हुए सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया। अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए मै हमेशा समझाती रहती कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है। लेकिन यह गुनाह कर गई मैं। राज जवान था , सांवला रंग, साढ़े पांच फुट के लगभग हाइट। उसकी आंखें जब कभी भी मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता। राज अक्सर मुझसे हंसी - मजाक करता। मुझे बहुत हँसाता रहता और यही उसकी हंसी - मजाक एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई। मैंने अपनी एक दोस्त से पूछा भी कि इसमें मेरी क्या खता है, वह मेरी परवाह करता है, मुझसे प्यार करता है, सुख-दुख में खड़ा होता है, इससे बढ़कर और क्या हो सकता है। हालाँकि मेरी दोस्त मुझसे कहती है कि मैं सही नहीं हूँ और मेरा यह प्यार नहीं पागलपन है। एक दिन फुर्सत के क्षणों में राज से ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में उसने कह दिया, ‘ मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं ’। शायद उस वक़्त मुझे उसे डांटना चाहिए था, उसे मना करना चाहिए था। लेकिन नहीं, मैं भी जैसे उसकी बाहों में जाने के लिए तैयार बैठी थी। मैंने उससे कहा, ‘राज , मैं शादीशुदा हूँ। राज ने तुरंत कहा, क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती ? ऐसा कहीं लिखा है क्या ? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती हो ?’ मैंने कहा,  हां मैं भी तुमसे बेइन्तहाँ प्यार करती हूँ और उसने तुरंत मुझे अपनी बांहों में समेट लिया। फिर मैं भूल गई कि मैं किसी की मां हूं, मैं किसी की पत्नी हूं। जिसके साथ जीने - मरने की मैंने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी, लेकिन यह दिल का बहकना,राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया। हम दोनों लगातार फ़ोन पर बातें करते रहते थे। हम दोनों के बीच का फासला अब ख़त्म हो चुका था। हम दोनों के बीच शारीरिक सम्बन्ध बन चुके थे और राज से मैं इतना प्यार करने लगी थी कि उसके लिये जैसे मै कुछ भी करने को तैयार हूँ। एक बार, मैं उससे एक बच्चे की भी चाहत भी रखने लगी थी , क्योंकि कल अगर किसी बुरे वक़्त या हालात की वजह से हम दोनो एक दूसरे से जुदा हो गए तो मै राज से हुए बच्चे को हमेशा अपनी प्यार की निशानी रखकर उससे हमेशा प्यार करती रहूंगी। लेकिन मैंने अपने घर की माली हालत और कुछ इधर- उधर की भली - बुरी बातें सोचकर अपने मन के इस इरादे को बदल दिया। मैं और राज अक्सर मिलते । प्यार भरी बातें करते, एक - दूसरे की बाहों में रहते। यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई पल गुजारीं। राज की बांहों की कशिश ही कुछ ऐसी थी कि अपने पति के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेड़ियों की तरह लगने लगे।.प्यार एक अलग बात है, किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना। उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है। एक दिन यूँ ही मैँ जब राज की बाँहों में थी तो उसने अचानक से मुझसे कह दिया, जान - तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो, किसी की मां हो। किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने। हालांकि एक वक़्त शायद सही हो या गलत , उसने मेरी मांग में सिन्दूर भर दिया था और मैं भी उसे मन ही मन अपना पति मानने लगी थी। एक पत्नी की तरह ही उसका ख्याल रखती, उसकी चिंता करती , उसके लिए व्रत करती , और भी बहुत कुछ। आज भी अपनी मांग में सिन्दूर लगते समय उसकी यादें उसकी तरफ बरबस हीं खींच लाती है। यह मेरा प्यार हीं था जो मैं ने इन बातों की परवाह नहीं की। यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं। लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो ? कर पाओगी इतना सबकुछ ? राज कहता रहा और मैं अवाक होकर उसकी बाहों में हीं ये सब सुनती रही। राज ने मुझसे कहा कि मैं शादीशुदा नहीं हूँ, कुंवारा हूं। तुम्हें देख कर मेरा दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई। मैं अब भी तैयार हूं। तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है। तुम सोचो, मेरा प्यार सच्चा है। मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं, मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं, लेकिन वफा के वादे के साथ। मैं उसी वक़्त रो पड़ी. मैंने राज से कहा, ‘तुमने पहले ये सब मुझसे क्यों नहीं कहा। उसने कहा - तुमने कभी मुझसे पूछा ही नहीं। मैंने राज से कहा ‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे वो तो उसने कहा कि वह एक कमजोर पल था, वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं और मैं भी कमजोर पड़ गया था। उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे। इस में न तुम्हारी खता है न मेरी। दिल पर किस का जोर थोड़े न चला है। राज की बातों में सच्चाई थी। पता नहीं, वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था। जो भी हो, वह कुंवारा था, तन्हा था। उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई। मुझे भी उन कमजोर पलों को नहीं भूलना चाहिए था जिनमें मैंने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया। खैर, मैं दूसरे पुरुष  के साथ प्यार करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई। अब मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने राज से पूछा, मेरी जगह तुम होते तो क्या करते ? पता नहीं मुझे एक पल के लिए कभी यह ख्याल भी आता कि राज    ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर। फिर जो इतना समय (लगभग 2 वर्ष) उसकी बांहों में बिताईं, वह क्या था ? क्या यह उसका प्यार नहीं उसका वासना था ? दलदल था शरीर की भूख का ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अब राज का दिल मुझसे भर गया हो , उसने अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीति नीति हमें समझा रहा हो ? यदि ऐसी बात थी तो जब मैंने पहली बार उससे कही थी कि मैं शादीशुदा हूं तो फिर उसने क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते ? राज ने मुझसे कहा, किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंवारे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है। मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. पता नहीं तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता , लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया मेरे मन पर पड़ा तो मुझे तुमसे प्यार हो गया। मैं उसकी बाहों में ही रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सब कुछ बर्बाद कर लिया, तुम्हें अपना सब कुछ सौंप दिया। अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर जिंदगी की हकीकत पर लाकर छोड़ दे रहे हो। मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी। मैं क्या करूं, क्या न करूं ? पूरे घर के काम की जिम्मेदारी, एक पत्नी और माँ बन कर रहना। मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था। मैं निभा भी रही थी और यह निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं करना था। ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे लेकिन पति के घर से बाहर जाते और बच्चों के स्कूल जाते ही  मैं उससे मोबाइल पर बात करने चल पड़ती, अपने दिल के हाथों मजबूर होकर। अब मैं क्या करूं ? कुछ समझ नहीं आता है। मैं भी तो उससे उतना ही प्यार करती थी और अभी भी करती हूँ और उससे जिंदगी की आंखरी साँस तक करती रहूंगी। लाख समझा लो, ये दिल है कि मानता नहीं है, मैं उसे जिंदगी भर भूल नहीं सकती। उसके नाम से आज भी मेरी धड़कन तेज हो जाती है। मैं उससे बात किए बिना नहीं रह सकती थी और वो भी नहीं रह सकता था। जब भी वो मेरे सामने होता तो मैं खुद को भी भूल जाती थी। मैंने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं’’। उसने कहा कि तो छोड़ दो सब कुछ। मैं ऐसा भी नहीं कर सकती। मैं भंवर में फंस चुकी थी, समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ । एक तरफ मेरा हंसता - खेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरे बच्चे और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज, जो आज भी मेरी कमजोरी है। पता नहीं एक दिन राज ने मुझसे फ़ोन पर कहा कि तुम आज के बाद मुझसे मिलने और बातें करने की कोशिश भी मत करना। मेरे साथ बिताये हुए वो हर कमजोर पल तुम्हारी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे। दोनों तरफ से अब उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है। लेकिन मै आज भी राज के बगैर अपने आप को अधूरा महसूस करती हूं। मुझे नहीं पता कि ये गलत है या सही, पर मैं खुद से झूठ नहीं बोल सकती। मुझे आज भी यह पूर्ण विश्वास है कि कोई भी लड़की राज की लाइफ में उसकी पत्नी बनकर भी आयेगी तो मेरी जगह कोई नहीं ले सकता। आज भी मुझे ये अच्छी तरह से याद है कि राज ने जाते वक़्त मुझसे कहा था कि हमारा साथ यहीं तक था, तुम अपनी शादीशुदा जिंदगी निभाओ और मैं अपनी निभाता हूं। मैं यही सोच रही हूँ कि काश वो मेरे सामने जिंदगी भर रहता और मैं उसे देखकर ही अपनी पूरी जिंदगी गुजार देती । आज भी उसकी यादों ने मुझे रुला दिया। मेरी नज़रें आज भी उसके लौट आने का इन्तजार देख रही है। वो आये और मुझे अपनी बाँहों में भर ले और बोले, लो तुम्हारा राज लौटकर फिर से चला आया तुम्हारी जिंदगी में .........

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