बात संजय सिंह की....
- नवल किशोर कुमार
उन दिनों आज अखबार की तरफ से मुझे लोजपा की रिपोटिंग करने की जिम्मेवारी मिली ही थी। तब बहुत सारे चेहरे मैं जानता भी नहीं था। संजय सिंह तब लोजपा में थे और कमोबेश वही काम करते थे जो आज जदयू में रहकर नीतीश कुमार के लिए कर रहे हैं। घटना रामविलास पासवान के जन्मदिन समारोह का है। श्री पासवान के निजी सचिव योगेंद्र पासवान से मेरी खूब बनती थी। दो दिन पहले ही तय हो गया था कि रामविलास पासवान मुझे अपना साक्षात्कार देंगे। साक्षात्कार के लिए मैंने बहुत मेहनत की थी। करीब 8-9 सवाल थे। रामविलास पासवान के सरकारी बंगले पर पहुंचा तब जलसा शुरू हो गया था। योगेंद्र जी से तय हुआ था कि कार्यक्रम के बीच में ही वे मुझे रामविलास पासवान जी से मिलवायेंगे। लेकिन हुआ इसका उलटा। सुरजभान सिंह जैसे अनेक बाहुबली मिले। अधिकांश चेहरे मेरे लिए नये ही थे। दीनानाथ क्रांति और राजेंद्र विश्वकर्मा को छोड़कर। लेकिन भीड़ में वह भी गायब हो गये। मैं अपने प्रश्नों को लेकर परेशान था। तभी संजय सिंह दिखे। पूछा - रामविलास जी का साक्षात्कार करना है। क्या आप बतायेंगे कि इस वक्त वे कहां हैं? जवाब था - मैं रामविलास पासवान का अर्दली नहीं हूं। मैंने उसी वक्त योगेंद्र पासवान जी को फोन किया। मित्रवत बातचीत में मैंने संजय सिंह की टिप्पणी के बारे में बता दिया। फोन पर ही बोले - दुम हिलाने वाले किसी के सगे नहीं होते हैं, जहां हड्डी देखते हैं, हिलाने लगते हैं। करीब एक महीने बाद ही संजय सिंह जदयू की पहरेदारी में लग गए।
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