मानव श्रृंखला
गाँव शहर से नगर डगर तक
बहने लगी मस्त वयार है ,
मानव श्रृंखला की वजह से
अब लटकने लगी तलवार है ।
परिवर्तन की आँधी चलने दो
विद्रूप मानसिकता बदलने दो ,
इस बिहार के जर्रे - जर्रे से
कोढ़ दहेज का मिटने दो ।
स्रष्टा का वरदान है बेटी
हम सबका अभिमान है बेटी ,
द्रष्टा बन आँखें खोलो तो
उनके सपने को पलने दो ।
यह पुनीत यज्ञ है राज्य का
आहुति लालच की पड़ने दो ,
जर्रे -जर्रे से उठ रही आवाज है
बेटियों को आगे बढ़ने दो ।
लक्ष्मी दुर्गा की छाया है बेटी
सरस्वती की वाणी बनने दो ,
कभी कदम न उनका रोको
हर साँचे में ढ़लने दो ।
एक बेटी जब जलती है
हविष्य दहेज का बनती है ,
माँ - बाप की आँखों से तब
वह आँसू बनकर बहती है ।
बहू - बेटी में फर्क न करना
जीवन उनका वरदान समझना ,
धन - दौलत यहीं रह जायेगा
क्या साथ जगत से जायेगा ?
उनके पंखों को काटो मत
उन्मुक्त गगन में उड़ने दो ,
कारवां जब बनता जाता है
माथे पर किरीट तब भाता है ।
डा. रेखा सिन्हा
राजगीर , नालंदा
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