चीनी माल के सम्पूर्ण वहिष्कार से ही भारत विकास सम्भव - डॉ. राजेश मिश्रा
सीधी, राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान के संभागीय पदाधिकारी डॉ. राजेश मिश्रा रीवा संभाग संयोजक, इ० आर.बी.सिंह जिला संयोजक, बृजेश सिंह गोरे सह जिला संयोजक, सक्रिय सदस्य प्राचार्य गणेश मिश्रा, सुरेन्द्र मणि दुबे जिला श्रृखंला प्रमुख, द्वारा सामूहिक पत्रकार वार्ता आयोजित कर चीनी माल का संम्पूर्ण वहिस्कार राष्ट्रहित को देखते हुए अति आवश्यक पहल हेतु आम जनमानस से अपील की गई।
डॉ. राजेश मिश्रा रीवा संभाग संयोजक द्वारा आम जन मानस से अपील करते हुए कहा गया कि आज हम स्वदेशी सुरक्षा अभियान के वर्तमान संदर्भ में बात कर रहे हैं। गत वर्ष दीपावली पर संपूर्ण भारत ने एक स्वत:स्फूर्त स्वदेशी आंदोलन देखा है। सब तरफ चायनीज माल के बहिष्कार की एक प्रबल लहर न केवल देखी, अनुभव की गई अपितु प्रत्यक्ष व्यापक असर भी इसका दिखा। यह आंदोलन केवल स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग व चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार के बारे में ही नहीं है, अपितु सारे भारतीयों की सोच व मन एक है, इसका भी यह प्रमाण है! चाहे हरियाणा हो या तमिलनाडू, भारत का युवा मन एक जैसा सोचता है। सब तरफ एक जैसी भावना है। चाइनीज वस्तुओं के प्रतिरोध के इस आंदोलन को पूरे भारत में वैसा ही महत्व व स्वीकार्यता मिली है जैसी गांधी जी के स्वदेशी आंदोलनों को मिली थी। यद्यपि उस समय पर इस प्रकार की रेटिंग व आंकडें नहीं थे, लेकिन जो आम आदमियों की भावनाएं उस समय थीं, वैसी ही इस बार प्रकट हुई हैं।
स्वदेशी स्वदेशी सुरक्षा अभियान की आवश्यकता
इस स्वदेशी आंदोलन में सारा भारत एकमत रहा। स्वदेशी आंदोलन को जो बडी सफलता इस चाइनीज वाले विषय पर मिली है। इसका कारण क्या है स्वदेशी मंच द्वारा आरंभ किया हुआ अभियान या कुछ और। इसके कई अन्य कारण भी है। क्योंकि कोई भी आंदोलन ऐसे ही नहीं उठता उसके आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षात्मक अनेक कारण होते हैं। क्योंकि स्वदेशी मंच अन्य रूपों में काफी समय से इस विषय पर लगातार काम कर रहा है। जन.ज्वार इसी वर्ष ही उठा। एक बडा कारण यह हुआ कि उरी की आतंकवादी घटना के बाद चीनी सरकार के जो वक्तव्य आए और जिस ढंग से चीन ने पाकिस्तान और उसके आतंकवादी संगठनों को समर्थन दिया, उससे चीन का मन्तव्य, भारत के प्रति, बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। चीन के इस विरोधी रवैये के कारण लोगों के मन में चीन के प्रति जो नाराजगी का भाव था, वो जन आंदोलन में बदल गया।
भारत और चीन के व्यापारिक संबंध बना बडा आर्थिक संकट
सुरक्षा संबंधी विषयों के अलावा हम देखें तो चीन के साथ हमारी व्यापारिक स्थिति क्या है। इस समय भारत का कुल 190 देशों के साथ व्यापारिक संबंध है। भारत का कुल अंर्तराष्ट्रीय व्यापार 640 अरब डॉलर का है। इसमें निर्यात 261ण्1 बिलियन डालर व आयात 379ण्6 बिलियन डालर का है। वर्ष 2015.16 में भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 118ण्5 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ। ;आयात.निर्यातत्रघाटाद्ध घाटे के कारणों को समझना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हर साल भारत का यह घाटा क्यों हो रहा है और हर साल यह घाटा ब?ता क्यों जा रहा है। व्यापार किया जाता है लाभ के लिए। फिर ऐसे कौन से कारण या नीतियाँ हैं सरकार कीए जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निरन्तर घाटे में जा रहा है। क्योंकि नीतियाँ तो अब भी वही चल रही हैं, जो पूर्ववर्ती सरकारों की थी। तो हमारे 640 बिलियन डॉलर के कुल व्यापार में से 118ण्5 बिलियन डॉलर का हमें व्यापार घाटा हो रहा है। उसमें भी ब?ी बात यह है कि व्यापार संबंधी नीतियों में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। निर्यात बढते नहीं दिख रहे। चायनीज आयात बढने से हमारी फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं। इससे बेरोजगारी बढ रही है।
हमारा जो सबसे बडा आयात है वह पैट्रोलियम उत्पादों का है, बल्कि कच्चे तेल का है। जिसे क्रूड ऑयल कहते हैं। और इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पैट्रोल की कीमत काफी कम है। लगभग 42 डॉलर प्रति बैरल। भारत सबसे ज्यादा आयात पैट्रोलियम का करता है जो कुल आयात का लगभग 26 प्रतिशत है और इस पैट्रोलियम उत्पादों में चीन से कुछ नहीं आता। यह खाडी देशों से आता है। रशिया, अफ्रीका, नाइजीरिया आदि से आता है। यानि भारतीय आयात ;तेल का बडा हिस्सा अन्य देशों के साथ है, चीन से नहीं फिर भी चीन के साथ हमारा व्यापारिक घाटा 52ण्8 बिलियन डॉलर है यानि कुल घाटे का लगभग 44 प्रतिशत। 2015.16 में चीन के साथ भारत ने कुल व्यापार किया 71ण्6 बिलियन डॉलर का और उसमें से 61ण्8 बिलियन डॉलर का हम आयात करते हैंए केवल 9 बिलियन डॉलर का हम चीन को निर्यात कर रहे हैं। और उसमें भी ज्यादातर कच्चा माल है। जैसे कुल निर्यात का 52 प्रतिषत लौहकण ;प्तवद वतमद्ध ही है। यह आंकड़े इसलिए आवश्यक है कि ये जो आंदोलन है उसे समझने के लिए और देश के लिए यह कितना जरूरी है, यह समझने के लिए व्यापारिक असंतुलन समझना अत्यंत जरूरी है। हमारे कुल व्यापारिक घाटे में से 44 प्रतिशत घाटा अकेले चीन से हो रहा है और अगर हम पैट्रोलियम उत्पाद को अलग कर देंए क्योंकि पैट्रोलियम उत्पाद का हमारा चीन से कोई आयात है ही नहींए क्यांकि चीन तो स्वयं अपने लिए तेल आयात करता है। तो लगभग 60.70 प्रतिशत घाटा केवल चीन से है। इस समय हमारा सबसे बडा ट्रेड पार्टनर चीन हो गया है। दूसरे पर अमरीका है। जापान तो 15वें नंबर पर है। यानि कि हमारा बाजार चीन पर बहुत अधिक निर्भर हो गया है। चीन का घाटा यदि रूपयों में बताना हो तो वह बनता है.3556 अरब रूपये वार्षिक। इसका साधारण भाषा में अर्थ है कि इतने रूपये ;3556 अरब रूपयेद्ध हम हर वर्ष चीन को भेंट किए जा रहे है। उफ! इतना तो शायद आजादी से पूर्व इंग्लैण्ड को भी नहीं करते थेए यह क्या कर रहे है हम अगर चीन से हमारे दोस्ताना संबंध हां तब भी इस व्यापार के बारे में सारे देश को चिन्तित होने की आवश्यकता है। ऐतिहासिक कारणों से भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समय चीन का जो स्तर है जो व्यवहार है उस नाते से भी। चीन से भारत का जो आयात हो रहा है, उसमें केवल इलैक्ट्रॉनिक सामान यानि बिजली की ल?िया, मोबाइल इत्यादि मिलाकर 19ण्8 बिलियन डॉलर व्यापार है और मशीनों का व्यापार 10ण्6 बिलियन डालर का है।
कार्यक्रम को आगे बढाते हुए इ. आर.बी.सिंह ने का कि यदि रोजगार बढाना है तो स्वदेशी अपनाना होगा, वर्तमान में सारे देश को अपने आर्थिक मामलों जैसे बड़े विषय की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। खासतौर पर युवा वर्ग को। उसका कारण हमने देखा ही है कि चीन से हमारा व्यापार घाटा बहुत बढ गया है। इससे लगातार हमारा उत्पादन क्षेत्र खत्म हो रहा है, ज्यादा उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। और अपना उत्पादन क्षेत्र कम होते जाना. मतलब, राजगार कम होते जाना। गत 16.17 वर्षों में ही लाखों नौकरियां चीन ले गया। जो यही रह सकती थीं यदि हम चीनी वस्तुएं न खरीदकर यहीं बनाते।
चीनी माल से रोजगार के अवसर खत्म हुए
सस्ते चीनी माल का जो सर्वाधिक बुरा प्रभाव हुआ है वह है हमारे रोजगार क्षेत्र पर। सन् 2000 से पहले भारत का खिलौना उद्योग एक बडा उद्योग था किन्तु चीनी खिलौना आयात ने इस उद्योग को चौपट किया इसमें लगे लाखों कारीगर बेकार हो गए धीरे.धीरे अलीग? का ताला उद्योग हो या पानीपत का दरी.कंबल उद्योग अम्बाला की मिक्सी या जालंधर की खेल वस्तु इण्डस्ट्री तेजी से बंद होती गई परिणाम स्वरूप तेजी से ही लोग बेरोजगार होते चले गए। शिवाकाशी की पटाखा इण्डस्ट्री हो या सूरत की सा?ी। गुजरात का टाईल उद्योग हो या कानपुर का चम?ा उद्योगए फिरोजाबाद का कांच उद्योग या लुधियाना की साईकिल इण्डस्ट्री उद्योग.इन सब पर सस्ते चीनी माल की भयंकर मार प?ने से लाखों लोग गत 15.18 वर्षों में बेरोजगार हुए हैं। अब फैक्ट्री मालिक उद्योगपति न होकर केवल ट्रेडर ;व्यापारीद्ध बन गए है। वे केवल चीनी माल का आयात कर कुछ मुनाफा कमा आगे बेच रहे है। इससे इन पर तो बहुत असर नहीं प?ा उन्होंने तो फिर कमाई कर ही ली होगी किन्तु जो सबसे ब?ा असर प?ा है वह है इन उद्योगोंए फैक्ट्रीयों में काम करने वाले मजदूर वर्ग परए तकनीशियनए इंजीनियर पर। वे ब?ी मात्रा में या तो बेराजगार हो गये या यहाँ.वहाँ किसी छोटे.मोटे काम को करने पर मजबूर हो गये।
भारत और चीन के कूटनीतिक संबंध: सुरक्षा संकट
यद्यपि चीनी सामान सस्ता होता है परंतु गुणवता में बहुत घटिया होता हैए वह जल्दी खराब हो जाता है। चीनी उत्पाद सस्ता हो या न होए गुणवता हो तब भी नहीं खरीदना चाहिए। चीन के साथ हमारा व्यापारिक घाटाए केवल आर्थिक घाटा नहीं है। यह हमारे जवानों के लिएए हमारी सीमाओं व देश के लिए एक अलग प्रकार का आयाम हैए एक ब?ी चुनौती है। क्योंकि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट से 5 गुणा अधिक है। हमारा रक्षा बजट 40 बिलियन डालर वार्षिक से कम हैए उधर चीन का 200 बिलियन डालर है। चीन की अर्थव्यवस्था 11 बिलियन डालर से अधिक की हैए जबकि भारत की 2ण्3 बिलियन डालर है। आज अमेरिका के बाद चीन विश्व की सबसे ब?ी अर्थव्यवस्था है। जापान तीसरे स्थान पर है और उसके बाद जर्मनीए फिर भारत। यानि कि भारत पांचवें स्थान पर है और वह भी अभी.अभी हुआ है। अन्यथा तो हम सातवें नंबर पर थे। भारत चीन के मुकाबले में लगभग 1ध्4 पर ख?ा है। चीन भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब?ने देना नहीं चाहता एवं भारत की अंतर्राष्ट्रीय पहुंच में बाधा बन रहा है। पाकिस्तान का एक आतंकी संगठन है जैश.ए.मौहम्मद उसका मुखिया.सरगना है मसूद अजहर। इसने पठानकोट में पहले आतंकी हमला करवाया और अभी पीछे सितंबर में जो उडी में आतंकवादियों ने ब?ा हमला किया और जिसमें हमारे 19 सैनिक शहीद हो गएए उन सभी हमलों का भी मास्टर माइंड है यह मसूद अजहर। भारत ने फोन.वायस रिकार्ड सहित पुख्ता सबूत दिये हैं इस सबके। उस पर युनाइटिड नेशन की जो सिक्योरिटी कांउसिल ;ऑन टेररिज्मद्ध है उसमें इस प्रमुख आतंकी व उसके संगठन जैश.ए.मोहम्मद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने हेतुए प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव भारत ने रखा। उस काउंसिल में 15 देशों के प्रतिनिधि हैं जिसमें से 14 देश इस आतंकी संगठन के खिलाफ हैंए सारे कागजात पूरे हैंए केवल एक देश ने उसके उपर प्रतिबंध नहीं लगने दिया और यह छठी बार किया है। वह देश है चीन। यानि चीन खुलेआम एक आतंकवादी संगठन और उसके मुखिया को बचा रहा है और उसका समर्थन कर रहा है। इतना ही नहीं न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप ;छैळद्ध में विश्व के 47 देश सदस्य हैं। भारत को उसका सदस्य बनने में चीन का कोई घाटा भी नहीं है और उसमें पाकिस्तान का भी कोई नुकसान नहीं। यदि भारत न्यूक्लीयर सप्लायर समूह का सदस्य बनता है तो केवल यह हो जाएगा कि जो न्यूक्लीयर मैटिरियल ;सामानद्ध होता हैए न्यूक्लीयर वेस्ट होता हैए भारत उसे दूसरे देशों को बेचने.खरीदने में समर्थ हो जाता है और भारत को इसके व्यापार की अनुमति मिल जाएगी। भारत को यह सुविधा मिलने वाली है इसका युद्ध से कोई लेना देना भी नहीं हैं। केवल इसका व्यापारिक असर है। और इस व्यापारिक असर से चीन को कोई घाटा भी नहीं है। 47 में से 39 देशए जिसमें अमेरिका भी शामिल है और अन्य यूरोपीयन देश भी हैंए सभी देशों ने रजामंदी दे दी है क्योंकि भारत इसके लिए क्षमतावान देश है। फिर भी चीन ने एनण्एसण्जीण् में हमारी सदस्यता पर 6 अन्य देशों के साथ मिलकर रोक लगा दी। केवल इतना ही नहींए हर एक मंच पर जहाँ लगता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा हैए उभर सकता है चीन वहां पर विटो लगा देता है। अ?ँगा लगा देता है। भारत के लिए समस्या ख?ी करना व पाकिस्तान की हरकतों को समर्थन करना उसकी अघोषित नीति बन गयी है। एक और उदाहरण देखिए.जब उडी का आतंकी हमला हुआ 18 सितंबर कोए तो भारत ने 28 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राईक किया। हमारे जवानों ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकवादियों को जा मारा। फिर भारत ने 1956 में हुई सिंधु जल समझौते की समीक्षा बैठक की। भारत ने तो अभी इतना ही कहा कि यदि पाकिस्तान आतंकी हरकतें बंद नहीं करता तो हम पानी बंद करने की सोचेगें। किंतु उसके चार दिन बाद ही चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी जेकोबा का पानी रोक ही दिया। चीन का संदेश साफ था कि यदि भारत सिंधु जल पाकिस्तान का रोकेगा तो वह भारत को ब्रह्मपुत्र नदीए जो मानसरोवर ;अब चीन के कब्जे मेंद्ध से निकलती हैए उसका पानी रोककर पूर्वोत्तर भारत में सूखा ला देगा।
चीन का वैश्विक दृष्टिकोण : खतरनाक
चीन का यह रवैया भारत के साथ ही नहीं अपितु दूसरी ब?ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भी है। चीन के जापान के साथ कूटनीतिक संबंध भारत से भी ज्यादा खराब हैं। हमारे साथ तो जमीन लगती है चीन कीए जापान के साथ कोई जमीन भी नहीं लगती फिर भी चीन के जापान के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं।
जापान के साथ सेनकाकू द्वीप के ऊपर भी झग?ा है चीन का। केवल 7 वर्ग मील का समुद्र के बीच भूखंड है। वहां एक भी आदमी नहीं रहता। जापान ने केवल टावर लगाया हुआ है जहाजों को दिशा दिखाने के लिएए जो कि जापान से 1200 किण्मीण् दूर है तथा 1250 किण्मीण् चीन की सीमा से दूर है। वहां क्योंकि कुछ तेल और गैस मिलने की संभावना है। इसलिए चीन का जापान के साथ झग?ा है। वियतनाम के साथ बॉर्डर नहीं है फिर भी चीन का 2003 में सीधा युद्ध वियतनाम से हुआ। चीन का इंडोनेशिया व मलेशिया के साथ भी बहुत अच्छे संबंध नहीं हैं। श्रीलंका अब तक चीन का मित्र देश था लेकिन अब श्रीलंका भारत के साथ आ गया हैए तो उसके साथ भी चीन का झग?ा शुरू हो गया। चीन के दुनिया में सदाबहार तो केवल दो मित्र देश हैं. एक पाकिस्तान जो भारत का सबसे ब?ा सिरदर्द है और जो दूसरा है वो जो दुनिया का सबसे ब?ा सिरदर्द है.उत्तर कोरिया। यह जानना इसलिए जरूरी है ताकि चीन का मनोविज्ञान समझा जा सके। दुनिया के किसी भी सभ्य एवं सुस्सकृंत देशए समृद्ध देश के साथ चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं। अमेरिका में तो 800 बिलियन का निवेश चीन
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