शक्ति पीठों में प्रमुख माँ शारदा देवी का मंदिर

1735 By 7newsindia.in Sat, Sep 23rd 2017 / 15:20:16 मध्य प्रदेश     

संजीव मिश्रा,   
आदि शक्ति माँ शारदा देवी का मंदिर, मैहर नगर के समीप विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि माँ शारदा की प्रथम पूजा आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा की गई थी। मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथो मे महेन्द्र मिलता है। इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है। जन श्रुतियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मैहर नगर का नाम माँ शारदा मंदिर के कारण अस्तित्व मे आया। हिन्दू श्रद्धालुजन देवी को माँ अथवा माई के रूप में परम्परा से सम्बोधित करते चले आ रहे हैै। माई का घर होने का कारण पहले माई घर तथा इसके उपरान्त इस नगर को मैहर के नाम से संबोधित किया जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शंकर के तान्डव नृत्य के दौरान उनके कंधे पर रखे माता सती के शव से गले का हार त्रिकूट पर्वत के षिखर पर आ गिरा। इसी वजह से यह स्थान शक्तिपीठ तथा नाम माई का हार के आधार पर मइहर एवं उसके बाद मैहर के रूप मे विकसित हुआ।


ऐतिहासिक दस्तावेजों मे इस तत्थ का प्रमाण प्राप्त होता है कि सन् 539 (522ई.पू.) चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दषी को नृपलदेव ने सामवेदी देवी की स्थापना की थी। प्रसिद्ध इतिहासविद् ए. कनिधम द्वारा माँ शारदा मंदिर का काफी अध्ययन किया गया है। माँ शारदा मंदिर मे स्थित षिलालेख को कनिधम द्वारा 9वीं अथवा 10वीं शताब्दी से संबंधित होने का अनुमान लगाया गया है। यह षिलालेख आज दिनांक तक अपनी विषिष्ट लिपि के कारण नही पढ़ा - समझा जा सका है। माँ शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे स्थित षिलालेख भी अपने अंदर माँ की महिमा तथा इतिहास की अनेक पहेलियों का रहस्य समेटे हुये है। सन् 1922 में जैन दर्षनाथिर्यों की प्रेरणा से महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ़(महाराजा, मैहर) द्वारा माँ शारदा मंदिर में जीव बलि को प्रतिवंधित किया गया। माँ शारदा मंदिर प्रांगण मे श्री काल भैरव, श्री नरसिंह भगवान, श्री हनुमान जी, श्री काली माता, श्री गौरीषंकर, श्री हाथा पूजन, श्री दुर्गा माता, श्री मरही माता, श्री शेषनाग, श्री फूलमती माता, श्री ब्रम्हदेव एवं श्री जालपा देवी की प्रतिमायें स्थापित है।

माँ शारदा शक्तिपीठासन के प्रधान पुजारी श्री-श्री 108 श्री देवी प्रसाद जी महाराज है, इनका कहना है कि माँ के दर्षनार्थ पधारे श्रद्धालुजन को इस स्थान पर विद्या, धन, संतान संबंधी इच्छाओं की पूर्ति होती है परन्तु इस स्थान का उपयोग किसी अनिष्ट संकल्प के लिये नहीं किया जा सकता। ऐसी मान्यता है कि माता वैष्णवी है तथा सात्विक शारदा सरस्वती का साक्षात स्वरूप है। जो अध्यात्मिक क्षेत्र में बुद्धि, विद्या एवं ज्ञान की प्रदायनी देवी मानी जाती है। माँ शारदा मंदिर पिरामिड आकार की पहाडी पर स्थित है। जहां पहुंचने के लिये 1052 पक्की सीढियां निर्मित हैं। 

       पहाडी की ऊंचाई लगभग 557 फिट है। माँ शारदा मंदिर मार्ग पूरी तरह से वन अच्छादित है तथा सीढियाँ शेड से ढकी है। अनेक स्थानो पर श्रृद्धालुओं की सुविधा हेतु पेय जल आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध है। म.प्र.शासन माँ शारदा देवी मंदिर अधिनियम 2002 के अधीन माँ शारदा मंदिर की देखरेख वर्तमान मे माँ शारदा देवी मंदिर प्रबंध समिति द्वारा की जाती है जिसके अध्यक्ष सतना जिले के कलेक्टर होते है। माँ शारदा मंदिर और उसके विन्यासों का कब्जा, प्रषासन नियंत्रण तथा प्रबंधन माँ शारदा देवी मंदिर प्रबंध समिति में निहित है। वर्तमान समय मे मंदिर समिति के अध्यक्ष/कलेक्टर सतना श्री नरेष पाल जी (आई.ए.एस.) एवं प्रषासक/अनुविभागीय अधिकारी मैहर श्री सुरेश अग्रवाल जी है। 

माँ शारदा मंदिर में श्रद्धालुओं के मुण्डन संस्कार, कथापूजन एवं कन्छेदन की विषेष व्यवस्था समिति द्वारा की गई है। श्रृद्धालुजन की सुविधा हेतु माँ शारदा मंदिर प्रबंध समिति के अधीन मंदिर क्षेत्र मे दो यात्री निवास (12 कमरे तथा 8 हॉल), एक अमानती समानगृह तथा चार सुलभ शौचालय संचालित किये जा रहे है। माँ शारदा मंदिर के ठीक समीप स्थित लिलजी बांध में यात्रियों की सुविधा हेतु स्नान घाट का निर्माण जल संसाधन विभाग के द्वारा किया गया है। मंदिर प्रबंध समिति द्वारा दान दाताओं के सहयोग से समिति कार्यालय के बगल में अन्नकूट संचालित किया गया है जहां पर आने वाले  श्रद्धालुओं को नाम मात्र की सहयोग राषि मात्र 5 रूपये प्रति कूपन में भर पेट भोजन दिया जा रहा है। माँ भक्तों के दान से संचालित भोजन परसाद संकल्प में दान करने हेतु भारतीय स्टेट बैंक के खाता क्रमांक 31133915053 पर अपने पूर्वजों की पुण्य तिथि प्रिय जनों के जन्मदिन एवं अन्य शुभ अवसरों पर आप भी यथा शक्ति दान कर सहयोग प्रदान कर सकते हैं । मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओ के दर्षन हेतु रोपवे की व्यवस्था दामोदर रोपवे कम्पनी के माध्यम से की गई है । इसके अतिरिक्त माँ शारदा एक्सप्रेस द्वारा भी मंदिर आने जाने की व्यवस्था है। अन्नकूट के सामने अखण्ड ज्योति भवन स्थित है जहॉ पर माँ शारदा की अखण्ड ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रहती है। मेला परिसर मे आकस्मिक चिकित्सा केन्द्र व्ही.आई.पी. पार्किग के सामने स्थित है । समिति के दूरभाष क्र. 07674-232150 पर संपर्क कर समस्त जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

मड़ई में स्थित है प्राचीन षिव मंदिर

नगर मैहर से लगभग 25 किमी. दूरी पर स्थित ग्राम मडई अपनी प्रचीन धरोहरों के कारण पुरातत्वविदों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। मैहर तहसील के ग्राम मडई, तिंदुहटा, मनौरा में अति प्राचीन मूर्तियां तथा मन्दिरों के अपभ्रन्ष आज भी मौजूद है। मंदिर के अपभ्रंष इन ग्रामों में पुरातन काल में मौजूद रहे शानो शौकत सम्पन्नता तथा कला प्रेमी सभ्यता का परिचायक है। ग्राम मडई में ही स्थित प्राचीन षिव मंदिर अपनी भव्यता तथा मूर्तिकला के मामले मे अद्वितीय है। मैहर नगर पर्यटन के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. - 07 पर स्थित यह नगर खजुराहो से बांधवगढ राष्ट्रीय उद्यान जा रहे पर्यटकों के रूकने का एक उत्तम स्थान है। इसी मार्ग पर पन्ना राष्ट्रीय उद्यान तथा हीरे की खदानें भी स्थित है। विष्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल चित्रकूट की दूरी मैहर से मात्र 110 कि.मी. है।

बड़ा अखाड़ा

माँ शारदा मंदिर से लगभग 1 किमी. की दूरी पर स्थित बडा अखाडा भगवान श्री राम जानकी के अत्यन्त प्राचीन दुर्लभ मूर्तियों की वजह से जाना जाता है वैष्णव संप्रदाय के पूज्यपाद श्री श्री 1008 श्री रामसखेन्द्र जी महाराज द्वारा स्थापित इस अखाडे मे सैकडो विद्यार्थी संस्कृत की षिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। स्थानीय श्रृद्धालुओं द्वारा इसके प्रांगण मे निर्मित श्री रामेष्वर मंदिर अपने 108 षिवलिंगो तथा भव्यता की बजह से श्रृद्धालुओं के श्रृद्धा का केन्द्र है। वहीं पर श्री गणेष जी मंदिर स्थित है तथा मंदिर मे स्थापित मूर्ति के आकार मे बढोत्तरी होती है। अखाडा गेट के सामने किला रोड पर विराजमान दक्षिण मुखी हनुमान जी लोगो के श्रृद्धा के केन्द्र है।

भदनपुर पहाड़ में तांडव मुद्रा में हनुमान जी

मैहर नगर से लगभग 12 किमी. दूर बांधवगढ मार्ग पर स्थित इस मंदिर में तांडव नृत्य मुद्रा में स्थित भगवान हनुमान जी की अति प्राचीन प्रतिमा श्रृद्धालुओं की श्रृद्धा का अत्यन्त प्रमुख स्थान है। भदनपुर स्थित हनुमान मंदिर की स्थापना लगभग 300 वर्ष पूर्व राजा अमान द्वारा की गई थी। भगवान बजरंग बली की इस प्रतिमा के चरणों में असुरराज अहिरावण की कुल देवी कामिंदा जी की प्रतिमा स्थित है।

रामपुर मंदिर है स्वामी नीलकंठ की तपोस्थली

माँ शारदा देवी मंदिर पहाडी के पष्चिम - दक्षिण दिषा में लगभग 12.00 कि.मी. दूरी पर रामपुर स्थित है यह स्थान स्वामी नीलकंठ महाराज की तपोस्थली के रूप मे प्रतिष्ठित है। स्वामी जी के मार्ग निर्देषन में तत्कालीन नागौद महाराज महेन्द्र सिंह जी द्वारा यहां पर विषाल मंदिर का निर्माण कराया गया तथा राधा कृष्ण जी एवं षिव लिंग की भी स्थापना भी की गई । इस मंदिर के चारों ओर फैली पर्वत श्रेणियों की अनुपन छटा, घने वृक्षों की हरीतिमा, असीम प्राकृतिक सुषमा को समेटे हुये है विषाल चट्टानों के मध्य वर्ष पर्यन्त प्रवाहित होती पवित्र जल धारा सहज ही लोगो के मन को मोह लेती है ।

आल्हा को अमरता का वर दिया माँ शारदा ने

माँ के अनन्य भक्त महोबा के महापराक्रमी सेनापति आल्हा का अखाडा भी माँ शारदा मंदिर पहाडी के समीप स्थित है। ऐसी मान्यता है कि घोर कलयुग में भी माँ शारदा द्वारा आल्हा की भक्ति तथा तपस्या से प्रसन्न हो उन्हें अमरत्व प्रदान किया गया। माँ शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है जहां विष्वास किया जाता है कि प्रतिदिवस ब्रम्ह मुहूर्त में स्वयं आल्हा द्वारा मॉ की पूजा अर्चना की जाती है। माँ शारदा मंदिर के उत्तर दिषा मे एक किलोमीटर में आल्हा अखाडा  स्थित है जहां पर परमवीर आल्हा का भव्य मंदिर , षिव जी का प्राचीन मंदिर, नव ग्रह वाटिका एवं नक्षत्र उद्यान एवं आल्हा ताल है। मंदिर समिति द्वारा दर्षनार्थियों के हितार्थ यहां पर एक धर्मषाला का भी निर्माण कराया गया है। समिति द्वारा यहां पर मंदिरो की सेवा का कार्य डॉ. बाबा रामगोपालदास जी को दिया गया है।

ओइला मंदिर में अष्टधातु निर्मित मूर्ति है माँ दुर्गा की

मैहर सतना मार्ग पर नगर से लगभग 02 कि.मी. की दूरी पर ओइला मंदिर है। यहॉ अष्ट धातु की निर्मित मॉ दुर्गा, षिवलिंग, राधाकृष्ण आदि मूर्तियों की स्थापना की गई। साथ ही यहां पर स्वामी जी की समाधी भी श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। अपनी भव्यता व विषालता के लिये यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।

लिलजी नदी का उद्गम है पन्नी खोह

माँ शारदा देवी पहाडी के पष्चिम-दक्षिण दिषा मे लगभग 5.00 कि.मी. की दूरी पर रामपुर पहाड के नीचे लिलजी नदी का उद्गम स्थल पन्नी खोह एक प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल है। यह स्थान तीनो तरफ से पहाडों से घिरे होने के कारण खोह नाम से प्रचलित है। यहां पर लगभग 400 फिट परतदार चट्टानों से पानी की धारा बहकर लिलजी नदी का निर्माण करती है। यही स्थान स्वामी नीलकण्ड की तपोस्थली भी रही है।

कला का बेजोड नमूना है - किला मैहर

ब्रिटिष स्थापत्य कला का बेजोड नमूना मैहर स्थित बृजविलास पैलेस मैहर रियासत के राज घरानें का निवास स्थान है। विष्णुसागर सरोवर की पृष्ठभूमि में निर्मित इस किले में मूलत: 200 कमरे है। अद्भुत वास्तु षिल्प, प्राचीन कलाकृतियों, तैलचित्रों तथा कलात्मक फर्नीचर मैहर रियासत की पुरानी शान शौकत तथा वैभव की याद दिलाते है। यह किला मैहर रियासत के संगीत प्रेमी महाराजा बृजनाथ सिंह जू देव तथा उस्ताद अल्लाउद्दीन खां की संगीत साधना का गवाह रहा है।

गोलामठ मंदिर में विराजमान हैं-देवाधिदेव महादेव

चंदेल राजपूत वंष द्वारा 950 ई.पू. के मध्य निर्मित भगवान शंकर का गोलामठ मंदिर बरबस अपनी स्थापत्य कला की बजह से श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। लिलजी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर पुरातत्व विभाग की देखरेख में माँ शारदा मंदिर से लगभग 02 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर प्रांगण में प्रत्येक महाषिवरात्रि पर हजारों की संख्या में षिवभक्त देवाधिदेव भगवान महादेव की पूजा अर्चना का पुण्य लाभ प्राप्त करते है। गोलामठ मंदिर की बनावट खजुराहो स्थित पष्चिमी तथा पूर्वी मंदिर समूहों की याद दिलाती है।         

गुरूनानक देव जी का आगमन हुआ था गोपालबाग मंदिर मे

मैहर रेल्वे स्टेषन से लगभग 02 कि.मी. की दूरी पर स्थित गोपालबाग राधाकृष्ण मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सिखों के प्रथम गुरू गुरूनानक देव जी का आगमन हुआ था। अति प्राचीन सरोवर के समीप स्थित इस मंदिर के पास महंत मूसलदास जी की समाधी स्थित है। समाधी स्थल के पत्थर पर उकेरे गये भगवान विष्णु के दस अवतार दर्षनीय है।

भारत रत्न पं. रविषंकर ने मदीना भवन में की संगीत साधना

पद्म विभूषण बाबा अल्लाउद्दीन खां का निवास मदीना भवन माँ शारदा देवी मार्ग पर स्थित है। बाबा का अंतिम संस्कार मदीना भवन के आंगन में ही किया गया जिसे कभी बाबा ने बडे प्यार से छोटे उद्यान का रूप दिया था। इसी मदीना भवन में भारत रत्न पंडित रविषंकर पद्म विभूषण उस्ताद अली अकबर खां, पदम विभूषण अन्नपूर्णा जी, पंडित निखिल बैनर्जी, पंडित पन्नालाल घोष जैसे दिग्गज कलाकारों ने बाबा के चरणों में संगीत साधना की।

वाद्य यंत्रों के अविष्कारक बाबा अल्लाउद्दीन खां की मजार

मदीना भवन के पास ही बाबा की मजार है, जहां वे अपनी जीवन संगिनी बेगम के साथ चिरनिद्रा में लीन है। नलतरंग, सितार बैन्जो, चन्द्र सारंग और सारंगा जैसे वाद्य यंत्रों के अविष्कारक बाबा अल्लाउद्दीन  खां देषाटन करते हुये सन् 1914 - 16 में मैहर पधारे । संगीत प्रेमी महाराजा बृजनाथ सिंह जूदेव के आग्रह पर बाबा मैहर मे बसे तथा महाराज के संगीत गुरू हुए। बाबा की माँ शारदा के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। 06 दिसम्बर 1972 को दिवंगत बाबा के दैनिक उपयोग के साजो सामान आज भी मदीना भवन में संजोए गये है।

दुनिया का एक मात्र बैण्ड - मैहर वाद्य वृन्द

 

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