5 साल बाद एकता परिषद ने चुनावी वर्ष में 10 लाख लोगों के साथ आंदोलन की घोषणा की
बुधवार को शहर राजनीतिक रंगों में डूबा रहा। एकता परिषद ने चुनावी वर्ष में 10 लाख लोगों के साथ आंदोलन की घोषणा की। परिषद के मंच पर सिंधिया आए तो मंत्री माया सिंह ने बैठक कर सरकार का पक्ष रखा। इधर नोटबंदी पर कांग्रेस ने बरसी मनाई तो भाजपा ने वर्षगांठ। स्थानीय स्तर पर अन्य नेता और समर्थक भी सुर्खियों में रहे। इस उठा-पटक के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में लगते जाम में आम आदमी पिसता रहा।
ग्वालियर | आश्वासनों को कई साल बीत चुके हैं। अब करना है तो सरकार काम करे आैर परिणाम दे। यह दो टूक बात एकता परिषद के संस्थापक सदस्य राजगोपाल पीवी ने बुधवार को प्रदेश सरकार की नगरीय विकास मंत्री माया सिंह से बातचीत के दौरान कही। वे प्रदेश सरकार के नुमाइंदे के रूप में आंदोलनकारियों के नेताआें से बातचीत करने पहुंची थीं। उनका कहना था कि एकता परिषद की मांगों पर सरकार प्राथमिकता से विचार कर रही है। इसके बाद जल, जंगल और जमीन के लिए दो दिन से ग्वालियर में जुटे हजारों लोग एकता परिषद के बैनर तले मेला मैदान से पैदल मार्च करते हुए फूलबाग मैदान पहुंचे।
1990 में गठित एकता परिषद ने केंद्र सरकार से जल, जंगल व जमीन की लड़ाई लड़नी 2006 से शुरू की। 2006 में चेतावनी यात्रा, 2007 में जनादेश यात्रा और 2012 में ग्वालियर से दिल्ली तक एक लाख लोगों के साथ जन सत्याग्रह निकाला था। परिषद के देशभर में 5 लाख सदस्य हैं। बुधवार को पड़ाव ब्रिज से फूलबाग चौराहे तक की सड़क कार्यकर्ताओं से अटी थी। रैली में आदिवासी कलाकार लोक करतब दिखाते चल रहे थे।
फूलबाग मैदान में हुई जनसंसद में कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि 2012 में यूपीए सरकार के समय मैं तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश व अन्य लोगों को अागरा लेकर पहुंचा था और सरकार से भूमि सुधार कानून के लिए आंदोलनकारियों का समझौता कराया था। मैं आदिवासियों और एकता परिषद के साथ इस लड़ाई में आखिरी सांस तक लड़ूंगा। वहीं मप्र की नगरीय विकास मंत्री माया सिंह ने कहा कि सरकार आदिवासियों को वनाधिकार, आवासीय भूमि अधिकार और आवास देने के लिए कृत संकल्पित है। गांधीवादी डा. एसएन सुब्बाराव ने कहा कि भूमि सुधार का मुद्दा देश और गरीबों की खुशहाली से जुड़ा है तथा यह आजादी की दूसरी क्रांति से जुड़ा है। जलपुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भूमिहीनों को भूमि आबंटित किया जाना बहुत ही जरूरी है। आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने कहा कि वनाधिकार मान्यता कानून को लागू हुए 12 वर्ष हो गए। लेकिन आदिवासियों को वनभूमि का अधिकार नहीं मिला।
एकता परिषद की मांग व आज की स्थिति
- राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिनियम:यूपीए सरकार ने 2014 में ड्राफ्ट बनाया पर लोकसभा में पेश नहीं हुआ। मोदी सरकार ने भी पेश नहीं किया।
- महिला कृषक हकदारी कानून: देश में कहीं भी महिलाओं को किसान का दर्जा नहीं। कई बार मांग उठी पर सरकार ने चर्चा तक नहीं की।
- राष्ट्रीय भूमि सुधार कानून: यूपीए सरकार ने नीति तैयार की पर कैबिनेट में अब तक मंजूरी नहीं। मौजूदा सरकार भी गंभीर नहीं।
- राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और राष्ट्रीय सुधार कार्यबल का पुनर्गठन: भूमि परिषद में कई वर्षों से न कोई नियुक्ति हुई, न बैठक।
- वनाधिकार कानून 2006 और पंचायत अधिनियम 1996 का प्रभावी क्रियान्वयन: सरकार ने कानून तो बनाया पर क्रियान्वयन के लिए कोई मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं ।
बड़े नेताओं का क्या रुख है
कांग्रेस: सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया : 2012 में शिवराज सिंह और तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने आगरा पहुंचकर कहा था कि केंद्र में हमारी सरकार आने पर एकता परिषद की मांगे पूरी कर ली जाएंगी। नरेंद्र सिंह खुद केंद्र सरकार में विभागीय मंत्री हैं तो मैं पूछना चाहता हूं कथनी-करनी में अंतर क्यों?
भाजपा: केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर : जब जिसने मुझसे संपर्क किया है मैं मिला हूं और बात सुनकर समाधान भी किया है। मैंने एकता परिषद के पदाधिकारियों से चर्चा कर भूमि संसाधन विभाग के सचिव को ग्वालियर भेजकर मांग पत्र भी मंगवाया। वहीं मुख्यमंत्री ने मंत्री माया सिंह को भेज कर परिषद को बताया कि उनी मांगों पर सरकार काम कर रही है।
दिल्ली के साथ 200 जिलों में जनआंदोलन
- जनसंसद में एकता परिषद के संस्थापक सदस्य राजगोपाल पीव्ही ने ऐलान किया कि गांधीवादी सुब्बाराव के नेतृत्व में अगले साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर 5 हजार लोग पलवल से दिल्ली के लिए कूच करेंगे। वहीं 2 से 11 अक्टूबर (जेपी जयंती) तक देश के 200 जिलों में हजारों लोग सत्याग्रह करेंगे और दिल्ली में 5 हजार लोग उपवास पर बैठेंगे।
कांग्रेस: मप्र समेत देश में राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए परेशान कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा सरकार के खिलाफ लड़ने का मिला है। जिसमें हजारों लोगों की भीड़ का मंच कांग्रेस के पास होगा। इसलिए कांग्रेस हर स्तर पर इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ लड़ने की तैयारी कर रही है।भाजपा: सत्ता में बैठी भाजपा में चिंता इस बात की है कि अगले साल से लगातार चुनावी साल रहेगा। ऐसे में हजारों लोगों की भीड़ सड़क पर रहकर कांग्रेस के साथ चलेगी, तो भाजपा को नुकसान न उठाना पड़े। इसलिए खुद सीएम ने इस मामले में दखल देते हुए माया सिंह को आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजगोपाल पीवी से चर्चा करने के लिए भेजा।
एकता परिषद: अगले साल मप्र समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2019 में लोकसभा चुनाव। परिषद की इस जनसंसद में 18 राज्यों के लोगों ने भाग लिया। परिषद के पदाधिकारी मानकर चल रहे हैं कि चुनावी साल में सरकार पर दबाव बनाकर मांगे मनवाई जा सकती हैं।
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