बाण सागर और गंगा कछार सिंचाई परियोजना घोटाला : जिनके नाम एफआईआर में ही नहीं उनके लिए मांगी अभियोजन स्वीकृति
नामजद 10 आरोपी अफसरों के खिलाफ जांच तक शुरू नहीं की, शासन ने अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार किया तो 9 साल बाद नए सिरे से खुली पूरे मामले की फाइल
रीवा /भोपाल | बाण सागर और गंगा कछार सिंचाई परियोजना में आर्थिक अनियमितताओं की जांच में नया पेंच सामने आया है। जांच अधिकारी ने एफआईआर में नामजद आरोपियों (जल संसाधन विभाग के अफसरों) के खिलाफ नौ साल तक जांच ही नहीं की। उल्टा फर्जी साक्ष्यों के अाधार पर 12 ऐसे अफसरों के खिलाफ शासन से अभियोजन की स्वीकृति मांगी, जिनका एफआईआर में नाम ही नहीं था। शासन ने 12 अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक प्रकरण ही नहीं बनता है। इतने अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने को गंभीरता से लेते हुए ईओडब्ल्यू ने जांच अधिकारी को उनके मूल यूनिट वापस कर दिया था।ऐसे हुआ मामले का खुलासा
जब अफसरों ने दस्तावेजों का बारीकी से परीक्षण किया तो सामने आया कि पूरे मामले में जांच अधिकारी डीएसपी एसएस शुक्ला की भूमिका संदेह की घेरे में है, क्योंकि जब शुक्ला को उनकी मूल यूनिट में वापस किया तो वे अपने साथ काफी रिकॉर्ड ले गए थे। रीवा ईओडब्ल्यू एसपी ने जब जानकारी वरिष्ठ अफसरों को दी कि शुक्ला अपने साथ रिकॉर्ड लेकर गए हैं, तो शुक्ला को नोटिस जारी कर रिकॉर्ड मंगाया गया। जब रिकॉर्ड की स्क्रूटनी की तो खुलासा हुआ कि 10 अफसरों के खिलाफ शुक्ला ने नौ साल तक विवेचना ही नहीं की थी। उन्होंने जिन अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी।
सात अफसरों और दो ठेकेदारों के खिलाफ ही चालान-ईओडब्ल्यू ने जांच पूरी कर आरोपियों की अभियोजन स्वीकृति ली थी। इसके बाद बीके त्रिपाठी, केसी राठौर, एलएम सिंह, पार्थ भट्टाचार्य, अनुपम श्रीवास्तव, आरपी शुक्ला और रामदिनेश त्रिपाठी के खिलाफ चालान पेश किया था। इसके अलावा दो फर्म या ठेकेदारों के खिलाफ ही चालान हुआ। शेष फर्म या ठेकेदार के खिलाफ जांच फाइल कर दी गई।
2008 में... 17 कार्यपालन यंत्री, मुख्य अभियंता, 22 फर्म व ठेकेदारों पर दर्ज हुई थी एफआईआर
इनके खिलाफ मांगी मंजूरी
अनिल अग्रवाल, कार्यपालन यंत्री प्रेम शंकर द्विवेदी, कार्यपालन यंत्री भीम सिंह मोहनिया, कार्यपालन यंत्री भारत भूषण परमार, कार्यपालन यंत्री एचएल त्रिपाठी, कार्यपालन यंत्री एमके जैन, कार्यपालन यंत्री एससी शर्मा, कार्यपालन यंत्री दिनकर प्रसाद चतुर्वेदी, कार्यपालन यंत्री महेंद्र यादव, कार्यपालन यंत्री राजेंद्र प्रसाद शुक्ला, कार्यपालन यंत्री धन्नालाल वर्मा, कार्यपालन यंत्री नरेंद्र प्रसाद द्विवेदी, कार्यपालन यंत्री।
इन पर हुई थी एफआईआर दर्जबीके त्रिपाठी, मुख्य अभियंता (रिटायर्ड) मोहन प्रसाद मिश्रा, कार्यपालन यंत्री एके पवार, कार्यपालन यंत्री जीपी विश्वकर्मा, कार्यपालन यंत्री केसी राठौर, कार्यपालन यंत्री आरएस तिवारी, कार्यपालन यंत्री एलएम सिंह, अनुविभागीय अधिकारी एवं प्रभारी कार्यपालन यंत्री पार्थ भट्टाचार्य, कार्यपालन यंत्री एमपी सिंह, कार्यपालन यंत्री अनुपम श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री आरपी शुक्ला, कार्यपालन यंत्री एसए करीम, कार्यपालन यंत्री सीएम त्रिपाठी, अनुविभागीय अधिकारी केएस श्रीवास्तव, अनुविभागीय अधिकारी अजीत खरे, उप यंत्री वीपी मिश्रा, उप यंत्री राम दिनेश त्रिपाठी, मुख्य कार्यपालन यंत्री उभोक्ता भंडार, रीवा 22 प्राइवेट फर्म एवं ठेकेदार।
Rs.500 करोड़ की बाण सागर और गंगा कछार परियोजना में हुआ था भ्रष्टाचारजल संसाधन विभाग को परियोजना के तहत सीधी, सिंगरौली, सतना और रीवा में नहर एवं बांध का निर्माण करना था। 500 करोड़ रुपए की इस परियोजना में व्लर्ड बैंक से राशि मिली थी। परियोजना 2004 में शुरू हुई थी। अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू में की गई थी। ईओडब्ल्यू ने 2007 में जांच प्रकरण दर्ज किया था। जांच में भ्रष्टाचार सिद्ध होने के बाद 2008 में 17 कार्यपालन यंत्री, मुख्य अभियंता और 22 फर्म व ठेकेदारों के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
ईओडब्ल्यू में 10 साल से थे शुक्लाजबलपुर यूनिट में पदस्थ डीएसपी एसएस शुक्ला को 2008 में विवेचना दी गई थी। ईओडब्ल्यू से पहले शुक्ला सीबीआई में थे, लेकिन गड़बड़ी उजागर होने पर उन्हें जून में मूल यूनिट एसएएफ वापस कर दिया गया।
मैंने तथ्यपरक जांच की है22 सितंबर 2008 को इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई थी, मुझे अप्रैल 2011 में जांच मिली थी। जिन आरोपियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई थी, वो आज तक पेंडिंग है। जहां तक एफआईआर में नाम होने या न होने का सवाल है तो यह बंधनकारी नहीं है कि जिनके नाम हैं, उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की जाए। एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच भी होती है। एसएस शुक्ला, तत्कालीन जांच अधिकारी, ईओडब्ल्यू
मामला सामने आया है, जांच कराएंगे
जिन लोगों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी उनके नाम एफआईआर में नहीं थे। ऐसा मामला सामने आया है। जांच कराराई जाएगी। - पंकज श्रीवास्तव, एडीजी, ईओडब्ल्यू
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