भ्रष्ट अधिकारियों की जांच लटकाने वाले अफसरों पर कार्रवाई होगी
भोपाल। भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त, लापरवाह और अनुशासनहीनता करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों के विभागीय जांच के मामलों में बिना किसी ठोस कारण के छह माह से अधिक देरी की तो अब इसके लिए जांच अधिकारी की भी विभागीय जांच शुरू की जाएगी। राज्य सरकार अगले साल से यह व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू करने जा रही है। होता यह है कि किसी भी अधिकारी-कर्मचारी को अनियमितता के लिए दोषी पाए जाने पर अधिकारी उसकी विभागीय जांच तो शुरू कर देते हैं लेकिन समय पर उनका निपटारा नहीं हो पाता जिसके चलते सरकारी खजाने को हुए नुकसान की समुचित भरपाई नहीं हो पाती और कई बार बिना सजा रिटायर हो जाता है। इसलिए विभागीय जांच के मामलों को समयसीमा में निपटाने के लिए अब छह माह में प्रकरणों का निपटारा करने की बाध्यता की जाएगी। मई 2018 में इन प्रकरणों की उच्च स्तरीय समीक्षा की जाएगी और छह माह से अधिक समय से लंबित प्रकरण मिलेगे तो इसके लिए दोषी जांच अफसरों की विभागीय जांच शुरू की जाएगी।
ACS बैंस के फार्मूले पर अमल की तैयारी
अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने सरकारी अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही के प्रकरणों में समयसीमा में कार्यवाही के लिए सिफारिशें की है। उन्हें भी सरकार लागू करेगी। इसके तहत विभागीय जांच, अभियोजन स्वीकृति, नोटिस जारी करने की समयसीमा उन्होंने तय की है। इसमें दोषी अधिकारी को निर्धारित अवधि में जवाब देने और उसके आधार पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की गई है। तीस दिन से लेकर 180 दिन की समयसीमा उन्होने कार्यवाही के लिए तय की है।
छह माह में निपटेंगे अभियोजन स्वीकृति के मामले
अभियोजन स्वीकृति के जो मामले अभी एक साल या उससे अधिक समय से लंबित चले आ रहे हंै उन्हें निपटाने के लिए अधिकतम छह माह का समय दिया जाएगा। विभाग प्रमुख और विभागाध्यक्ष इसकी समीक्षा के लिए इलेक्ट्रानिक डैश बोर्ड बनाएंगे। समय सीमा में कार्यवाही नहीं करने पर दोषी अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए जाएंगे।
लंबित जांच के मामले
- नियम 16 के तहत कुल 542 प्रकरणों में से जांच के 473 प्रकरण अर्थात 87 फीसदी समयसीमा के बाहर के हैं।
- नियम 14 के अंतर्गत कुल 782 प्रकरणों में से जांच के 739 प्रकरण अर्थात 94 फीसदी प्रकरण समय सीमा के बाहर के हैं।
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