MP के इस नेता के काफिले में शामिल होती थी सिर्फ सफेद कारे, रॉयल फैमिली की तरह थी रियल लाइफ
रीवा।। मध्यप्रदेश सहित रीवा को विकास के रास्ते पर लाने और देश में अलग पहचान दिलाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने विंध्य प्रदेश को कई सौगातें दीं। विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल के समय यानी 1993 से 2003 के बीच श्रीनिवास तिवारी के काफिले में ज्यादातर कारे सफेद कलर की हुआ करती थी। इसका सबसे बड़ा कारण व्हाइट टागर को सिर्फ सफेद वस्तुओं से ही ज्यादा प्यार था। उनके पहनावे में धोती-कुर्ता, सैंडिल, साफी सहित कार, घर, बिस्तर सभी लगभग सफेद हुआ करते थे।
यहां तक कि उनके बाल और भौंहे भी सफेद थी इसी लिए श्रीनिवास तिवारी को प्यार से व्हाइट टाइगर कहकर पुकारते थे। दूसरा पहलू ये भी था कि दुनिया में सबसे पहले रीवा में ही सफेद शेर देखा गया था। जिसका नाम मोहन था। इसी के बंसज ही आज दुनियाभर में फैले हुए है। टाइगर की तरह आक्रामकता और पहनावे को देखते हुए धीरे-धीरे पक्ष-विपक्ष के नेता व्हाइट टाइगर की संज्ञा दे दी।
छात्र जीवन से राजनीति
उनका जन्म 17 सितंबर 1926 को तिवनी ग्राम के किसान मंगलदीन तिवारी के घर हुआ था। माता कौशिल्या देवी थीं। सतना जिले के झिरिया ग्राम के रामनिरंजन मिश्र की बेटी श्रवण कुमारी से विवाह हुआ। उनके दो पुत्र अरुण एवं सुंदरलाल तिवारी हुए। अरुण अब नहीं रहे। सुंदरलाल गुढ़ से विधायक हैं। अरुण के बड़े पुत्र विवेक तिवारी जिपं सदस्य रह चुके हैं। छोटे पुत्र वरुण युवा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हैं। श्रीनिवास ने शिक्षा मनगवां बस्ती के विद्यालय से आरंभ की। सन 1950 में दरबार कालेज रीवा से एलएलबी एवं 1951 में हिन्दी साहित्य से एमए किया। छात्र जीवन से राजनीति की।कक्षा 8वीं में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
श्रीनिवास तिवारी कक्षा 8वीं में मार्तण्ड स्कूल का छात्र रहते हुए स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। दरबार कॉलेज में भी डिबेटिंग क्लब बनाया। कॉलेज के अध्यक्ष रहे। डॉ. लोहिया का सानिध्य भी मिला। जमींदारी प्रथा का जमकर विरोध किया। कृष्णपाल सिंह, ओंकारनाथ खरे, श्रवण कुमार भट्ट, चन्द्रकिशोर टंडन, हरिशंकर, मकरंद सिंह, मथुरा प्रसाद गौतम, ठाकुर प्रसाद मिश्र, सिद्धविनायक द्विवेदी, जगदीश चन्द्र जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री, चन्द्रप्रताप तिवारी, अच्युतानंद मिश्र, महावीर सोलंकी, शिवकुमार शर्मा तथा लक्ष्मण सिंह तिवारी का साथ मिला। 1948 तक 50 फीसदी किसान जमीन से बेदखल किए जा चुके थे। श्रीनिवास तिवारी, यमुना प्रसाद शास्त्री और जगदीश जोशी ने संयुक्त एवं पृथक रूप से रीवा एवं सीधी का दौरा किया और संगठन बनाकर निर्णय वापस लेने की मांग की। 1948 में सरकार ने टेनेंसी एक्ट में संशोधन की घोषणा की।विंध्य के विलय का किया विरोध
सरकार द्वारा विंध्य प्रदेश के विलय के प्रस्ताव का भी तिवारी ने विरोध किया था। 1948 में विंध्य प्रदेश बना था। 1949 में विलय का प्रस्ताव किया गया। उस पर महाराजा मार्तण्ड सिंह के हस्ताक्षर नहीं करने के कारण विलय रुक गया। लेकिन, मसौदा तैयार हो गया था। मसौदे पर हस्ताक्षर कराने वीपी मेनन को रीवा भेजा गया। जानकारी तिवारी और जोशीजी को हुई तो कार्यकर्ताओं के साथ मेनन से मिलकर विरोध में ज्ञापन सौंपा। 2 जनवरी 1950 को लोहिया की अगुवाई में रीवा बंद किया। प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। भीड़ पर पुलिस को गोलियां चला दीं। गंगा, अजीज और चिंताली शहीद हो गए थे।विधायक के रूप में सक्रिय राजनीति
24 वर्ष की अल्पायु में 1952 में पहली बार मनगवां विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने जाने के बाद सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक बात रखी। कहा था कि विंध्य प्रदेश का अकाल सिंचाई के साधनों को विकसित करने से ही रोका जा सकता है। वनों के सरंक्षण, दूर संचार के विस्तार, गृह उद्योग, शिक्षा की गुणवत्ता, पर्याप्त बिजली, यातायात व्यस्वथा, नगर के सौंदर्यीकरण, स्वच्छ जलापूर्ति, कर्मचारी हितों का ख्याल, दस्यु समस्या से निजात, पंचायतीराज के विस्तार, सहकारी संस्थाओं की सक्रियता, विंध्य में विवि की स्थापना, रेल सुविधा के लिए विधानसभा में लड़ाई लड़ी। पंचायतीराज के पक्षधर थे।ऐसे लड़े थे पहला चुनाव
समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आमचुनाव में मनगवां विधानसभा क्षेत्र से भारी आर्थिक संकट में चुनाव लड़ा। तिवनी के स्व. कामता प्रसाद तिवारी ने धन की व्यवस्था की और सोना गिरवी रखकर रकम चुनाव लडऩे के लिए सौंप दी। चुनाव लड़ा और तिवारी पहली बार विधायक चुने गए।1957 से 1972 तक किया संघर्ष
1952 से 1957 तक तिवारी सदन में विपक्ष की भूमिका में रहे। 1957 से 1972 तक राजनीति का संक्रमण काल था। लगातार तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से पराजित हुए। 29 नवंबर 1967 को भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 31 दिसंबर 1974 को केंद्रीय सहकारी बैंक के संचालक मंडल के अध्यक्ष बने। चंदौली सम्मेलन, विकास, युवक प्रशिक्ष शिविर, पूर्व विधायक दल सम्मेलन, जन चेतना शिविरों के माध्यम से सक्रियता बनाए रखी। 1985 में टिकट नहीं मिलने से चुनाव नहीं लड़ पाए थे। कहा था कि टिकट का न मिलना कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व का कारण नहीं अवरोध है।विधानसभा में पहली बार
22 मार्च 1990 को विस का उपाध्यक्ष चुना गया। विस के इतिहास में पहली बार हुआ जब सत्तापक्ष ने प्रस्ताव किया कि सदन के उपाध्यक्ष का पद प्रतिपक्ष के सदस्य को मिले। उपाध्यक्ष तिवारी ने सदन के संचालन की नई परिभाषा गढ़ी। तिवारी को 24 दिसंबर 1993 को पहली बार विस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। एक फरवरी 1999 को दूसरी बार निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया। शून्यकाल एवं मुख्यमंत्री प्रहर की शुरुआत की। सन 2000 तक सदन में मार्शल का प्रयोग नहीं किया गया।इंदिरा-अटल ने माना था 'शेर '
वर्ष 2003 में विधानसभा चुनाव का प्रचार करने रीवा आए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी श्रीनिवास तिवारी का उल्लेख अपने भाषण में किया था। वाजपेयी की सभा में पहुंचने के रास्ते तिवारी के समर्थकों ने जाम कर दिए थे। तब उन्होंने सफेद शेर कहकर तिवारी पर कटाक्ष किया था। इसके पहले यूपी के चंदोली में 1973 में इंदिरा गांधी ने श्रीनिवास तिवारी को रियल टाइगर कहा था। चंदोली में ही तिवारी ने कांग्रेस ज्वाइन की थी।जब एक मंच पर दिखे दो पुरोधा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता चर्चा में रही हालांकि इन नेताओं के बीच कभी सीधे तौर पर टकराव नहीं हुआ। यह टिकट वितरण से साफ जाहिर होता रहा है। अपनी पसंद के नेताओं को दोनों टिकट दिलाते रहे हैं और अप्रत्यक्ष रूप से मदद भी करते रहे हैं। तिवारी ने भी स्वीकार किया था कि कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखने का यह भी एक प्रमुख माध्यम है। विंध्य क्षेत्र में अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी ही ऐसे नेता रहे हैं जिनकी जनता में जननेता की छवि रही है।
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