पानी के नाम पर बिक रहा मीठा जहर, शासन - प्रशासन बना मूक दर्शक
नियमों की अनदेखी कर धडल्ले से बिक रहा अमानक जल
संजीव मिश्रा
सीधी। गर्मी के दिनों में शीतल पेय जल की मांग बढ़ जाती है इन दिनों दुकानों सहित अन्य संस्थानों व शादी बारात में पाउच व अन्य तरीके से शीतल पेय जल का उपयोग धड़ल्ले के साथ हो रहा है किंतु पानी पाउच, केन के विक्रेताओं द्वारा मापदंड से परे होकर कार्य किया जा रहा है, हकीकत यह है कि जिस पाउच का हम शौक बस उपयोग करते हैं वह हमारे शरीर के लिए जितना लाभदायक नहीं है उतना हानिकारक है उल्लेखनीय है कि जिले में पेयजल की बिक्री में जमकर मनमानी की जा रही है शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों प्लांट लगाए गए हैं जहां से पानी को पाउच में भरकर या फिर कैन के सहारे आवश्यक स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है शहर की बात करें तो यहां गोपाल दास क्षेत्र में बर्फ फैक्ट्री स्थापित है जहां बर्फ बनाने के साथ.साथ ठंडे पानी की सप्लाई भी की जा रही है पूर्व में खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों द्वारा छापामार कार्यवाही की गई थी किंतु कार्यवाही औपचारिकता बनकर रह गई। जांच में क्या हुआ आज तक खुलासा नहीं हो सका है। ऐसे स्थानों पर प्रशासन के अधिकारी पानी की शुद्धता एवं टीडीएस की जांच करने पहुंचे तो हकीकत सामने आ सकती है किंतु यहां होली दीवाली के अलावा कभी भी अधिकारी जांच पड़ताल के लिए नहीं निकलते हैं ऐसा लगता है कि उनका प्लांट संचालकों से पूरी तरह से सांठगांठ है जिसके चलते कदम जांच के लिए कभी नहीं निकलते हैं । जबकि देखा जाये तो प्लांट संचालक पाउच में आई एस आई मार्क सहित ऐसी अन्य भ्रामक जानकारी अंकित कराया जाता है जैसे कि कितने खरे मापदंड में पानी की शुद्धता को परखा जा रहा है, आरो प्लांट के भी अपने नियम है किंतु इसकी जानकारी बाहर तक नहीं आ पा रही है,
शादी बारात के सीजन में हर जगह ये पानी के पाउच नजर आते हैं यदि कोई गौर से देखें तो यह ड्रिंकिंग वाटर नहीं बल्कि कुकिंग वाटर होते हैं इसका उपयोग हम पेयजल के रूप में करते हैं और अपने स्वास्थ्य को स्वयं प्रभावित करते हैं यदि खाना बनाने के लिए जिस पानी को तैयार किया जाता है और उसे हम सेवन करते हैं ।
गर्मी आते ही बढ़ती बिक्री
शहर में गर्मी बढ़ते ही बोतल बंद व ठंडे पाउच के पानी की बिक्री बढ़ रही है। माग बढऩे से इनके ब्रांडों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ रही है। न तो पानी की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जा रहा है और न ही मानक पर। शहर में करीब आधा दर्जन से अधिक प्लाट हैं जहा पानी डिब्बों में भरकर घरों व कार्यालयों में सप्लाई किया जा रहा है। यहा पानी के पाउच भरने का काम भी होता है जिनकी कीमत २० से ४० रुपये डिब्बा तथा दो रुपये पाउच है।
न टंकी की सफाई का पता न फिल्टर का
वाटर प्लाटों में स्वच्छता का नामों निशान नहीं होता। जिन टंकियों में पानी भरा रहता है वह भी कभी साफ की गई हैं या नहीं, पानी को फिल्टर किया जाता है कि नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं। टंकी से पानी निकाल कर सीधा डिब्बों में भरा जाता है। जो पाउच शहर में दो रुपये का बेचा जाता है उसमें अक्सर गंदगी निकलती है।
गावों की ओर बढ़ा व्यापार -
मिनरल प्लाट के लिए अधिकारियों के पचडे से बचने के लिए अब यह धंधा गावों की ओर काफी बढ़ चला है। वहां काम करने वाले भी आसानी से मिल जाते हैं। गाव से निकल कर सीधा हाईवे पर पानी सप्लाई का काम होता है। हाईवे पर दुकानों को पाउच की सप्लाई करने वाली कई गाडियां भी चल रही हैं।
जानकारों की मानें तो यह है लाइसेंस की प्रक्रिया -
मिनरल वाटर प्लाट के लिए लाइसेंस आवेदन शीर्ष कार्यालय ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंटर्ड को करना होता है। इसकी फीस लगभग लाखों से ऊपर है। ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड के अधिकारी मौके पर जाच करते हैं और पानी का नमूना लेते हैं। नमूना पास होने के बाद अनुमति पत्र दिया जाता है। यह पत्र जिलास्तर पर खाद्य विभाग को दिखाया जाता है। इसके बाद प्लाट का लाइसेंस जारी होता है। लाइसेंस से पहले मशीनों की गुणवत्ता की जाच सहित कई प्रावधान भी पूरे कराए जाते हैं।प्लाट के लिए जरूरी शर्ते -मिनरल वाटर प्लाट लगाने के लिए दो सौ फीट की बोरिंग होनी चाहिए। वहा पानी खारा न आता हो और वाटर लेबिल ठीक हो। इसके लिए दो मशीनों की आवश्यकता होती है। एक आरओ मशीन और दूसरी चिलर मशीन।
सेहत को होता नुकसान -
आरओ के पानी का लगातार इस्तेमाल नुकसानदायक हो सकता है। यह कैल्सियम और मैग्नीशियम नष्ट करता है। इससे हड्डिया कमजोर हो सकती हैं। पानी में कई जरूरी तत्व फिल्टर होने के दौरान नष्ट हो जाते हैं। पानी का क्लोरीनेशन होना जरूरी होता है जिससे बैक्टीरिया तो नष्ट हो जाता है, लेकिन मिनरल्स पर कोई असर नहीं पडता। जिस पानी को आप मिनरल वाटर समझकर पी रहे वो दूषित या साधारण पानी हो सकता है। जिले में मिनरल वाटर के नाम पर बोतल, डिब्बा और पाउच पैक में खराब पानी की बिक्री हो रही है। शहर में ऐसे नकली उत्पादों की भरमार है। दर्जनों स्थानों पर इनकी बिक्री हो रही है। खुद खाद सुरक्षा विभाग भी यह सच स्वीकार करता है। विभाग के मुताबिक बोतलों. पाउचों में कंपनी का नाम.पता रजिस्ट्रेशन नम्बर आदि तो लिखा होता है लेकिन ये कंपनियां कहीं दर्ज ही नहीं हैं। दिलचस्प यह भी है कि विभाग ने पिछले वर्ष चेकिंग में एक भी वाटर प्लाट मानक के अनुरूप नहीं पाया फिर भी अब तक कार्रवाई नहीं हुई। इससे इन प्लांटों को संरक्षण का सवाल खडा होता है।
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