गुजरात: कांग्रेस एक बार फिर अपने उस पुराने फॉर्म्युले पर काम कर रही

536 By 7newsindia.in Thu, Nov 23rd 2017 / 20:10:16 राजनीति     

राजनीति नई चीजें सीखने का नाम है, हवा किस ओर बह रही है, बस इस बात पर नजर रखनी होती है. फिर उसके हिसाब से अपनी चाल बदलनी पड़ती है. गुजरात चुनाव में कांग्रेस इस थिअरी पर खूब अमल कर रही है. एक पॉलिसी थी कांग्रेस की.खाम. इस फॉर्म्युला ने कांग्रेस को गुजरात में उसकी सबसे बड़ी जीत दिलाई थी. इसी फॉर्म्युले की बदौलत उसका काम भी बिगड़ा. कांग्रेस का नुकसान बीजेपी का फायदा बन गया. अब कांग्रेस एक बार फिर अपने उस पुराने फॉर्म्युले पर काम कर रही है. मगर, थोड़ा बदलाव है इस बार. खाम. अब बदलकर खाप हो गया है. खाम. में थे क्षत्रिय, हरिजन (दलित), आदिवासी और मुस्लिम. चूंकि इस बार कांग्रेस मुसलमानों से दूरी बनाकर चल रही है, तो ये खाम. बदलकर खाप हो गया है. यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और पाटीदार. एक और बड़ी खास बात है इस मामले में. कहिए, तो विरासत है. जो शख्स 36 साल पहले खाम. फॉर्म्युला लाया था, उसी का बेटा अब खाप  लेकर आया है. ये जो खाम. फॉर्म्युला था, वो एक वक्त में कांग्रेस का ‘ट्रंप कार्ड’ साबित हुआ था. तो क्या ये खाप भी कांग्रेस के हाथ का ‘तुरुप का पत्ता’ साबित होगा? ये सब समझने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं.

1985 के चुनाव में इसी के दम पर कांग्रेस को मिली थी रेकॉर्ड जीत
साल 1981. गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे माधव सिंह सोलंकी. सोलंकी आरक्षण का एक नया जुगाड़ लेकर आए. सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए. 40 फीसद आरक्षण. इसकी वजह से पूरे गुजरात में बवाल मच गया. खूब हिंसा हुई. खूब मार-काट मची. दंगे हुए. 100 से ज्यादा लोग मारे गए. आज पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर हाय-तौबा मचा रहे हैं. मगर उस वक्त ये ही पटेल आरक्षण के कट्टर विरोधी थे. मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सोलंकी को इस्तीफा देना पड़ा. फिर आया 1985 का विधानसभा चुनाव. इस चुनाव में सोलंकी और कांग्रेस ने बवाल की फसल काटी. खाम. का ही असर था कि 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 149 सीटें जीत लीं. 182 सीटों की विधानसभा में 149 सीटें!

 

इमर्जेंसी के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता जब गिरने लगी, तब नया समर्थन बेस बनाने की जुगत भिड़ाई जाने लगी. इसी का नतीजा थी ये खाम  थिअरी.

 

इसी फॉर्म्युला के कारण पाटीदार बीजेपी के साथ चले गए
पार्टी के बड़े नेता कौन होंगे और उनको कितनी बड़ी जवाबदेही दी जाएगी, ये बातें तुक्के में तय नहीं होतीं. जाति का बड़ा रोल होता है इसमें. पार्टी वोट बैंक को रिझाने के लिए नेताओं को आगे बढ़ाती है. 80 के दशक में कांग्रेस के अंदर कई क्षत्रिय नेता थे. खुद माधव सिंह सोलंकी भी इसी बिरादरी से आते थे. तो ये जो खाम थिअरी थी, वो बहुत सोच-समझकर तैयार की गई थी. ये खाम  फॉर्म्युला 70 के दशक से प्लानिंग में था. तब, जब कांग्रेस को लगा कि पाटीदार धीरे-धीरे उससे छिटक रहे हैं. वैसे इस थिअरी में सबसे ज्यादा दिमाग लगा था जीनाभाई दारजी का. इमर्जेंसी के बाद जब कांग्रेस का मटियामेट हो गया, तब वोट के लिए नई बुद्धि लगाई गई. हमारी राजनीति में जाति तो खूब भुनाई जा सकने वाली चीज है. इसमें बहुत स्कोप है. तो दारजी के दिमाग में आई जातिगत जुगाड़बाजी की युक्ति. बाद में इन्हीं दारजी ने कांग्रेस से इस्तीफा भी दे दिया था. ये जो दारजी थे, वो माधव सिंह सोलंकी के गुरु थे. वो अलग बात है कि आगे चलकर गुरु-चेले के रिश्ते में खटाई आ गई. एक वक्त में सोलंकी की जमकर तारीफ करने वाले दारजी बाद में उनकी खूब आलोचना करते थे.

 

माधव सिंह सोलंकी के बेटे भारत सिंह सोलंकी फिलहाल गुजरात के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं.

 

पाटीदार समुदाय और मुसलमानों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है
पाटीदार बहुत बड़ी ताकत हैं गुजरात में. जीत-हार तय करते हैं. कांग्रेस को लगा कि अगर पाटीदार उससे दूर जा रहे हैं, तो उनकी कमी पूरी करने के लिए उसे कई और समुदायों को अपने साथ जोड़ना होगा. इसी कोशिश में आया ये खाम . फिर इसके बाद पाटीदार एकदम ही कांग्रेस से दूर चले गए. उन्हें लगा कि कांग्रेस में अब उनको वो अहमियत नहीं मिलेगी, जो मिलती आई थी. इसके अलावा, आरक्षण के अपने नुकसान भी थे. चूंकि पाटीदारों को आरक्षण नहीं मिला था, तो वो साइड इफेक्ट झेलने वालों में शामिल थे. एक और चीज थी, जिसके कारण पाटीदारों का कांग्रेस से मोहभंग हुआ. वो वजह थे मुसलमान. पाटीदार समुदाय पारंपरिक तौर पर मुसलमानों को नापसंद करता है. कांग्रेस के फॉर्म्युला में मुसलमान भी शामिल थे. पाटीदारों को ये बात बहुत नागवार गुजरी. कांग्रेस ने खाम  का खूब फायदा उठाया, लेकिन जल्द ही इसकी भी एक्सपायरी डेट आ गई. और ये हुआ रथयात्रा के समय से.

 

राम जन्मभूमि मुद्दे ने राजनीति में एक बड़ा बदलाव किया. कट्टर हिंदुत्व के आगे जातिगत राजनीति कमजोर पड़ने लगी. गुजरात में तो ये बहुत बड़ा फैक्टर बना. इसी वजह से KHAM की बैंड बज गई.

 

राम जन्मभूमि आंदोलन ने खाम  की धज्जियां उड़ा दी
राम जन्मभूमि आंदोलन गुजरात में बहुत हिट हुआ. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद तो गुजरात में बीजेपी की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई. ये आंदोलन देश के किसी भी हिस्से से ज्यादा गुजरात में हाथोहाथ लिया गया. मस्जिद गिरने के बाद जब बाकी भारत में इसका असर खत्म हो गया, तब भी गुजरात में इसका असर बना रहा. बीजेपी की इस कट्टर हिंदुत्व की नीति ने खाम  की बैंड बजा दी. लोग कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के सपोर्टर बन गए. सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ क्षत्रिय वोट बैंक. पाटीदार पहले ही कांग्रेस से किनारा कर चुके थे. अब खाम  में भी बीजेपी ने सेंधमारी कर दी. कांग्रेस की हालत टाइट हो गई इससे. वैसे भी, जब हिंदुत्व मुद्दा बन गया तो उसके आगे जातियों का स्कोप खत्म हो गया. धर्म की राजनीति जाति की राजनीति को निगल गई. उधर RSS अपने काम में लगा हुआ था. गुजरात के आदिवासी इलाकों में संघ ‘एकल विद्यालय’ आंदोलन चला रहा था. ये आदिवासी समुदायों को अपनी ओर खींचने की कवायद थी. इसका बहुत फायदा भी हुआ. आदिवासी और दलित भी कांग्रेस से मुंह मोड़ने लगे. ले-देकर कांग्रेस के पास बचे मुसलमान. उनके समर्थन के बल पर कुछ भी बड़ा करना मुमकिन नहीं था. ये ही वजह थी कि गुजरात में कांग्रेस का सितारा लगातार डूबता ही रहा. जबकि बीजेपी लगातार अपने पांव फैलाती गई.

 

पाटीदारों को वापस इतनी मजबूत स्थिति में लाने का श्रेय हार्दिक पटेल को जाता है. हार्दिक लगातार पाटीदारों से अपील कर रहे हैं कि वो बीजेपी के लिए वोट न करें. हार्दिक के कई साथी अब बीजेपी में हैं. ऐसे में हार्दिक की अपील कितना असर करेगी, ये तो आगे की बात है.

 

पाटीदार आंदोलन के बाद कांग्रेस में नई जान आई है
ये सारी बातें अब पुरानी हो गई हैं. बीते सालों से कांग्रेस ने बहुत कुछ सीखा है. अब कांग्रेस अपने पुराने फॉर्म्युले को नए रंग में लाई है. खाम  के M को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. उनकी जगह ले ली है पाटीदार के P ने. ये पहली बार है जब कांग्रेस मुसलमानों से कन्नी काट रही है. इसकी वजह पाटीदार हैं. पाटीदार नाराज हैं. 2015 में शुरू हुआ पाटीदार आंदोलन कांग्रेस के लिए मौका लेकर आया. पाटीदार आरक्षण की मांग पर बीजेपी ने जो सख्ती दिखाई, उसके कारण पटेल समाज उससे नाराज हुआ. कांग्रेस उनकी इस नाराजगी को कैश करने की पूरी कोशिश कर रही है. पाटीदार कितना बड़ा मुद्दा हैं इस बार, ये पाटीदार उम्मीदवारों की तादाद देखकर पता चलेगा. पहले चरण के चुनाव में 89 सीटों पर वोटिंग होनी है. इसके लिए कुल 53 पाटीदार प्रत्याशी मैदान में हैं. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने खूब सारे पाटीदार उम्मीदवारों को टिकट बांटा है.

 

एक समय में आरक्षण के कट्टर विरोधी रहे पाटीदार जब अपने लिए आरक्षण मांगने सड़कों पर उतरे, तो खूब हंगामा हुआ. बीजेपी के सामने मुश्किल ये थी कि वो आरक्षण सिस्टम से छेड़खानी करने का जोखिम मोल नहीं ले सकती थी.

 

पहले बाप, अब बेटा लेकर आया है नया जाति वाला फॉर्म्युला
ये तो हुए पाटीदार. इसके अलावा भी कांग्रेस ने जाति देखकर दोस्त बनाए हैं. जैसे, OBC नेता अल्पेश ठाकुर को लेकर आए. उत्तरी गुजरात में कांग्रेस को इससे बहुत फायदा मिल सकता है. दलित वोट के लिए कांग्रेस को जिग्नेश मेवाणी का सहारा है. मेवाणी दलित वोटर्स के बीच घूम-घूमकर वोट मांग रहे हैं. कह रहे हैं, भूलकर भी बीजेपी को वोट मत देना. कांग्रेस को लग रहा है कि हिंदुत्व की आंधी में जो दलित उससे दूर चले गए थे, उन्हें मेवाणी वापस लेकर आएंगे. फिर शरद यादव भी हैं कांग्रेस के साथ. शरद यादव के पास छोटू भाई वसावा हैं. वसावा गुजरात के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति के नेता हैं. आदिवासी समाज पर उनकी काफी पकड़ मानी जाती है. विरोधी पार्टियों के पास फिलहाल वसावा के कद का कोई आदिवासी नेता नहीं है. तो इस तरह कांग्रेस का KHAP फॉर्म्युला मैदान में है. इस नई थिअरी के पीछे दिमाग किसका है? भारत सिंह सोलंकी. गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष. भारत माधव सिंह सोलंकी के बेटे हैं. बेटा बाप के जुगाड़ में वक्त और जरूरत के मुताबिक बदलाव कर रहा है. कांग्रेस शातिरपना भी दिखा रही है.

कांग्रेस भले मुसलमानों का नाम न ले, मुसलमान उसको ही वोट देंगे!
देखा जाए, तो ये KHAP अपने आप KHAPM हो जाएगा. इसकी वजह ये है कि मुसलमान कांग्रेस के पारंपरिक वोटर हैं. फिलहाल जैसी स्थिति है, उसमें मुसलमानों के पास कांग्रेस के सिवा कोई और नहीं है. कांग्रेस के मुस्लिम नेता भी ये बात मान रहे हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस कभी मुस्लिम विरोधी नहीं हो सकती. कांग्रेस को लग रहा है कि अगर बिना बोले भी उसे मुस्लिम वोट मिल सकता है, तो खुद को ‘मुस्लिम-परस्त पार्टी’ दिखाने की जरूरत ही क्या है? उसका ये दांव और फॉर्म्युला कितना चलेगा और कितने वोट लाएगा, ये आगे की बात है. तब, जब वोटों की गिनती की जाएगी. इतना जरूर है कि इस बार के चुनाव में कांग्रेस पहले की तरह कमजोर नजर नहीं आ रही है. उम्मीद तो उसे है. और काफी तगड़ी उम्मीद है.

 

 

 

सौ. thelallantop

 

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