विंध्य की राजनीति के पितृपुरुष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी का देहावसान
समूचे विंध्य प्रदेश के असली जननायक पूरे भारत में विंध्य को अलग पहचान देने वाले तथा केवल नाम से ही नही बल्कि शख्सियत से भी लोकप्रिय जननेता और विंध्य की राजनीति के पितृपुरुष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी के निधन पर समूचा विंध्य स्तब्ध हो गया है। ऐसे महापुरुष सचमुच कालजयी होते है । महामना श्रीयुत श्री निवास तिवारी जी के निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.....
रीवा। मध्यप्रदेश के कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी का निधन हो गया है। बताया कि विगत कई दिनों से वह बीमार चल रहे थे। जिनको एयर एंबुलेंस से दिल्ली में ले जाकर एस्कार्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तीन चार दिन से स्वास्थ्य में सुधार दिखा लेकिन शुक्रवार की सुबह से स्वास्थ्य में गिरावट आने लगी और उन्होंने शुक्रवार की शाम करीब 4 बजे अंतिम सांसें ली है। परिजनों में पोते बबला तिवारी ने निधन की पुष्टि की है। उनका अंतिम संस्कार शव पहुंचने के बाद रीवा जिले के गृह ग्राम तिवनी में में किया जाएगा। सतना तक प्लेन से आएगी पार्थिव देह। इसके बाद देह रीवा में उनके पैतृक गांव लाई जाएगी। 93 वर्ष के श्रीनिवास तिवारी के स्वास्थ्य को लेकर कई लोग कामना कर रहे थे लेकिन शुक्रवार को उनका निधन हो गया। निधन की खबर के बाद से पूर विंध्य क्षेत्र में मातम पसरा हुआ।
दिग्विजय सिंह मानते अपना गुरू
विन्ध्य में सफेद शेर के नाम से पहचाने जाने वाले श्रीनिवास तिवारी को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपना गुरू मानते हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर अपना घनिष्ट मित्र मानते हुए मुलाकात पर उनके पैर छूने से नहीं हिचकते। विस अध्यक्ष के दौरान उन्होंने पहली बार विधानसभा में मार्शल का उपयोग कर चर्चा में आए थे। इसके साथ ही उन्हें सख्त विस अध्यक्ष के रूप में भी ख्याति मिली थी और उनके कार्यकाल में पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों के बीच बेहतर समन्वय के लिये भी उन्हें जाना जाता है। विन्ध्य की राजनीति की महत्वपूर्ण धुरी माने जाने वाले विस अध्यक्ष हालिया भाजपा सरकार में अपने कार्यकाल में नियुक्तियों को लेकर भी चर्चा में आए।
श्री निवास तिवारी सफर
श्रीनिवास तिवारी का जन्म ननिहाल मे ग्राम शाहपुर जिला रीवा में 17 सितम्बर 1926 को हुआ। श्रीनिवास तिवारी का गृह ग्राम तिवनी जिला रीवा है। माता का नाम कौशिल्या देवी और पिता का नाम पं. मंगलदीन तिवारी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह ग्राम तिवनी मनगंवा और मार्तण्ड स्कूल रीवा मे हुई। इन्होने एम.ए., एल.एल.बी., टी.आर.एस. कालेज रीवा (तत्कालीन दरवार कालेज) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।ढइतझश्रीनिवास तिवारी छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी, सामंतवाद के विरोध में कार्य सक्रिय रहे। यहीं से इन्होने राजनीति में कदम रखा। 1952 मे सबसे कम उम्र के विधायक बनने का गौरव भी श्रीनिवास ने हासिल किया। इसके बाद 1957 में 1972 से 1985, 1990 से 2003 तक लगातार जीत दर्ज की। सन् 1980 में प्रदेश सरकार में मंत्री, 23ध्3ध्1990 से 15ध्12ध्1992 विधानसभा उपाध्यक्ष, और 1993 से 2003 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। वैसे तो श्रीनिवास की कई उपलब्धियाँ रही राजनीति, समाजसेवा, प्रशासन एवं साहित्य के क्षेत्र में इनका उल्लेखनीय कार्य रहा हैं।
तिवनी का अमूल्य रत्न
तिवनी ग्राम का नाम लेते ही एक प्रखर एवं पुष्ठ पौरुष सम्मुख आता है। लम्बा-चैड़ा बलिष्ठ शरीर, सिर के धवल बाल घनी श्वेत भौंहें जो इनकी गम्भीरता को प्रगट करती हैं। अतलदर्शी नेत्र जैसे, दोनो नेत्र सामने वाले के अन्तः में प्रवेश कर रहे हों। सतर्क बड़े-बड़े कान सबकी बातें ध्यान से सुनने वाले। बड़ी नाक जो बताती है कि यह व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा के लिए सावधान है। यह शीघ्र ही व्यक्तियों को पहचान लेता है। कर्मठ बलिष्ठ भुजाएँ सिर में लटकती हुई आबध्य शिखा और धवल वस्त्रों से सुसज्जित देह। इस व्यक्ति में दूसरों के अन्तः में प्रवेश करके उसके मंगल रूप को पहचानने की अद्भुत प्रतिभा और शक्ति है। ऐसे व्यक्ति को यहाँ की वायु ने पलने में झुलाया, पुचकारा और दुलराया है। यहाँ के पानी ने इसे यश प्रशस्ति का अमरत्व प्रदान किया। तिवनी का ऐसा यह अमूल्य रत्न आज अपने आलोक से पूरे देश को आलोकित कर रहा है। प्रखर समाजवादी चिन्तक, संसदीय प्रक्रियाओं के मर्मज्ञ, संवैधानिक विधिवेत्ता, निर्भीक और यशस्वी राजनेता श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी का जन्म 17 सितम्बर 1926 को उनके ननिहाल रीवा जिले के शाहपुर (क्योंटी) के ग्रामीण परिवेश में हुआ। ग्रामीण सद्भाव और संस्कृति के वातावरण में परवरिस की अमिट छाप उनके निश्छल व्यक्तित्व और निस्कपट व्यवहार में आज भी झलकती है। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पिता स्व. श्री मंगलदीन तिवारी के कठोर अनुशासन और मार्गदर्शन में हुई। वे प्राथमिक शिक्षा से ही मेधावी छात्र रहे हैं।
जन्म एवं विवाह
कहते हैं होनहार विरवान के होत चीकने पात। श्रीनिवास तिवारी बचपन से ही प्रतिभावान एवं विलक्षण थे। उनका जन्म तिवनी ग्राम के प्रतिष्ठित मध्यवर्गीय किसान मंगलदीन तिवारी के तृतीय पुत्र के रूप में ननिहाल शाहपुर में 17 सितम्बर 1926 की पावन वेला में हुआ। माता कौशिल्या देवी सहृदय महिला थीं जिनका संस्कार श्रीतिवारी को मिला।ढइतझसतना जिला के झिरिया ग्राम के पं. रामनिरंजन मिश्र की पुत्री श्रवण कुमारी के साथ श्रीतिवारी का विवाह दिनांक 21ध्5ध्1937 दिन शुक्रवार को 11 वर्ष की अवस्था में सम्पन्न हुआ। श्रीनिवास तिवारी के दो पुत्र अरुण तिवारी जो दुर्भाग्य से अब इस दुनियाँ में नहीं हैं एवं सुन्दरलाल तिवारी देश व समाज सेवा में सतत् रत हैं। अरुण तिवारी के बड़े पुत्र विवेक तिवारी ष्बबलाष् जिला पंचायत सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति कर रहे हैं एवं छोटे पुत्र वरुण तिवारी पिंकू युवा कांग्रेस जिला अध्यक्ष के रूप में सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। एक पुत्री मोना तिवारी की शादी हो चुकी है। सुन्दरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी दिल्ली में हैं तो पुत्री कनुप्रिया अध्ययन कर रही हैं। पपौत्री ऋचा तिवारी व पपौत्र वशिष्ट तिवारी हैं।
शिक्षा
श्रीनिवास तिवारी की शिक्षा-दीक्षा गाँव से ही शुरू हुई। मनगवाँ बस्ती के विद्यालय से उन्होंने अपनी शिक्षा आरंभ की जो 1950 में दरबार कालेज रीवा से एल.एल.बी. एवं 1951 में हिन्दी साहित्य से एम.ए. करने के साथ समाप्त हुई। छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीति में रुचि लेना शुरू कर दिया था। कक्षा 9 वीं में प्रवेश के बाद एक डिबेटिंग क्लब की स्थापना की थी जिसके सदस्य उस समय के मेधावी छात्र थे।
सामंतवाद के खिलाफ लड़ता एक योद्धा
हम जिस राजनेता के बारे में बात करने जा रहे हैं उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए वह इस मायने में काफी कम है कि उन्होंने विंध्य में किसान मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए सामंतवाद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी वह स्तुत्य है। न केवल रीवा बल्कि विंध्य के विकास में उनका योगदान इतना अधिक है या यूँ कहें कि विंध्य को विकास की दिशा देने का काम उन्होंने ही किया तो यह निखालिस सच्चाई होगी। रीवा को महानगरों की तर्ज पर विकास की राह पर लाकर उसको पहचान दिलाने का काम यदि किसी रजनेता ने किया है तो वे हैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, जिन्होंने रीवा को विकास की कई सौगातें दी जो आज रीवा की पहचान बन गई है।
राजनैतिक सफर
श्रीनिवास तिवारी का राजनैतिक सफर कांटो भरा ही रहा है। बचपन से ही श्रीनिवास तिवारी पर स्वतंत्रता आन्दोलन एवं समाजवादी आन्दोलन का प्रभाव पड़ा। जब वे कक्षा 8 वीं में मार्तण्ड स्कूल में छात्र थे तभी स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये थे। दरबार कालेज में आकर उन्होने डिबेटिंग क्लब बनाया एवं दरबार कालेज के महामंत्री भी रहे। उनमें अद्भुत संगठनात्मक क्षमता थी, छात्र जीवन में राजनीति का जो अंकुर फूटा वह समय के साथ आकार लेता गया।ढइतझतिवारी समाजवादी विचारधारा एवं समाजवादी आन्दोलन से जुड़े। लोहिया के समाजवाद से वे प्रभावित थे और डाॅ. राम मनोहर लोहिया का उन्हें भरपूर स्नेह मिला। जमींदारी प्रथा का विरोध करते हुए उन्हें कृष्णपाल सिंह, ओंकारनाथ खरे, श्रवण कुमार भट्ट, चन्द्रकिशोर टण्डन, हरिशंकर, मथुरा प्रसाद गौतम, ठाकुर प्रसाद मिश्र, सिद्धविनायक द्विवेदी, जगदीश चन्द्र जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री, चन्द्रप्रताप तिवारी, अच्युतानंद मिश्र, महावीर सोलंकी, शिव कुमार शर्मा तथा लक्ष्मण सिंह तिवारी आदि का साथ मिला।
जमींदारी प्रथा का विरोध
श्रीनिवास तिवारी ने जमींदारी प्रथा के विरोध में मध्य प्रदेश की विधान सभा में लगातार सात घण्टे तक भाषण देकर इतिहास रचा था। श्रीतिवारी मूलतः किसान के बेटे थे। वे किसानों का दुख दर्द समझते थे। तत्कालीन समय में सामंतों द्वारा किसानों का व्यापक शोषण किया जा रहा था। किसानों का उत्पादन का अधिकांश भाग छीन लेना एवं मजदूरों से बेगारी कराना आम हो गया था। किसानों एवं मजदूरों की पीड़ा श्रीतिवारी से देखी नहीं गई और वे सामंतवाद के विरोध में लोहिया द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन में सक्रिय हो गए जिससे वे जमींदारों के विरोधी हो गये। इनका नारा था भूखी जनता चुप न रहेगी, धन और धरती बट कर रहेगी। 1948 तक 50 फीसदी किसान जमीन से बेदखल किए जा चुके थे। श्रीनिवास तिवारी, यमुना प्रसाद शास्त्री और जगदीश जोशी ने संयुक्त एवं पृथक रूप से रीवा एवं सीधी का दौरा किया और जहाँ किसान बेदखल किए गये थे संगठन बनाकर सरकार को बेदखली के निर्णय को वापस लेने के लिए विवश किया।ढइतझइसी चलते 1948 में सरकार ने टेनेंसी एक्ट में किसानों के लाभ के लिए संशोधन करने की घोषणा की। इस आन्दोलन में श्रीतिवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। फलस्वरूप समाजवादी नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी गई। इन्हें रीवा से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी और श्रीतिवारी सहित अन्य नेताओं को जेल भेज दिया गया।
विंध्य के विलय का विरोध
सरकार द्वारा विंध्य प्रदेश के विलय के प्रस्ताव का श्रीतिवारी ने पुरजोर विरोध किया था। 1948 में विंध्य प्रदेश का निर्माण हुआ था लेकिन 1949 में विंध्य के विलय का प्रस्ताव किया गया लेकिन समाजवादियों के उग्र आन्दोलन के कारण विंध्य के विलय का मसौदा स्थगित हो गया था। सरदार पटेल विलय की नीति पर अडिग थे जिससे मसौदे पर हस्ताक्षर कराने के लिए वी.पी. मेनन को रीवा भेजा गया जहाँ हस्ताक्षर करने के लिए अन्य राजा भी किले में आकर रुके थे। जब यह जानकारी तिवारी और जोशीजी को हुई तो हजारों कार्यकर्ताओं के साथ इन्होंने किले के दरवाजे पर मेनन से मिलकर उन्हें विलय के विरोध में एक ज्ञापन सौंपा। वहीं बाद में राजाओं ने विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिये जिसे मान लिया गया, लेकिन श्रीतिवारी एवं जोशीजी के नेतृत्व में विलय के विरोध में आन्दोलन तेज कर दिया गया था। 2 जनवरी 1950 को विलय के विरोध में लोहिया जी की अगुवाई में रीवा बंद किया गया। 1 जनवरी को विशाल मसाल जुलूस निकाला गया। जिसका नेतृत्व श्रीनिवास तिवारी और जगदीश जोशी कर रहे थे।
जनवरी को बंद के दौरान सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे भीड़ आक्रोशित हो गई और पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। जब लाठी के आक्रोश से जनता का आक्रोश नहीं दबा तो पुलिस ने गोलियाँ चला दी जिससे गंगा, अजीज और चिंताली शहीद हो गये। सैकड़ों घायल हुए लेकिन बाद में नेताओं को रिहा कर दिया गया। उसी समय जोशी, यमुना, श्रीनिवास जिंदाबाद के नारे लगे थे। श्रीतिवारी विंध्य के विलय पर भाषण देते हुए कहा कि विंध्य प्रदेश का विलयन और उसकी समाप्ति यहाँ के लोगों की राय के खिलाफ किया जा रहा है और यहाँ की जनता उसके खिलाफ है। हम सब लोग विंध्य प्रदेश के विलयन के खिलाफ हैं।
ऐसे लड़े पहला चुनाव
समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आम चुनाव में जब श्रीनिवास तिवारी को मनगवाँ विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया तब उनके सामने भारी आर्थिक संकट था और यह समस्या थी कि चुनाव कैसे लड़ा जाए? ऐसे में गाँव के ही स्व. कामता प्रसाद तिवारी ने कहा चुनाव तो लड़ना ही है धन की व्यवस्था मैं करूँगा। उन्होंने अपने घर का सोना रीवा में 500 रुपये में गिरवी रखकर रकम श्रीतिवारी को चुनाव लड़ने के लिए सौंप दी। इसी धन राशि से चुनाव लड़ा गया और तिवारी को विजयश्री मिली। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन का उद्भव प्रारंभ हुआ।
विधायक के रूप में सक्रिय राजनीति
24 वर्ष की अल्पायु में 1952 में पहली बार विधायक चुने जाने के बाद श्रीतिवारी की राजनीति में सक्रिय भूमिका प्रारंभ हुई। समाजवादी आन्दोलन से जुड़े होने के कारण श्रीतिवारी ने सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक अपनी बात रखी। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि विंध्य प्रदेश का अकाल यदि किसी तरह से रोका जा सकता है तो केवल सिंचाई के साधनों को विकसित करने के बाद ही रोका जा सकता है। उन्होंने वनों के संरक्षण, दूर संचार के विस्तार, गृह उद्योग, शिक्षा की गुणवत्ता, पर्याप्त बिजली, यातायात व्यवस्था, नगर के सौंदर्यीकरण, स्वच्छ जलापूर्ति, कर्मचारी हितों का ख्याल, दस्यु समस्या से निजात, पंचायतीराज के विस्तार, सहकारी संस्थाओं की सक्रियता, विंध्य में विश्वविद्यालय की स्थापना, रेल सुविधा के लिए विधान सभा में लड़ाई लड़ी जिसका नतीजा है कि विंध्य में आज ये सभी सुविधाएँ मौजूद हैं।
श्रीतिवारी पंचायतीराज के पक्षधर थे उन्होंने कहा कि सबसे पहले पंचायतों का चुनाव होना चाहिए। अगर ग्राम पंचायतें कहीं अनुभव करती हैं कि उन्हें टैक्स लगाना है तो खुद वहाँ की जनता की राय से टैक्स लगा सकती है और वसूल कर सकती है, आप छोड़ दीजिए उनके ऊपर पूरी तौर से।
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